हाउसिंग बोर्ड ने जंगल में चुपचाप बना दी कॉलोनी

छत्तीसगढ़ के बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर के बोधघाट में मिश्रित आवासीय योजना के अंर्तगत हाउसिंग बोर्ड ने चुपचाप जंगल में कॉलोनी बना दी। जंगल की जमीन पर कॉलोनी बनाने के लिए वन विभाग की अनुमति लेना भी जरूरी नहीं समझा गया।

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Krishna Kumar Sikander
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Housing Board quietly built a colony in the forest the sootr
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मनीष को अपने मकान की मरम्मत के लिए लोन चाहिए तो धीरेंद्र अपना मकान बेचना चाहते हैं, लेकिन मनीष को लोन नहीं मिल सकता है और धीरेंद्र अपना ही मकान बेच नहीं सकते हैं, क्योंकि मकान तो उनके नाम पर है। मगर, जिस जमीन पर मकान बना है वह वन विभाग की है। ऐसा नहीं है कि दोनों ने वन विभाग की जमीन पर अतिक्रमण करके यह मकान बनाया है, बल्कि दोनों ने ही मकान हाउसिंग बोर्ड से खरीदा था।

दरअसल हाउसिंग बोर्ड ने 1971 में बिना वन विभाग की अनुमति के ही जंगल के बीच कॉलोनी बना दी और कॉलोनी में बनाए गए मकानों को भी बेच दिया। हाउसिंग बोर्ड ने इस कालोनी में मकान लेने वालों को सीधे मालिकाना हक देने की जगह लीज पेपर थमा दिया। 

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वन विभाग से नहीं ली गई अनुमति 

बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर के बोधघाट में मिश्रित आवासीय योजना के अंर्तगत हाउसिंग बोर्ड ने चुपचाप जंगल में कॉलोनी बना दी। जंगल की जमीन पर कॉलोनी बनाने के लिए वन विभाग की अनुमति लेना भी जरूरी नहीं समझा गया। गुपचुप तरीके कॉलोनी में करीब 300 मकान बनाए गए। जंगलों में प्रकृति के बीच बने मकानों लोगों ने बड़े शौक से खरीदा था।

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उस समय हाउसिंग बोर्ड ने एलआईजी मकान करीब एक लाख रुपये में बेचा। कालोनी में एचआई, एमआईजी, इडब्ल्यूएस एवं एलआईजी मकान भी हैं। उस समय हाउसिंग बोर्ड ने लोगों को अवैध तरीके से बनाए गए मकान के बारे में जानकारी नहीं दी थी। लोगों को यह नहीं बताया गया कि मकान तो उनके नाम होगा, लेकिन जमीन वन विभाग की ही रहेगी। 

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मकान अब तक फ्री-होल्ड नहीं

जंगल में अवैध तरीके से बनाई कॉलोनी के मकानों को बेच तो दिया गया, मगर ये मकान अब तक फ्री-होल्ड नहीं हो सके। आज भी सभी मकान लीज पर हैं। जब मकान बेचना हो तो रजिस्ट्री की जगह लीज रिनीवल कराया जाता है। इस तरह सरकार के राजस्व को भी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। 54 साल पहले बनी इस कॉलोनी का पेंच अब जाकर फंस गया है।

आज लोग खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। वे मकान की मरम्मत के लिए बैंकों से कर्ज नहीं से सकते हैं, क्योंकि जमीन वन विभाग की है। वहीं जो लोग दूसरे शहरों में बस चुके हैं, वे अपना ही मकान बेच नहीं सकते। खरीद-बिक्री नहीं होने से सरकार को रजिष्ट्री के एवज में मिलने वाला राजस्व नहीं आ रहा है। 

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जांच टीम बनाएगा वन विभाग

इस संबंध में हाऊसिंग बोर्ड जगदलपुर के अपर आयुक्त एचके वर्मा से जानने का प्रयास किया गया तो उन्होंने अनभिज्ञता जताई। उन्होंने बताया कि मामला सामने आने के बाद बोधघाट कालोनी के कागजात को देखा गया तो उन्हें भी इसकी जानकारी मिली। कागजातों में यह कालोनी वन भूमि में वर्ष 1971 में बनाई गई थी। मगर, इसके लिए वन विभाग के कोई स्वीकृति नहीं ली गई थी। वन विभाग से उक्त भूमि मिलने तक फ्री होल्ड नहीं किया जा सकता है, लेकिन मकान मालिकों को लीज रिनीवल का नोटिस जरूर दिया जाएगा।

वहीं, वन विभाग जगदलपुर के मुख्य वन संरक्षक आरसी दुग्गा से भी बात की गई। दुग्गा ने बताया कि बोधघाट का हाऊसिंग बोर्ड कालोनी जंगल की जमीन पर होने का संज्ञान आया है। इसके लिए एक टीम गठित कर मामले की जांच कराएंगे।

महत्वपूर्ण बात यह है कि जब कालोनी बनाई गई थी, तब यह अविभाजित मध्य प्रदेश का हिस्सा था। यह कॉलोनी किसके आदेश पर बनी और उस समय वन विभाग के अधिकारी क्यों खामोश रहे, यह जांच का विषय है। 

 

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