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छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (MCB) जिले में मोबाइल गेम की लत ने एक 12 वर्षीय छात्र की जान ले ली। घटना मनेंद्रगढ़ के आमखेरवा स्थित केंवट मोहल्ले की है, जहाँ कक्षा 6 में पढ़ने वाले छात्र आकाश लकड़ा ने मोबाइल नहीं मिलने पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। यह घटना ना सिर्फ परिवार के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है कि किस तरह बच्चों में मोबाइल की बढ़ती लत गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या का रूप ले रही है।
यह है मामला
मजदूरी करने वाले माता-पिता के बेटे, आकाश लकड़ा को मोबाइल गेम खेलने की जबरदस्त लत लग चुकी थी। स्कूल से आने के बाद वह पढ़ाई करने के बजाय घंटों मोबाइल पर गेम खेला करता था। जब परिवार ने पढ़ाई के लिए उसे टोकना शुरू किया और मोबाइल छीनना चाहा, तो वह जिद करने लगा।
गर्मी की छुट्टियों में यह लत और बढ़ गई थी। घर में मोबाइल नहीं मिलने पर वह मोहल्ले में रहने वाले अपने चाचा के घर गया और अपने चचेरे भाई विक्रम से मोबाइल मांगने लगा। जब वहां भी मोबाइल नहीं मिला, तो गुस्से में घर लौटकर उसने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी।
पुलिस की कार्रवाई
घटना के तुरंत बाद पुलिस मौके पर पहुंची और मामले की जांच शुरू की। पूछताछ में परिजनों ने बताया कि आकाश को मोबाइल नहीं मिला था, इसी बात से आहत होकर उसने आत्महत्या कर ली। उन्होंने बताया कि आकाश अक्सर मोबाइल के लिए जिद करता था, लेकिन उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह इतना बड़ा कदम उठा लेगा।
इस घटना के बाद पूरे मोहल्ले में मातम पसरा हुआ है। आकाश की मां और पिता का रो-रो कर बुरा हाल है। घर में छोटी बहन अब भी इस हादसे को समझ पाने की स्थिति में नहीं है।
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मोबाइल की लत: बच्चों के लिए गंभीर खतरा
यह घटना उन तमाम परिवारों के लिए एक चेतावनी है, जो अपने बच्चों को व्यस्त रखने या चुप कराने के लिए उन्हें बिना निगरानी के मोबाइल थमा देते हैं। छोटे बच्चों में मोबाइल गेम की लत उनके मानसिक विकास, सामाजिक व्यवहार और सहनशीलता पर गहरा असर डालती है।
विशेषज्ञों की राय
मोबाइल एडिक्शन से बच्चों में चिड़चिड़ापन, एकाग्रता की कमी और अवसाद जैसी समस्याएं पनप सकती हैं। पेशेंस लेवल कम हो जाता है, जिससे वे छोटी-छोटी बातों में तनाव और गुस्से में आ जाते हैं। सोशल स्किल्स कमजोर हो जाती हैं क्योंकि वे बाहरी दुनिया से कटने लगते हैं।
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समाज और माता-पिता के लिए संदेश
आज की इस डिजिटल दुनिया में बच्चों को तकनीक से दूर रखना संभव नहीं, लेकिन उन्हें संतुलित उपयोग, डिजिटल डिटॉक्स, और सकारात्मक व्यवहार की दिशा में मार्गदर्शन देना अनिवार्य हो गया है। माता-पिता को चाहिए कि बच्चों के मोबाइल उपयोग पर समयसीमा तय करें। उन्हें खेलकूद, कला, संगीत या रचनात्मक गतिविधियों में व्यस्त रखें। बच्चों से खुलकर संवाद करें, उनकी भावनाओं को समझें
आकाश की मौत एक अकेली घटना नहीं है, बल्कि यह बढ़ती डिजिटल निर्भरता का दुखद परिणाम है। यह समाज, माता-पिता, शिक्षकों और प्रशासन के लिए एक सांकेतिक चेतावनी है कि अब बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य, भावनात्मक विकास और डिजिटल जीवन के बीच संतुलन बनाना बेहद जरूरी हो गया है।
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