सुकमा तेंदूपत्ता बोनस घोटाला में DFO के नेतृत्व में 3.92 करोड़ की लूट, आदिवासियों के हक पर डाका

छत्तीसगढ़ के सुकमा में तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए आवंटित 3.92 करोड़ की बोनस राशि में बड़े पैमाने पर गबन का मामला सामने आया है। EOW की 4500 पन्नों की चार्जशीट ने इस घोटाले के मुख्य आरोपी, तत्कालीन डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर की करतूतों को उजागर किया है।

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Krishna Kumar Sikander
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छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए आवंटित बोनस राशि में बड़े पैमाने पर गबन का मामला सामने आया है। आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) की 4500 पन्नों की चार्जशीट ने इस घोटाले के मास्टरमाइंड, तत्कालीन डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO) अशोक कुमार पटेल, और उनके सहयोगियों की करतूतों का खुलासा किया है। इस घोटाले में 3.92 करोड़ रुपये से अधिक की राशि का गबन किया गया, जो आदिवासी संग्राहकों तक पहुंचने के बजाय अधिकारियों, समिति प्रबंधकों, पत्रकारों और राजनेताओं के बीच बांट लिया गया।

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राशि संग्राहकों तक पहुंची ही नहीं

सुकमा जिले में तेंदूपत्ता संग्राहकों को 2021 और 2022 के सीजन के लिए बोनस राशि में वितरित करने का नियम लागू था। इस राशि का लाभ 67,732 आदिवासी परिवारों को मिलना था, जिसमें 2021 के लिए 4.51 करोड़ और 2022 के लिए 3.70 करोड़ रुपये शामिल थे। लेकिन, EOW की जांच में पता चला कि यह राशि संग्राहकों तक पहुंची ही नहीं। इसके बजाय, DFO अशोक कुमार पटेल ने वन विभाग के अन्य अधिकारियों और 17 प्राथमिक लघु वनोपज सहकारी समितियों के प्रबंधकों के साथ मिलकर एक आपराधिक साजिश रची। इस साजिश के तहत नकली दस्तावेजों के जरिए 7 करोड़ रुपये की राशि में से 3.92 करोड़ रुपये का गबन किया गया।

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EOW की चार्जशीट के अनुसार, DFO पटेल को इस घोटाले से 91.90 लाख रुपये मिले, जबकि 7.5 लाख रुपये राजनेताओं और 5.9 लाख रुपये पत्रकारों को दिए गए। बाकी 2.82 करोड़ रुपये समिति प्रबंधकों के व्यक्तिगत खर्चों में खपाए गए। यह राशि नक्सल प्रभावित और दुर्गम क्षेत्रों जैसे गोलापल्ली, मरईगुड़ा, किस्टाराम, चिंतलनार, भेज्जी, जगरगुंडा, और पोलमपल्ली में संग्राहकों के लिए थी, जहां स्थानीय आदिवासियों को बोनस स्कीम की जानकारी तक नहीं दी गई।

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कैसे हुआ तेंदूपत्ता बोनस घोटाला?

EOW की जांच में सामने आया कि DFO अशोक कुमार पटेल ने समितियों से कमीशन के नाम पर मनमानी राशि वसूली। अति संवेदनशील और दुर्गम क्षेत्रों की समितियों से बोनस राशि का 50% कमीशन लिया गया, जबकि सुलभ क्षेत्रों की समितियों से 10-15% वसूला गया। अधिकारियों और समिति प्रबंधकों ने मिलकर समितियों के खातों से नकद निकासी की और इस राशि को आपस में बांट लिया। जांच में यह भी पता चला कि कुछ राशि का उपयोग निजी कार्यों, जैसे संपत्ति खरीद और अन्य व्यक्तिगत खर्चों, के लिए किया गया।

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EOW की कार्रवाई और गिरफ्तारियां

घोटाले का खुलासा एक मुखबिर की सूचना के आधार पर हुआ, जिसके बाद EOW ने गोपनीय जांच शुरू की। 8 अप्रैल 2025 को भारतीय दंड संहिता की धारा 409 और 120बी के तहत FIR दर्ज की गई। 10 और 11 अप्रैल 2025 को सुकमा, दोरनापाल, और कोंटा सहित 12 स्थानों पर छापेमारी की गई, जिसमें 26.63 लाख रुपये नकद, मोबाइल फोन, बैंक दस्तावेज, और संपत्ति से संबंधित रिकॉर्ड जब्त किए गए।

27 जून 2025 को EOW ने DFO अशोक कुमार पटेल सहित 12 लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें 4 वनकर्मी और 7 प्राथमिक वनोपज समिति प्रबंधक शामिल थे। पटेल को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13(1)(ए), 13(2), और भारतीय दंड संहिता की धारा 409 व 120बी के तहत गिरफ्तार किया गया। उन्हें 23 अप्रैल 2025 तक पुलिस हिरासत में भेजा गया। कुछ आरोपी अभी भी फरार हैं, जिनकी तलाश जारी है।

15 जुलाई 2025 को EOW ने दंतेवाड़ा के विशेष न्यायालय में 4500 पन्नों की चार्जशीट पेश की, जिसमें 14 आरोपियों के खिलाफ सबूत पेश किए गए। जांच में 8 समितियों में 3.92 करोड़ रुपये के गबन की पुष्टि हुई, हालांकि कुल गबन राशि 7 करोड़ रुपये तक हो सकती है।

आदिवासियों का शोषण और विपक्ष का हंगामा

नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने इस घोटाले को आदिवासी संग्राहकों के साथ विश्वासघात करार देते हुए राज्यपाल रमेन डेका को पत्र लिखकर तत्काल कार्रवाई की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि वन विभाग ने विधानसभा में यह दावा किया था कि 100% बोनस राशि वितरित हो चुकी है, जो पूरी तरह गलत था। पूर्व विधायक मनीष कुंजाम, जिन्होंने सबसे पहले इस घोटाले को उजागर किया, ने भी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को पत्र लिखकर निष्पक्ष जांच और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की।
कुंजाम ने यह भी सवाल उठाया कि जब उन्होंने स्वयं इस घोटाले की शिकायत की थी, तो उनके घर पर 10 अप्रैल 2025 को EOW और ACB की छापेमारी क्यों की गई, जिसमें कुछ नहीं मिला। उन्होंने आरोप लगाया कि वन मंत्री केदार कश्यप, जो सुकमा के प्रभारी मंत्री भी हैं, की जानकारी के बिना इतना बड़ा गबन संभव नहीं था।

आदिवासियों के हक पर डाका

यह घोटाला न केवल आर्थिक अपराध है, बल्कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के आदिवासी समुदाय के साथ अन्याय भी है। गोलापल्ली, मरईगुड़ा, किस्टाराम, चिंतलनार, भेज्जी, जगरगुंडा, और पोलमपल्ली जैसे क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों को तेंदूपत्ता संग्रहण उनकी आजीविका का प्रमुख साधन है। बोनस राशि उनके लिए महत्वपूर्ण आर्थिक सहायता थी, जो अधिकारियों की मिलीभगत के कारण उन तक नहीं पहुंची। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें इस स्कीम की जानकारी तक नहीं दी गई, जिससे साफ होता है कि यह साजिश सुनियोजित थी।

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी छापेमारी 

EOW की जांच अभी जारी है, और फरार आरोपियों की तलाश में टीमें नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी छापेमारी कर रही हैं। विपक्ष ने मांग की है कि 8.21 करोड़ रुपये की पूरी बोनस राशि पुनः जारी की जाए और संग्राहकों को प्राथमिकता के आधार पर वितरित की जाए। साथ ही, दोषियों पर कड़ी कार्रवाई और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सख्त निगरानी तंत्र की मांग उठ रही है।

वन विभाग के भ्रष्टाचार 

सुकमा तेंदूपत्ता बोनस घोटाला छत्तीसगढ़ में वन विभाग के भ्रष्टाचार और आदिवासी समुदाय के शोषण का एक गंभीर उदाहरण है। DFO अशोक कुमार पटेल और उनके सहयोगियों की इस साजिश ने न केवल सरकारी धन का दुरुपयोग किया, बल्कि हजारों आदिवासी परिवारों के हक को भी छीना। EOW की कार्रवाई और चार्जशीट ने इस घोटाले के कई पहलुओं को उजागर किया है, लेकिन पूर्ण न्याय तब होगा जब संग्राहकों को उनकी पूरी राशि मिलेगी और सभी दोषियों को सजा दी जाएगी।

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