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एक तरफ भारत चंद्रयान, G20 और डिजिटल इंडिया के युग में आगे बढ़ रहा है, वहीं छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के पलारी विकासखंड का एक गांव आज भी बांस और लकड़ी के पुल के भरोसे अपनी दिनचर्या जी रहा है।
ग्राम पंचायत छेड़कडीह, जिला मुख्यालय से महज 35 किलोमीटर दूर है, लेकिन हालात ऐसे हैं जैसे आज़ादी के शुरुआती दिनों में रहे हों।
गांव के बीचोबीच बहने वाला बरसाती नाला, हर साल बरसात के दिनों में 8 से 10 फीट तक पानी से लबालब भर जाता है। इससे गांव के दो वार्ड जिनमें करीब 50 परिवार रहते हैं मुख्य गांव से कट जाते हैं, और लोग शेष दुनिया से जैसे अलग-थलग पड़ जाते हैं।
बच्चों की शिक्षा सबसे ज्यादा प्रभावित
बारिश के महीनों में सबसे ज्यादा स्कूल जाने वाले बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है। नाले में पानी और तेज बहाव के कारण शिक्षक भी उन्हें स्कूल न आने की सलाह देते हैं, जिससे बच्चों की शैक्षणिक वर्ष का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित हो जाता है।
कलेक्टर द्वारा भी आदेश है कि भारी बारिश के समय जोखिम वाले मार्गों से बच्चों को स्कूल न भेजा जाए। इसलिए आंगनबाड़ी और प्राथमिक स्कूल दोनों लगभग बंद जैसे हो जाते हैं।
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महिलाओं, प्रसूताओं और बुजुर्गों की मुश्किलें
इस गांव की प्रसवकालीन महिलाएं, खास तौर पर सबसे अधिक प्रभावित होती हैं। ग्रामीण बताते हैं कि प्रसव के दो महीने पहले महिलाओं को रिश्तेदारों के यहां भेजना या खाट पर लादकर नाले के पार ले जाना मजबूरी हो जाती है। गांव तक न तो 108 एंबुलेंस पहुंच पाती है और न ही कोई डॉक्टर।
बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों के लिए दवाइयां और इलाज समय पर मिल पाना लगभग असंभव होता है।
मवेशियों के बहने तक की घटनाएं, चरवाहे परेशान
गांव के दूध विक्रेता और मवेशी चराने वाले चरवाहों को भी इस नाले से रोज़ गुजरना पड़ता है। कई बार तेज बहाव में मवेशियों के बहने की घटनाएं भी सामने आई हैं। ग्रामीणों के अनुसार, "गौठान तो बनाया गया है, लेकिन वहां तक पहुंचना नाले की वजह से खतरे से खाली नहीं।"
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अस्थाई समाधान बना स्थायी मुसीबत
ग्रामीण हर साल लकड़ी और बांस से अस्थाई पुल बनाते हैं, लेकिन यह सिर्फ पैदल चलने वालों के लिए पर्याप्त है। यह भी हर बार बरसात में ढह जाता है या बह जाता है। गांव के सरपंच और पंचों का कहना है कि उन्होंने सांसद, विधायक, मंत्री और कलेक्टर तक गुहार लगाई है, लेकिन कहीं से कोई सुनवाई नहीं हुई।
जान जोखिम में डाल रहे बच्चे
गांव के छोटे बच्चे जब स्कूल जाते हैं, तो नाले को पार करते समय कई बार फिसलकर गिर चुके हैं। गीली और कीचड़भरी मिट्टी, तेज बहाव और फिसलन के चलते हर कदम जोखिम से भरा होता है।
छेड़कडीह में स्कूल और आंगनबाड़ी दोनों ही नाले के पार स्थित हैं, इसलिए बच्चों को शिक्षा के लिए खतरनाक रास्तों से रोज़ गुजरना पड़ता है।
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क्या है ग्रामीणों की मांगे?
ग्रामीणों ने प्रशासन से अपील की है कि इस नाले पर पक्का पुल या एक स्थायी सुरक्षित मार्ग बनाया जाए। उनका कहना है कि यदि जल्द समाधान नहीं हुआ, तो वे जिला मुख्यालय जाकर धरना-प्रदर्शन करने को मजबूर होंगे।
भारत ने विज्ञान, तकनीक और अंतरिक्ष की दुनिया में भले ही बड़ी छलांगें लगाई हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ के छेड़कडीह जैसे गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। 78 साल की आज़ादी के बाद भी यदि गांव के 250 से ज्यादा लोग बारिश में कटकर जीवन जीने को मजबूर हैं, तो यह किसी भी व्यवस्था के लिए चेतावनी से कम नहीं।
बलौदाबाजार न्यूज | Balodabazar Gram Panchayat Chhedakdih | Balodabazar News
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