डीएमएफ घोटाला में 45 फर्जी टेंडर का खुलासा, क्लर्क सस्पेंड, दो पूर्व सहायक आयुक्तों समेत तीनों पर FIR की तैयारी

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में, जिला खनिज न्यास (DMF) निधि के तहत हुए कार्यों में एक बड़ा घोटाला सामने आया है। आदिवासी विकास विभाग ने पिछले पांच वर्षों में 45 फर्जी टेंडर जारी किए, जिसके जरिए पसंदीदा ठेकेदारों को लाभ पहुँचाया गया।

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Krishna Kumar Sikander
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छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में जिला खनिज न्यास (DMF) मद से हुए कार्यों में बड़ा घोटाला सामने आया है। आदिवासी विकास विभाग में पांच सालों के दौरान 45 फर्जी टेंडर जारी किए गए, जिनके जरिए पसंदीदा ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए कूट रचित दस्तावेज तैयार किए गए। इस सनसनीखेज फर्जीवाड़े में दो पूर्व सहायक आयुक्तों और एक क्लर्क की संलिप्तता उजागर हुई है।

कलेक्टर के निर्देश पर क्लर्क को निलंबित कर दिया गया है, और तीनों आरोपियों के खिलाफ सिटी कोतवाली में FIR दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। यह मामला न केवल प्रशासनिक गड़बड़ियों को उजागर करता है, बल्कि टेंडर प्रक्रिया की पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।

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कलेक्टर की जांच ने उठाया पर्दा

दंतेवाड़ा के कलेक्टर कुणाल दुदावत ने डीएमएफ मद से साल 2021 से 2025 तक कराए गए कार्यों की गहन जांच के आदेश दिए थे। जांच में चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि इस अवधि में आदिवासी विकास विभाग में निविदा प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं की गईं।

45 टेंडर फर्जी पाए गए, जिनमें नियमों को ताक पर रखकर पसंदीदा ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए दस्तावेजों में हेराफेरी की गई। जांच रिपोर्ट में इस घोटाले के लिए दो पूर्व सहायक आयुक्तों, डॉ. आनंदजी सिंह और के.एस. मसराम, के साथ-साथ विभाग के क्लर्क संजय कोडोपी को जिम्मेदार ठहराया गया है।

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क्लर्क सस्पेंड, FIR की तैयारी

जांच में दोषी पाए गए क्लर्क संजय कोडोपी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। उनके खिलाफ कूट रचित दस्तावेज तैयार करने का आरोप है, जिसके जरिए फर्जी टेंडरों को अंजाम दिया गया। वर्तमान सहायक आयुक्त राजीव नाग ने कलेक्टर के निर्देश पर सिटी कोतवाली में डॉ. आनंदजी सिंह, के.एस. मसराम और संजय कोडोपी के खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए आवेदन दे दिया है। पुलिस अब इस मामले में गहन जांच शुरू करने की तैयारी में है, और जल्द ही तीनों के खिलाफ औपचारिक कार्रवाई शुरू होगी।

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डॉ. आनंदजी सिंह का विवादित इतिहास

पूर्व सहायक आयुक्त डॉ. आनंदजी सिंह का नाम पहले भी विवादों में रह चुका है। उनके खिलाफ गीदम थाने में दुष्कर्म का एक मामला दर्ज है, हालांकि इस मामले में उन्हें फिलहाल अदालत से राहत मिली हुई है। पुलिस सूत्रों के अनुसार, यह मामला भी ठेकेदारी और विभागीय गड़बड़ियों से जुड़ा हो सकता है। सिंह का विवादों से पुराना नाता इस घोटाले को और भी जटिल बनाता है, और जांच एजेंसियां उनके पिछले रिकॉर्ड को भी खंगाल रही हैं।

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टेंडर समिति पर सवालों का साया

इस घोटाले ने टेंडर समिति की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं। पांच साल तक लगातार जारी रहे इस फर्जीवाड़े पर समिति की चुप्पी संदेह पैदा करती है। आखिर क्यों समिति ने इस दौरान कोई आपत्ति दर्ज नहीं की? क्या समिति के सदस्य भी इस घोटाले में शामिल थे, या उनकी लापरवाही ने इसे बढ़ावा दिया? जांच एजेंसियां अब इस पहलू की भी गहराई से पड़ताल कर रही हैं, ताकि इस घोटाले के सभी जिम्मेदार लोगों को सामने लाया जा सके।

डीएमएफ फंड का दुरुपयोग

जिला खनिज न्यास (DMF) फंड का उपयोग खनन प्रभावित क्षेत्रों, खासकर आदिवासी समुदायों के विकास के लिए किया जाता है। इस फंड के जरिए स्कूल, अस्पताल, सड़कें और अन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण जैसे कार्य किए जाते हैं।

इस घोटाले ने न केवल डीएमएफ फंड के दुरुपयोग को उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि कैसे आदिवासी विकास के लिए आवंटित संसाधनों को गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया। फर्जी टेंडरों के जरिए ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने की इस साजिश ने नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा के विकास कार्यों को गंभीर नुकसान पहुंचाया है।

कार्रवाई और चुनौतियां

कलेक्टर कुणाल दुदावत ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए जांच को और गहरा करने के निर्देश दिए हैं। प्रशासन का लक्ष्य है कि इस घोटाले के सभी दोषियों को सजा मिले और भविष्य में ऐसी अनियमितताओं को रोका जाए। साथ ही, टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी करने की योजना बनाई जा रही है।

नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण दंतेवाड़ा में प्रशासनिक चुनौतियां कम नहीं हैं। इस घोटाले ने स्थानीय लोगों के बीच विश्वास की कमी को और गहरा किया है, जो पहले से ही नक्सलवाद और अविकसित बुनियादी ढांचे से जूझ रहे हैं।

FAQ

तेवाड़ा जिले में सामने आए डीएमएफ घोटाले में किन लोगों की संलिप्तता पाई गई है और उनके खिलाफ क्या कार्रवाई हुई?
इस घोटाले में दो पूर्व सहायक आयुक्त—डॉ. आनंदजी सिंह और के.एस. मसराम—के साथ-साथ विभाग के क्लर्क संजय कोडोपी की संलिप्तता सामने आई है। क्लर्क को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है, और तीनों के खिलाफ सिटी कोतवाली में एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
डीएमएफ फंड का मुख्य उद्देश्य क्या होता है और इस घोटाले से उसे क्या नुकसान हुआ?
डीएमएफ (जिला खनिज न्यास) फंड का उद्देश्य खनन प्रभावित क्षेत्रों, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों के विकास के लिए बुनियादी सुविधाएं जैसे स्कूल, अस्पताल और सड़कें तैयार करना होता है। इस घोटाले में फर्जी टेंडरों के जरिए फंड का दुरुपयोग हुआ, जिससे इन विकास कार्यों को गंभीर नुकसान पहुंचा और जरूरतमंदों तक सुविधाएं नहीं पहुंच सकीं।
टेंडर समिति की भूमिका को लेकर इस घोटाले में क्या सवाल उठ रहे हैं?
घोटाले में लगातार पांच वर्षों तक फर्जी टेंडर जारी होने के बावजूद टेंडर समिति द्वारा कोई आपत्ति न जताना संदेह पैदा करता है। इससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या समिति के सदस्य भी इस घोटाले में शामिल थे या उनकी लापरवाही ने इसे बढ़ावा दिया। अब जांच एजेंसियां समिति की भूमिका की भी गहराई से जांच कर रही हैं।

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