छत्तीसगढ़ खनिज संपदा से भरपूर प्रदेश है। यही उसकी पहचान और ताकत है। लेकिन यही विशेषता आदिवासियों के लिए जानलेवा साबित हो रही है। रावघाट पहाड़ी से भिलाई स्टील प्लांट के लिए जा रहा लोहा यहां के आदिवासियों का दम घोंट रहा है। स्कूली बच्चों की जान ले रहा है। रावघाट से स्टील प्लांट तक इस लोहे को ट्रकों के जरिए भेजा जा रहा है।
रोजाना तीन सौ ट्रक 52 गांवों और 50 हजार की आबादी के बीच से गुजरते हैं। लोहे की धूल यहां के लोगों की सांसों में समा रही है तो ट्रक के पहिए स्कूलों बच्चों को रौंद रहे हैं। रेलवे के जरिए लौह अयस्क के परिवहन की बात हुई थी लेकिन यह परिवहन ट्रकों से हो रहा है। एनजीटी ने इसके नियंत्रण का आदेश दे दिया लेकिन इस फैसले को भिलाई स्टील प्लांट ने ठेंगा दिखा दिया।
भिलाई स्टील प्लांट बना जानलेवा
छत्तीसगढ़ की रावघाट पहाड़ी पूरे देश में आयरन के भंडार के लिए जानी जाती है। सरकार के भिलाई स्टील प्लांट में बनने वाला लोहा यहीं से आता है। लोहे का खनन करने की इजाजत इस शर्त पर दी गई थी कि लौह अयस्क रेलवे के जरिए भिलाई स्टील प्लांट तक आएगा। लेकिन दल्ली-रेवघाट की रेल लाइन आज तक नहीं बन पाई है। रावघाट संघर्ष समिति के गीत कहते हैं कि इस रेल लाइन के न बनने से केंद्र सरकार ने भिलाई स्टील प्लांट को ट्रकों के जरिए आयरन का परिवहन करने की इजाजत दे दी।
इजाजत में ये कहा गया कि उनको ट्रकों से परिवहन अंतागढ़ तक करना है जिसकी दूरी 58 किलोमीटर है। लेकिन ये रास्ता संकरा होने के कारण भिलाई स्टील प्लांट ने लंबा रास्ता अपना लिया। रावघाट संघर्ष समिति के अध्यक्ष सोमनथ उसेंडी कहते हैं कि भिलाई स्टील प्लांट ने बिना पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी के अवैध रुप से 232 किलोमीटर के लंबे रास्ते पर अवैध रुप से ट्रकों का संचालन शुरु कर दिया।
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लोगों का दम घोंट रहा लोहा
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन से जुड़े विजय भाई कहते हैं कि इस रास्ते पर 52 गांव और 50 हजार की आबादी सीधे रुप में प्रभावित हो रही है। इन लोगों की सांसों में लोहे की धूल जा रही है। यहां के लोग दमा और टीबी के मरीज हो गए हैं। रोजाना गुजरते तीन सौ ट्रकों की धूल के गुबार में न गांव नजर आता है और न ही रास्ता।
इन ट्रकों ने यहां के रास्तों को जर्जर कर दिया है। ये धूल इनकी जमीन को बंजर कर रही है। इनके खेतों की फसल चौपट हो रही है। इन गड्डों वाले रास्तों पर कई स्कूल पड़ते हैं। ये ट्रक इन स्कूली बच्चों की जान ले रहे हैं। 16 बच्चों समेत इन रास्तों पर 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और भिलाई स्टील प्लांट को इसकी कोई परवाह ही नहीं है। यहां के लोग कहते हैं कि कंपनियों ने लोगों की जान की कीमत पर लूटमार मचा रखी है।
भिलाई स्टील प्लांट ने एनजीटी को दिखाया ठेंगा
रावघाट संघर्ष समिति ने इसके खिलाफ एनजीटी में याचिका दायर की। एनजीटी ने हाल ही में कई अहम फैसले दिए। एडवोकेट शालिनी गेरा कहती हैं कि एनजीटी ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वो प्रदेश भर में खनिज परिवहन में लगे भारी ट्रकों पर नियंत्रण रखे। उनकी स्पीड पर रोक लगाने के लिए वीटीएस सिस्टम लगाया जाए।
स्कूलों के समय पर ट्रकों का आना जाना बंद किया जाए। प्रदूषण नापने के लिए यंत्र लगाए जाएं। और जब प्रदूषण मानक स्तर से ज्यादा हो जाए तो तत्काल इनका परिवहन रोका जाए। एनजीटी के आदेश के बाद भी न राज्य सरकार ने और न ही भिलाई स्टील प्लांट ने इसका पालन किया।
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इन समस्याओं से जूझ रहा छत्तीसगढ़
ये समस्याएं सिर्फ रावघाट तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि पूरा प्रदेश इससे जूझ रहा है फिर चाहे यह ट्रक चाहे बैलाडीला में चलते हों या फिर रायगढ़ में। खनिज परिवहन कर रहे ट्रकों के गुजरनें से लोग परेशान हैं। सड़कें खतरनाक हो गई हैं और लोगों को सांसों से जुड़ी बीमारियां हो गई हैं। इन पर न तो सरकार ध्यान दे रही है और न ही वे कंपनियां जो छत्तीसगढ़ खोदने में लगी हुई हैं।
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