मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ ने कटाई नाक, उखड़ रही बच्चों की सांस, शिशु मृत्युदर में टॉप पर MP-CG

छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश एसआरएस की रिपोर्ट में शिशु मृत्युदर में सबसे आगे हैं। मध्यप्रदेश पहले नंबर है और छत्तीसगढ़ दूसरे नंबर पर है। पिछले दस साल में मध्यप्रदेश में 30 फीसदी और छत्तीसगढ़ की शिशु मृत्युदर में 20 फीसदी तक की कमी आई है। रिपोर्ट 2023 की है।

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Arun Tiwari
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रायपुर : मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ ने पूरे देश में अपनी नाक कटवा ली है। हाल ही में आई केंद्र सरकार की एसआरएस रिपोर्ट में ये बड़ा खुलासा हुआ है। यहां पर बच्चों की सासें उखड़ रही हैं। इस रिपोर्ट में शिशु मृत्युदर में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ को टॉप पर बताया है। मध्यप्रदेश पहले नंबर है और छत्तीसगढ़ दूसरे नंबर पर।

राजस्थान ने इस मामले में बेहतर काम किया है। और वो टेबिल में बहुत नीचे है। ऐसा नहीं है कि एमपी,सीजी में बच्चों की सांसें उखड़ने से रोकने में कोई काम नहीं किया लेकिन उसका असर उतना नहीं हुआ जिससे ये प्रदेश इस टेबिल में नीचे आ सकें। पिछले दस साल में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की शिशु मृत्युदर में 20 से 30 फीसदी तक की कमी आई है। अब मध्यप्रदेश में मोहन और छत्तीसगढ़ में विष्णु की सरकार है जिनके सामने शिशु मृत्युदर कम करने की चुनौती है।  

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थम रहीं बच्चों की सासें 

हाल ही में आई केंद्र सरकार की एसआरएस की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है। यह रिपोर्ट 2021 से 2023 तक की है। इस रिपोर्ट में शिशु मृत्युदर में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। शिशु मृत्युदर यानी बच्चों की मौत के मामले में मध्यप्रदेश नंबर एक पर है और दूसरा नंबर छत्तीसगढ़ का है। इन दोनों राज्यों का औसत राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है।

बच्चों की मौत का औसत प्रति एक हजार बच्चों पर निकाला जाता है। इतना ही नहीं नवजात बच्चों की मौत के मामले में भी यह राज्य अव्वल हैं। मध्यप्रदेश में शिशु मृत्युदर 39.3 है तो छत्तीसगढ़ में यह 37.7 है। राजस्थान की स्थिति इन दोनों राज्यों से कहीं बेहतर है।

राजस्थान में शिशु मृत्युदर 29.9 है। देश में यह आंकड़ा 26.3 है। पिछले 10 साल यानी 2011 से 2013 की बात करें तो शिशु मृत्युदर में मध्यप्रदेश में 30.3 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 19.8 फीसदी और राजस्थान में 39.2 फीसदी की कमी आई है।   

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यह है तीनों राज्यों में शिशु मृत्युदर का आंकड़ा 

मध्यप्रदेश : एमपी में शिशु मृत्युदर 2011-13 में 56.4 थी जो 2021-23 में 39.3 हो गई। इसमें 30.3 फीसदी की कमी आई। गांवों में यह आंकड़ा 60 से घटकर 42.1 पर आया तो शहरों में 37.6 से 28.7 पर आ गया। 10 सालों में गांवों में 29.8 और शहरों में 23.7 फीसदी की कमी आई। इतनी कमी के बाद भी मध्यप्रदेश शिशु मृत्युदर में पूरे देश में पहले नंबर पर है।  

छत्तीसगढ़ : छत्तीसगढ़ में शिशु मृत्युदर 2011-13 में 47.0 थी जो 2021-23 में 37.7 हो गई। इसमें 19.8 फीसदी की कमी आई। गांवों में यह आंकड़ा 48.1 से घटकर 39.6 पर आया तो शहरों में 39.2 से 29.0 पर आ गया। 10 सालों में गांवों में 17.7 और शहरों में 26.0 फीसदी की कमी आई। छत्तीसगढ़ शिशु मृत्युदर में दूसरे नंबर है। 

राजस्थान : राजस्थान में शिशु मृत्युदर 2011-13 में 49.2 थी जो 2021-23 में 29.9 हो गई। इसमें 39.2 फीसदी की कमी आई। गांवों में यह आंकड़ा 53.9 से घटकर 32.0 पर आया तो शहरों में 30.9 से 23.0 पर आ गया। 10 सालों में गांवों में 40.6 और शहरों में 25.6 फीसदी की कमी आई। 

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नवजात की मौत में भी एमपी-छत्तीसगढ़ टॉप पर 

मध्यप्रदेश : मध्यप्रदेश नवजात बच्चों की मौत के मामले में भी देश में अव्वल नंबर पर है। यहां नवजात बच्चों की मौत की दर 27 है। यहां गांवों में 28 और शहरों में यह आंकड़ा 23 है। यानी शहरों की अपेक्षा नवजात बच्चों की मौत गांवों में ज्यादा होती है। 

छत्तीसगढ़ : नवजात की मौत के मामले में छत्तीसगढ़ दूसरे नंबर पर है। यहां नवजात बच्चों का मोर्टेलिटी रेट 26 है। गांवों में 28 और शहरों में यह रेट 23 है। यहां भी गांवों में नवजात बच्चों की मौत ज्यादा होती है। 

राजस्थान : नवजात बच्चों की मौत के मामले में राजस्थान की स्थिति एमपी,सीजी से बेहतर है। यहां मोर्टेलिटी रेट 21 है। गांवों में यह 22 और शहरों में यह आंकड़ा 17 है। 

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छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा कोख में मौत 

 इस रिपोर्ट में एक और बड़ा चौंकाने वाला मामला सामने आया है। कोख में मौत के मामले में छत्तीसगढ़ पूरे देश में एक नंबर है। यानी यहां बच्चों के पैदा होने से पहले ही उनको मार दिया जाता है। जाहिर है ये मामला कन्या भ्रूण हत्या से जुड़ा हो सकता है।

छत्तीसगढ़ में प्रसव पूर्व बच्चों की मौत की दर 29 है। यह गांवों में ज्यादा होता है। गांव में यह आंकड़ा 31 तो शहरों में 19 है। मध्यप्रदेश में प्री नेटल मोर्टिलिटी रेट 26 तो राजस्थान में 21 है।

हैरानी की बात यह भी है कि कन्या भ्रूण हत्या में पहले राजस्थान का नाम आता था लेकिन राजस्थान में पिछले 10 साल में इसमें गजब का बदलाव किया है और अपनी स्थिति बहुत बेहतर कर ली। इस मामले में अब छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश को ध्यान देना होगा ताकि यह कलंक इन राज्यों के माथे से भी मिट सके।   

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