छत्तीसगढ़ में खतरे में 800 बच्चों का भविष्य, 50 स्कूलों के अल्पसंख्यक दर्जे से RTE का संकट, बेदखली की आशंका

छत्तीसगढ़ में शिक्षा के अधिकार (RTE) के तहत मुफ्त शिक्षा पा रहे 800 बच्चों का भविष्य संकट में है। प्रदेश के 50 स्कूल, जिन्हें अब अल्पसंख्यक दर्जा मिल गया है, वे RTE के दायरे से बाहर हो गए हैं। इस वजह से इन स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों की शिक्षा रुक सकती है।

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Krishna Kumar Sikander
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Future 800 children Chhattisgarh RTE crisis minority status
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छत्तीसगढ़ में शिक्षा के अधिकार (RTE) कानून के तहत मुफ्त शिक्षा प्राप्त कर रहे 800 बच्चों का भविष्य अनिश्चितता के भंवर में फंस गया है। प्रदेश के 50 स्कूल, जो पहले सामान्य स्कूलों के रूप में संचालित थे और RTE के तहत गरीब व वंचित बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान कर रहे थे, अब अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त करने के कारण RTE के दायरे से बाहर हो गए हैं।

इस बदलाव ने इन स्कूलों में पढ़ रहे 800 बच्चों की शिक्षा पर संकट खड़ा कर दिया है, और बेदखली का खतरा मंडरा रहा है। स्कूल शिक्षा विभाग की चुप्पी और प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के बार-बार पत्राचार के बावजूद कोई ठोस समाधान नहीं निकाला गया है, जिससे बच्चों और उनके अभिभावकों में बेचैनी बढ़ रही है।

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RTE से बाहर होने का प्रभाव

इन 50 स्कूलों में पहले RTE कानून के तहत जिला शिक्षा अधिकारियों (DEO) के माध्यम से 800 बच्चों को मुफ्त प्रवेश दिया गया था। उस समय ये स्कूल सामान्य श्रेणी में थे और RTE के प्रावधानों का पूरी तरह पालन कर रहे थे। लेकिन शैक्षणिक सत्र के बीच में इन स्कूलों को अल्पसंख्यक दर्जा मिलने के बाद इन्हें केंद्र सरकार के RTE कानून से बाहर कर दिया गया।

परिणामस्वरूप, इन स्कूलों के नाम RTE पोर्टल से हटा दिए गए हैं, और अब इनमें नए बच्चों का प्रवेश बंद हो गया है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन स्कूलों में पहले से पढ़ रहे 800 बच्चों की शिक्षा की निरंतरता को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं बनाई गई है। इस बदलाव ने बच्चों के भविष्य पर गहरा संकट पैदा कर दिया है।

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अगर स्कूल प्रबंधन इन बच्चों को मुफ्त पढ़ाने में असमर्थ होता है और फीस की मांग करता है, तो आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए इसे वहन करना असंभव होगा। ऐसी स्थिति में बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जो RTE कानून के मूल उद्देश्य को ही निष्फल कर देगा।

स्कूलों को फीस भुगतान में देरी

प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने बताया कि इन स्कूलों को RTE के तहत बच्चों को पढ़ाने के लिए सरकार से मिलने वाली प्रतिपूर्ति राशि (फीस) पिछले तीन वर्षों से लंबित है। अल्पसंख्यक दर्जे के कारण स्कूल अब इस राशि के लिए पात्र नहीं हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति डगमगा गई है।

गुप्ता ने चेतावनी दी है कि बिना सरकारी सहायता के स्कूल प्रबंधन इन बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना जारी नहीं रख सकता। अगर अभिभावकों पर फीस का दबाव डाला गया और वे इसे चुकाने में असमर्थ रहे, तो बच्चों को स्कूल से निकालने की नौबत आ सकती है। यह स्थिति न केवल बच्चों की शिक्षा को प्रभावित करेगी, बल्कि उनके भविष्य को भी जोखिम में डालेगी।

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शिक्षा विभाग की उदासीनता

प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन ने इस मुद्दे को कई बार स्कूल शिक्षा विभाग के सामने उठाया है। इसके तहत पत्र 10 जून 2024, 21 मार्च 2025, और 26 मार्च 2025 को भेजे गए। मगर, विभाग की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है। एसोसिएशन ने साफ कहा है कि अगर इन बच्चों की पढ़ाई में कोई व्यवधान हुआ, तो इसकी पूरी जिम्मेदारी स्कूल शिक्षा विभाग की होगी।

विभाग की इस चुप्पी ने न केवल अभिभावकों बल्कि स्कूल प्रबंधनों को भी असमंजस में डाल दिया है। RTE कानून के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा सुनिश्चित करना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है। फिर भी, इन स्कूलों के दर्जे में बदलाव के बाद बच्चों की शिक्षा को बचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

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बच्चों और अभिभावकों की चिंता

इन 800 बच्चों में से अधिकांश गरीब और वंचित परिवारों से आते हैं, जिनके लिए RTE के तहत मुफ्त शिक्षा एकमात्र रास्ता था। इन परिवारों के लिए निजी स्कूलों की फीस वहन करना संभव नहीं है। अगर स्कूल प्रबंधन फीस की मांग करता है या बच्चों को स्कूल से निकालता है, तो इन बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट सकती है। अभिभावकों का कहना है कि सरकार को इन बच्चों को वैकल्पिक स्कूलों में स्थानांतरित करने या स्कूलों को फीस का भुगतान सुनिश्चित करने की व्यवस्था करनी चाहिए।

RTE कानून और अल्पसंख्यक दर्जे का टकराव

RTE कानून 2009 के तहत गैर-अल्पसंख्यक निजी स्कूलों को अपने कुल सीटों का 25% हिस्सा आर्थिक रूप से कमजोर और वंचित वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित करना अनिवार्य है। इन बच्चों की फीस की प्रतिपूर्ति सरकार द्वारा की जाती है।

अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त स्कूलों पर यह प्रावधान लागू नहीं होता, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत उन्हें अपनी शैक्षणिक नीतियां तय करने की स्वायत्तता प्राप्त है। इस प्रावधान के कारण इन 50 स्कूलों को RTE के दायरे से बाहर कर दिया गया, जिसने 800 बच्चों की शिक्षा को खतरे में डाल दिया है।

पढ़ाई की निरंतरता सुनिश्चित करने की जरूरत

इस मामले में स्कूल शिक्षा विभाग की जवाबदेही पर सवाल उठ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को इन बच्चों की पढ़ाई की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। संभावित समाधानों में शामिल हो सकते हैं:इन बच्चों को अन्य RTE पात्र स्कूलों में स्थानांतरित करना। स्कूलों को लंबित फीस का भुगतान करना, ताकि वे बच्चों को मुफ्त पढ़ाना जारी रख सकें।
अल्पसंख्यक दर्जे वाले स्कूलों के लिए विशेष नीति बनाना, जो RTE के तहत पहले से पढ़ रहे बच्चों को प्रभावित न करे।

स्थानीय स्तर पर बढ़ता रोष

छत्तीसगढ़ के अभिभावकों और सामाजिक संगठनों ने इस मामले को लेकर सरकार पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि शिक्षा के अधिकार जैसे महत्वपूर्ण कानून को लागू करने में इस तरह की लापरवाही अस्वीकार्य है। कई अभिभावकों ने मांग की है कि सरकार तुरंत हस्तक्षेप कर इन बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करे।

FAQ

छत्तीसगढ़ में 800 बच्चों की शिक्षा पर संकट क्यों आया है?
छत्तीसगढ़ के 50 स्कूलों को शैक्षणिक सत्र के बीच में अल्पसंख्यक दर्जा मिल गया, जिससे वे RTE (शिक्षा का अधिकार) कानून के दायरे से बाहर हो गए। इन स्कूलों में पढ़ रहे करीब 800 गरीब और वंचित बच्चों को पहले RTE के तहत मुफ्त शिक्षा मिल रही थी, लेकिन अब उन्हें स्कूल से निकाले जाने का खतरा है क्योंकि स्कूल न तो फीस माफ कर सकते हैं और न ही सरकार से सहायता मिल रही है।
RTE और अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त स्कूलों के बीच क्या टकराव है?
RTE कानून के तहत गैर-अल्पसंख्यक स्कूलों को 25% सीटें गरीब बच्चों के लिए आरक्षित करनी होती हैं, जिनकी फीस सरकार देती है। लेकिन संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यक संस्थानों को अपनी शैक्षणिक नीतियाँ तय करने की स्वायत्तता देता है। इसलिए, अल्पसंख्यक दर्जा मिलने के बाद ये स्कूल RTE के नियमों से मुक्त हो जाते हैं।
सरकार इस संकट का समाधान कैसे निकाल सकती है?
सरकार को तुरंत कदम उठाकर बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए तीन संभावित उपाय करने चाहिए: इन बच्चों को अन्य RTE पात्र स्कूलों में स्थानांतरित किया जाए। जिन स्कूलों में बच्चे पहले से पढ़ रहे हैं, उन्हें लंबित फीस की प्रतिपूर्ति की जाए। एक विशेष नीति बनाई जाए, ताकि RTE के तहत पहले से पढ़ रहे बच्चे अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त स्कूलों से प्रभावित न हों।

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