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रायपुर : लाल आतंक के पर्याय नक्सलियों की प्रेम कहानियां अब बाहर आ रही हैं। अबूझमाड़ के जंगल में नक्सलियों के हाथ में हथियार जरुर होते हैं लेकिन दिल में प्यार भी होता है। इसी प्यार की खातिर दो नक्सलियों ने सरेंडर किया। सरेंडर इसलिए ताकि वे भी प्यार भरी जिंदगी जी सकें। नक्सलवाद में शादी तो मंजूर है लेकिन बच्चे मंजूर नहीं। अब ये प्रेमी जोड़ा अपना परिवार बढ़ाना चाहता है। पति आठ लाख का है तो पत्नी पर पांच लाख का ईनाम था। सरेंडर के बाद इन्होंने अपनी लव स्टोरी साझा की।
नक्सलियों की लव स्टोरी
ये दो नक्सलियों की लव स्टोरी है जो अबूझमाड़ के जंगल में परवान चढ़ी। अमित को पहली नजर में ही अरुणा से प्यार हो गया। अमित ने बताया कि साल 2019 से पहले गढ़चिरौली में एक पार्टी मीटिंग के दौरान अरुणा से मुलाकात हुई। पहली नजर में ही वो मुझे पसंद आ गई। वो नक्सल संगठन की मीटिंग के दौरान खाने का बंदोबस्त करती थी।
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गांव-गांव से सामान लाने का काम करती थी। मैं किसी न किसी तरह से उससे बात करने की कोशिश करता था। वहीं जब भी उस तरफ जाना होता था तो अरुणा से जरूर मिलता था। तब तक उसे नहीं पता था कि मेरे मन में उसके लिए फीलिंग्स हैं। एक दिन बहुत हिम्मत जुटाई और अरुणा को प्रपोज कर दिया। वो हैरान रह गई।
कुछ दिनों तक उसने बात भी नहीं की। लेकिन दो महीने के बाद अरुणा ने अमित का रिश्ता कबूल कर लिया। दोनों ने शादी कर ली। नक्सलवाद का एक नियम उनके प्यार में आड़े आ गया। नियम है कि यदि पति-पत्नी दोनों लाल आतंक से जुड़े हैं तो उनको संगठन में पैरेंट्स बनने की इजाजत नहीं है। अमित की नसबंदी करवा दी गई। अब दोनों बच्चा चाहते हैं इसलिए अमित ने नसबंदी खुलवाने का फैसला किया है।
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इस तरह बने नक्सली
सरेंडर के बाद अमित सुकमा जिले के जगरगुंडा इलाके का रहने वाला है। इसकी पत्नी अरुणा लेकाम बीजापुर जिले के एक गांव की रहने वाली है। अमित ने कहा कि मैं DRG में नहीं जाना चाहता। बस पत्नी के साथ गांव में रहकर खेती-किसानी करना चाहता हूं। खुशहाल जीवन चाहता हूं। अमित ने बताया कि वो और उसकी पत्नी किसी भी मुठभेड़ में शामिल नहीं रहे हैं।
अमित संगठन में DVCM कैडर का था। इस पर 8 लाख रुपए का इनाम घोषित था। जबकि इसकी पत्नी ACM कैडर की थी। ये 5 लाख रुपए की इनामी थी। अमित कहता है- मेरी मां अकेली है। पिता, भाई, बहन कोई नहीं हैं। जब 12-13 साल का था तो ACM लिंगे संगठन में भर्ती करने मुझे ले गई।
वहीं हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी। जिसके बाद पहले बस्तर के अलग लोकेशन में मुझे भेजा गया। फिर अबूझमाड़ और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली भेजा। मेरा प्रमोशन किया गया और लीडर वेणुगोपाल के सुरक्षा गार्ड में शामिल किया गया। ज्यादातर अबूझमाड़ और गढ़चिरौली बॉर्डर पर ही थे। अब दोनों ने आगे की जिंदगी खुशहाली से बिताने के लिए आत्मसमर्पण करने का रास्ता अपनाया है।
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