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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अगर किसी मृत्युपूर्व बयान को विश्वसनीय और प्रमाणिक पाया जाता है, तो उस पर भरोसा किया जा सकता है और उसी के आधार पर दोषसिद्धि की जा सकती है, भले ही कोई अन्य पुष्टि न हो। यह टिप्पणी हाईकोर्ट ने दहेज हत्या के एक मामले में सुनवाई के दौरान की, जिसमें पति और उसकी मां को दोषी ठहराते हुए निचली अदालत द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा गया है।
क्या है मामला?
यह मामला जांजगीर-चांपा जिले के मालखरौदा क्षेत्र के ग्राम धमनी का है। यहां रहने वाले धनेश्वर यादव की शादी राधा बाई से 16 अप्रैल 2015 को हुई थी। शादी के कुछ समय बाद ही राधा को दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा। उसके पति और सास मंगली बाई अक्सर गाली-गलौज और मारपीट करते थे और मायके से पैसे लाने के लिए दबाव बनाते थे।
आग के हवाले कर दी गई बहू
1 सितंबर 2021 को, राधा बाई को मिट्टी का तेल डालकर जला दिया गया। उसे गंभीर हालत में रायपुर के डीकेएस अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 6 सितंबर 2021 को उसकी मौत हो गई। इस दौरान वार्ड ब्वाय ओमप्रकाश वर्मा की सूचना पर गोलबाजार थाना, रायपुर में मामला दर्ज किया गया। इसके बाद शव का पोस्टमार्टम कराया गया और घटना की जांच शुरू की गई।
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अभियोजन और जांच की कार्यवाही
मालखरौदा थाना में आरोपियों के खिलाफ धारा 304बी (दहेज मृत्यु), 302 (हत्या), 34 (सामूहिक इरादा) के तहत मामला दर्ज किया गया।
आरोपी धनेश्वर यादव से घटना में उपयोग की गई माचिस, जली हुई साड़ी, प्लास्टिक की स्प्राइट बोतल, आदि जब्त की गई।
जांच पूरी होने के बाद आरोप पत्र कोर्ट में पेश किया गया।
प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश, सक्ती ने दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
हाईकोर्ट में अपील और तर्क
दोषियों ने हाईकोर्ट में अपील दायर कर कहा कि घटना 1 सितंबर को हुई और मौत 6 सितंबर को, लेकिन एफआईआर 15 जनवरी 2022 को दर्ज की गई, यानी करीब साढ़े तीन महीने बाद।
अभियोजन पक्ष दहेज हत्या को साबित नहीं कर सका। मृत्युपूर्व बयान 2 सितंबर को दर्ज हुआ, लेकिन एफआईआर काफी बाद में दर्ज की गई, इसलिए उस पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट का फैसला
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की खंडपीठ ने पाया कि मृत्युपूर्व बयान स्पष्ट, सुसंगत और विश्वसनीय है। विचारण न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि साक्ष्यों के समुचित मूल्यांकन पर आधारित है। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय दिशा-निर्देशों के अनुसार है। इसलिए, दोषियों की सजा और दोषसिद्धि को पूरी तरह सही मानते हुए अपील खारिज कर दी गई।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का यह फैसला साफ करता है कि अगर किसी पीड़िता का मृत्युपूर्व बयान सच्चा और भरोसेमंद है, तो उस पर कानूनी रूप से दोषसिद्धि की जा सकती है। यह निर्णय दहेज प्रताड़ना और महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है।
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