/sootr/media/media_files/2025/08/21/future-800-children-chhattisgarh-rte-crisis-minority-status-2025-08-21-20-56-03.jpg)
छत्तीसगढ़ में शिक्षा के अधिकार (RTE) कानून के तहत मुफ्त शिक्षा प्राप्त कर रहे 800 बच्चों का भविष्य अनिश्चितता के भंवर में फंस गया है। प्रदेश के 50 स्कूल, जो पहले सामान्य स्कूलों के रूप में संचालित थे और RTE के तहत गरीब व वंचित बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान कर रहे थे, अब अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त करने के कारण RTE के दायरे से बाहर हो गए हैं।
इस बदलाव ने इन स्कूलों में पढ़ रहे 800 बच्चों की शिक्षा पर संकट खड़ा कर दिया है, और बेदखली का खतरा मंडरा रहा है। स्कूल शिक्षा विभाग की चुप्पी और प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के बार-बार पत्राचार के बावजूद कोई ठोस समाधान नहीं निकाला गया है, जिससे बच्चों और उनके अभिभावकों में बेचैनी बढ़ रही है।
ये खबर भी पढ़ें... छत्तीसगढ़ में फर्जी नौकरी का जाल, तीन जिलों के शिक्षा अधिकारियों पर जेल की तलवार
RTE से बाहर होने का प्रभाव
इन 50 स्कूलों में पहले RTE कानून के तहत जिला शिक्षा अधिकारियों (DEO) के माध्यम से 800 बच्चों को मुफ्त प्रवेश दिया गया था। उस समय ये स्कूल सामान्य श्रेणी में थे और RTE के प्रावधानों का पूरी तरह पालन कर रहे थे। लेकिन शैक्षणिक सत्र के बीच में इन स्कूलों को अल्पसंख्यक दर्जा मिलने के बाद इन्हें केंद्र सरकार के RTE कानून से बाहर कर दिया गया।
परिणामस्वरूप, इन स्कूलों के नाम RTE पोर्टल से हटा दिए गए हैं, और अब इनमें नए बच्चों का प्रवेश बंद हो गया है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन स्कूलों में पहले से पढ़ रहे 800 बच्चों की शिक्षा की निरंतरता को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं बनाई गई है। इस बदलाव ने बच्चों के भविष्य पर गहरा संकट पैदा कर दिया है।
ये खबर भी पढ़ें... स्कूलों का दौरा कर रहे थे शिक्षा अधिकारी... कई शालाओं में ताला जड़ा देख लिया बड़ा एक्शन
अगर स्कूल प्रबंधन इन बच्चों को मुफ्त पढ़ाने में असमर्थ होता है और फीस की मांग करता है, तो आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए इसे वहन करना असंभव होगा। ऐसी स्थिति में बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जो RTE कानून के मूल उद्देश्य को ही निष्फल कर देगा।
स्कूलों को फीस भुगतान में देरी
प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने बताया कि इन स्कूलों को RTE के तहत बच्चों को पढ़ाने के लिए सरकार से मिलने वाली प्रतिपूर्ति राशि (फीस) पिछले तीन वर्षों से लंबित है। अल्पसंख्यक दर्जे के कारण स्कूल अब इस राशि के लिए पात्र नहीं हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति डगमगा गई है।
गुप्ता ने चेतावनी दी है कि बिना सरकारी सहायता के स्कूल प्रबंधन इन बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना जारी नहीं रख सकता। अगर अभिभावकों पर फीस का दबाव डाला गया और वे इसे चुकाने में असमर्थ रहे, तो बच्चों को स्कूल से निकालने की नौबत आ सकती है। यह स्थिति न केवल बच्चों की शिक्षा को प्रभावित करेगी, बल्कि उनके भविष्य को भी जोखिम में डालेगी।
शिक्षा विभाग की उदासीनता
प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन ने इस मुद्दे को कई बार स्कूल शिक्षा विभाग के सामने उठाया है। इसके तहत पत्र 10 जून 2024, 21 मार्च 2025, और 26 मार्च 2025 को भेजे गए। मगर, विभाग की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है। एसोसिएशन ने साफ कहा है कि अगर इन बच्चों की पढ़ाई में कोई व्यवधान हुआ, तो इसकी पूरी जिम्मेदारी स्कूल शिक्षा विभाग की होगी।
विभाग की इस चुप्पी ने न केवल अभिभावकों बल्कि स्कूल प्रबंधनों को भी असमंजस में डाल दिया है। RTE कानून के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा सुनिश्चित करना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है। फिर भी, इन स्कूलों के दर्जे में बदलाव के बाद बच्चों की शिक्षा को बचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
ये खबर भी पढ़ें... बोर्ड परीक्षा में खराब रिजल्ट पर CM का एक्शन, शिक्षा अधिकारी को हटाया
बच्चों और अभिभावकों की चिंता
इन 800 बच्चों में से अधिकांश गरीब और वंचित परिवारों से आते हैं, जिनके लिए RTE के तहत मुफ्त शिक्षा एकमात्र रास्ता था। इन परिवारों के लिए निजी स्कूलों की फीस वहन करना संभव नहीं है। अगर स्कूल प्रबंधन फीस की मांग करता है या बच्चों को स्कूल से निकालता है, तो इन बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट सकती है। अभिभावकों का कहना है कि सरकार को इन बच्चों को वैकल्पिक स्कूलों में स्थानांतरित करने या स्कूलों को फीस का भुगतान सुनिश्चित करने की व्यवस्था करनी चाहिए।
RTE कानून और अल्पसंख्यक दर्जे का टकराव
RTE कानून 2009 के तहत गैर-अल्पसंख्यक निजी स्कूलों को अपने कुल सीटों का 25% हिस्सा आर्थिक रूप से कमजोर और वंचित वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित करना अनिवार्य है। इन बच्चों की फीस की प्रतिपूर्ति सरकार द्वारा की जाती है।
अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त स्कूलों पर यह प्रावधान लागू नहीं होता, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत उन्हें अपनी शैक्षणिक नीतियां तय करने की स्वायत्तता प्राप्त है। इस प्रावधान के कारण इन 50 स्कूलों को RTE के दायरे से बाहर कर दिया गया, जिसने 800 बच्चों की शिक्षा को खतरे में डाल दिया है।
पढ़ाई की निरंतरता सुनिश्चित करने की जरूरत
इस मामले में स्कूल शिक्षा विभाग की जवाबदेही पर सवाल उठ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को इन बच्चों की पढ़ाई की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। संभावित समाधानों में शामिल हो सकते हैं:इन बच्चों को अन्य RTE पात्र स्कूलों में स्थानांतरित करना। स्कूलों को लंबित फीस का भुगतान करना, ताकि वे बच्चों को मुफ्त पढ़ाना जारी रख सकें।
अल्पसंख्यक दर्जे वाले स्कूलों के लिए विशेष नीति बनाना, जो RTE के तहत पहले से पढ़ रहे बच्चों को प्रभावित न करे।
स्थानीय स्तर पर बढ़ता रोष
छत्तीसगढ़ के अभिभावकों और सामाजिक संगठनों ने इस मामले को लेकर सरकार पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि शिक्षा के अधिकार जैसे महत्वपूर्ण कानून को लागू करने में इस तरह की लापरवाही अस्वीकार्य है। कई अभिभावकों ने मांग की है कि सरकार तुरंत हस्तक्षेप कर इन बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करे।
FAQ
thesootr links
- मध्य प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- राजस्थान की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- रोचक वेब स्टोरीज देखने के लिए करें क्लिक
- एजुकेशन की खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें
- निशुल्क वैवाहिक विज्ञापन और क्लासिफाइड देखने के लिए क्लिक करें
द सूत्र कीt खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें
अगर आपको ये खबर अच्छी लगी हो तो 👉 दूसरे ग्रुप्स, 🤝दोस्तों, परिवारजनों के साथ शेयर करें📢🔃 🤝💬👩👦👨👩👧👧
छत्तीसगढ़ आरटीई | आरटीई अल्पसंख्यक स्कूल | स्कूल शिक्षा विभाग छत्तीसगढ़