मी लार्ड मनचाहा पद चाहिए... हाईकोर्ट ने कहा, अनुकंपा नियुक्ति अधिकार नहीं, एक रियायत

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक युवक ने कहा कि उसे अनुकंपा नियुक्ति के आधार पर चौकीदार का पद दिया गया। मगर, वह ड्राईवर बनने के योग्य है। न्यायाधीश ने कहा, अनुकंपा नियुक्ति अधिकार नहीं  है, बल्कि रियायत है।

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Krishna Kumar Sikander
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My Lord I want the desired post... High Court said compassionate appointment is not a right, it is a concession the sootr
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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक युवक ने अपील की कि उसके पिता के निधन के बाद उसे अनुकंपा नियुक्ति के आधार पर चौकीदार का पद दिया गया है। मगर वह ड्राईवर बनने के योग्य है। सुनवाई के बाद  न्यायाधीश ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया है कि अनुकंपा नियुक्ति अधिकार नहीं  है, बल्कि रियायत है। लिहाजा, पद परिवर्तन या पदोन्नयन की मांग नहीं की जा सकती है। इसके साथ ही कोर्ट ने ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा की सीमा का हवाला देकर याचिका खारिज कर दी। 

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याचिका दायर कर पद परिवर्तन की मांग

धमतरी के अभिनय दास मानिकपुरी ने हाईकोर्ट याचिका दायर कर पद परिवर्तन की मांग की। इस मांग के समर्थन में तर्क दिया गया कि वह ड्राईवर पर योग्य है, मगर उसे अनुकंपा नियुक्ति में चौकीदार का पद दिया गया है। इसलिए कोर्ट इस मामले में दखल दे और विभागाध्यक्ष को आदेश दिया जाए कि विभागाध्यक्ष अनुशंसा कर ड्राइवर पद पर नियुक्त करें। याचिकाकर्ता और सरकार का पक्ष सुनने के बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता की मांग को कानून के दायरे के बाहर माना और याचिका रद‍्द कर दी। 

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चौकीदार नहीं ड्राईवर के पद के लायक 

अभिनय दास मानिकपुरी के पिता घनश्याम दास धमतरी में लोक निर्माण विभाग में चौकीदार के पद पर कार्यरत थे। सेवा के दौरान गत 14 मार्च 2018 को उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद पुत्र ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया। विभाग ने उसे माली के पद पर नियुक्त करने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता ने इस पद को स्वीकार कर 2020 में कार्यभार भी ग्रहण कर लिया। बाद में उसे लगा कि वह ड्राईवर के पद के लायक है। 

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अनुकंपा कानूनी अधिकार नहीं

हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह ड्राईवर पद के ही योग्य है और विभागाध्यक्ष की अनुशंसा पर उसे ड्राईवर के पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए। याचिका की सुनवाई के दौरान जस्टिस राकेश मोहन पांडेय की एकल पीठ ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति विशेष परिस्थिति में दी जाने वाली सुविधा है, न कि कोई कानूनी अधिकार। जब कोई व्यक्ति स्वेच्छा से पद स्वीकार कर लेता है तो बाद में वह पद परिवर्तन या पदोन्नयन का दावा नहीं कर सकता। इसी आधार पर कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।

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