जीपीएस ट्रैकर लगाने के नाम पर हो रही अवैध वसूली...ट्रांसपोर्टर बोले

छत्तीसगढ़ यातायात महासंघ ने आरोप लगाया है कि जीपीएस ट्रैकर लगाए जाने के नाम पर वेंडर कंपनी की ओर से अवैध वसूली की जा रही है। हालांकि, परिवहन विभाग ने इन आरोपों से इनकार किया है।

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Khushboo thakre
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Illegal recovery is being done in the name of installing GPS tracker : छत्तीसगढ़ शासन द्वारा जारी आदेश के बाद सभी पुरानी गाड़ियों में जीपीएस ट्रैकर और पैनिक बटन लगाए जा रहे हैं। इसको लेकर छत्तीसगढ़ यातायात महासंघ अध्यक्ष अनवर अली और ट्रक ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद उपाध्याय ने अवैध वसूली का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जीपीएस ट्रैकर और पैनिक बटन लगाने के नाम पर वसूली का खेल चल रहा है।

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जीपीएस ट्रैकर लगाने वाली कंपनियां परिवहन विभाग द्वारा जारी किए गए रेट से ज्यादा वसूली कर रही हैं। परिवहन विभाग द्वारा जारी कम्पनियों के रेट कि बात करें तो 13 हजार 500 से लेकर 11 हजार 500 तक कंपनियों ने अपना सालाना रेट रखा है।

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ये रेट सिर्फ दिखाने के लिए है। जीपीएस ट्रैकर लगाने के नाम 15 हजार रुपए लिए जा रहे हैं। इसके साथ ही पैनिक बटन लगाने के भी अलग से पैसे देने पड़ रहे हैं। वहीं इस पर आरटीओ ऑफिसर आशीष देवांगन ने कहा कि कोई वसूली का काम नहीं चल रहा है। कंपनियां अपने रेट के हिसाब से ही जीपीएस ट्रैकर लगा रही हैं। 

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केंद्र सरकार ने जारी किया आदेश

केंद्र सरकार ने 1 जून 2023 से सभी ट्रक, बसों और कारों में जीपीएस ट्रैकर लगाना अनिवार्य कर दिया। पहले ये आदेश सिर्फ यात्री बसों के लिए था। बता दें कि 2019 से पहले की जो पुरानी गाड़ियां हैं, उनमें जीपीएस ट्रैकर लगाना अनिवार्य है। भूपेश बघेल कि सरकार ने सिर्फ यात्री गाड़ियों में ही जीपीएस ट्रैकर लगावाए हैं। 

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अब तक 10 हजार से ज्यादा गाड़ियों में लगा जीपीएस ट्रैकर

परिवहन विभाग के आईटी विभाग के अधिकारी योगेश्वरी वर्मा ने बताया कि सरकार के आदेश के बाद अभी सिर्फ 6 महीने हुए हैं। इन 6 महीनों में ट्रक और बसों 10 हजार से ज्यादा गाड़ियों में जीपीएस ट्रैकर और पैनिक बटन लगाए गए हैं। जीपीएस ट्रैकर से गाड़ी के मेंटेनेंस और फिटनेस का भी पता आसानी लगाया जा सकता है। 


पिछली सरकार में भी लगे थे जीपीएस ट्रैकर...

पिछली कांग्रेस सरकार में भी जीपीएस ट्रैकर लगाए गए थे। परिवहन विभाग ने सभी परिवहन से जुड़ी गाड़ियों में जीपीएस ट्रैकर लगाए थे। परिवहन विभाग द्वारा वेंडर तय किए थे। उन वेंडरों से 50 लाख डिपॉजिट भी करवाया था। वेडरों ने अपना जीपीएस लगाया और ट्रांसपोर्ट मालिकों से 8500 हजार रुपए शुल्क वसूल भी किया था।  दो साल बाद ये वेंडर भाग गए। इसके बाद जीपीएस ट्रैकर लगना बंद हो गया।

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