सीजी के अफसर महान, नान घोटाला करने वालों का खुद ही कर दिया कल्याण

नान घोटाला मामले में आरोपियों द्वारा जांच एजेंसियों को दिशा-निर्देश देने की बात सामने आई है। सीबीआई ने अब EOW और ACB के पूर्व एसपी, आईपीएस अधिकारी इंदिरा कल्याण एलेसेला को पूछताछ के लिए तलब किया है... 

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Jitendra Shrivastava
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प्रफुल्ल पारे @ रायपुर

आप सोचिये कि किसी घपले घोटाले में फंसे आरोपी ही जब जांच एजेंसियों को दिशा निर्देश देने लगे तो जांच कितनी निष्पक्ष हो सकेगी। सुनने में यह अजीब सा जरूर लगता है लेकिन राज्य के बहुचर्चित नान घोटाला प्रकरण में सीबीआई की एंट्री के बाद कुछ ऐसी ही तस्वीर सामने आ रही है। जिसमें घोटाले के आरोपियों ने जांच कर रही EOW को अपने हिसाब से विभागीय दस्तावेज तैयार करने के निर्देश दिए। अब सीबीआई इस मामले में आगे बढ़ते हुए छत्तीसगढ़ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा EOW और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ACB के उस समय के एसपी रहे आईपीएस अधिकारी इंदिरा कल्याण एलेसेला को पूछताछ के लिए तलब करने वाली है। ये मामला उस समय का है जब इंदिरा कल्याण दोनों ब्यूरो के एसपी और एसआरपी कल्लूरी आईजी के पद पर पदस्थ थे। 

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क्या है पूरा मामला 

दरअसल मामला वर्ष 2015 का है जब भाजपा की सरकार में EOW ने नागरिक आपूर्ति निगम के 25 परिसरों में छापा मारकर अधिकारियों और उनके स्टाफ से चार करोड़ रुपए नगद जब्त किए थे।  छापे के दौरान चावल और नमक के जब्त नमूनों की जांच की गई जो घटिया गुणवत्ता के पाए गए और इसके बाद करोड़ों रुपए के घोटाले का प्रकरण तैयार किया गया,जो आज नान घोटाले के नाम से जाना जाता है। 

इस घोटाले में राज्य के आईएएस अधिकारी आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा मुख्य आरोपी बनाये गए थे। वर्ष 2018 में सरकार बदलने के बाद मुख्यमंत्री बने भूपेश बघेल ने इसी मामले की दोबारा जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया और वहीं दूसरी तरफ केंद्रीय जांच एजेंसी ED ने भी इस मामले की जांच शुरू कर दी। गिरफ्तारी से बचने के लिए आरोपी अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ल ने हाई कोर्ट में अग्रिम जमानत की याचिका लगाई। इसी समयावधि में घोटाले की विवेचना कर रही EOW ने तत्कालीन महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा के साथ मिलकर ऐसे दस्तावेज तैयार करने में मदद की जिससे आरोपी आईएएस आलोक शुक्ल और अनिल टुटेजा को अग्रिम जमानत मिल सके और हुआ भी ऐसा ही। जांच एजेंसियों का तर्क यही था कि दोनों आरोपी शासन में रसूखदार पदों पर बैठे हैं और वे गवाहों के साथ साथ प्रकरण को भी प्रभावित कर सकते हैं।

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रायपुर के एक विशेष अदालत में इस मामले पर कार्यवाही जारी थी और राज्य की जांच एजेंसी वही दस्तावेज कोर्ट में पेश कर रही थी जिसे आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा स्वीकृति दे रहे थे। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बीच यह मामला लम्बे समय तक चला सुप्रीम कोर्ट ने भी विशेष अदालत को किसी नतीजे तक जाने से रोक दिया। इस दौरान ED ने आईएएस अनिल टुटेजा को दो हजार करोड़ के शराब घोटाले में मुख्य आरोपी बनाया और टुटेजा वर्तमान में इसी केस में जेल में हैं। वर्ष 2023 में भाजपा फिर सत्ता में लौटी और इस मामले ने फिर तूल पकड़ा। सरकार बदलने के बाद EOW में भी कई बदलाव हो गए एसपी इंदिरा कल्याण को हटा दिया गया और वर्तमान में EOW का प्रभार रायपुर आईजी अमरेंद्र मिश्रा के पास है। नान घोटाले में आरोपियों को जमानत का लाभ देने के मामले की जांच सरकार ने सीबीआई को सौंपी और सीबीआई ने इन तीनों के विरुद्ध प्रकरण दर्ज कर कर पिछले दिनों आरोपी आलोक शुक्ल और अनिल टुटेजा के घर छापा मारा। 

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टाइमलाइन से समझें नान घोटाला... 

2015 – नान घोटाले की शुरुआत

घटना: 2015 में भाजपा सरकार के दौरान EOW ने नागरिक आपूर्ति निगम के 25 परिसरों में छापा मारा। इस छापे में अधिकारियों और उनके स्टाफ से 4 करोड़ रुपए नगद जब्त किए गए। साथ ही चावल और नमक के घटिया गुणवत्ता के नमूनों की जांच की गई।

आरोपी: राज्य के आईएएस अधिकारी आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा मुख्य आरोपी बने, और यह घोटाला नान घोटाले के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

2018 – सरकार का बदलाव और एसआईटी की जांच

घटना: 2018 में सरकार बदलने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नान घोटाले की दोबारा जांच के लिए एसआईटी का गठन किया।

जांच एजेंसी: केंद्रीय एजेंसी ED ने भी जांच शुरू की।

आरोपी की अग्रिम जमानत की याचिका

घटना: आरोपी आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा ने गिरफ्तारी से बचने के लिए हाई कोर्ट में अग्रिम जमानत की याचिका लगाई।

जांच एजेंसी: EOW ने महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा के साथ मिलकर आरोपी को अग्रिम जमानत दिलाने के लिए दस्तावेज तैयार किए, और यह दस्तावेज कोर्ट में पेश किए गए।

2023 – सरकार में बदलाव और जांच में नया मोड़

घटना: भाजपा की सरकार लौटने के बाद यह मामला फिर से चर्चा में आया। EOW के एसपी इंदिरा कल्याण को हटा दिया गया और रायपुर के आईजी अमरेंद्र मिश्रा को नया प्रभार सौंपा गया।

जांच एजेंसी: सीबीआई को इस मामले की जांच सौंप दी गई और सीबीआई ने आरोपियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया। इसके बाद आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा के घर छापे मारे गए।

2023 – सरकार में बदलाव और जांच में नया मोड़

घटना: भाजपा की सरकार लौटने के बाद यह मामला फिर से चर्चा में आया। EOW के एसपी इंदिरा कल्याण को हटा दिया गया। रायपुर के आईजी अमरेंद्र मिश्रा को फिलहाल इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है। 

सीबीआई की छापेमारी और मिलीभगत का खुलासा

घटना: सीबीआई ने छापेमारी के दौरान डिजिटल सबूत पाए, जिसमें वाट्सएप चैट के माध्यम से आरोपी अधिकारियों के बीच मिलीभगत की पुष्टि हुई। इन चैट्स में महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा, EOW के एसपी इंदिरा कल्याण, और आरोपियों के बीच वाट्सएप पर चैट करने की पुष्टि हुई है।

सीबीआई की छापेमारी और मिलीभगत का खुलासा

घटना: सीबीआई ने छापेमारी के दौरान डिजिटल सबूत पाए, जिसमें वाट्सएप चैट के माध्यम से आरोपी अधिकारियों के बीच मिलीभगत की पुष्टि हुई। इन चैट्स से यह पता चला कि महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा, EOW के एसपी इंदिरा कल्याण, और आरोपियों के बीच गुप्त तरीके से दस्तावेज तैयार किए जाते थे।

सीबीआई का अगला कदम

घटना: सीबीआई अब जांच को आगे बढ़ाते हुए इंदिरा कल्याण को पूछताछ के लिए तलब कर सकती है। सीबीआई ने डिजिटल सबूतों के आधार पर उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में अपने दस्तावेज पेश किए थे।

सत्ता में हलचल: जांच में एक आईजी स्तर के आईपीएस अधिकारी का नाम आने के बाद सत्ता के गलियारों में हलचल मच गई है।

ऐसी थी मिलीभगत 

जानकार सूत्रों का कहना है कि सीबीआई को इस छापामार कार्रवाई में पुख्ता डिजिटल सबूत मिले हैं जो यह साबित करते हैं कि पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा आरोपी आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा के साथ मिले हुए थे। बताया जा रहा है कि सीबीआई को डिजिटल साक्ष्य में वाट्सअप की चैट मिली है। जो यह बताती है कि पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा EOW के एसपी को कुछ तथ्य भेजते थे जिसे सुधार के आरोपी अनिल टुटेजा के पास भेजा जाता था और टुटेजा इसे स्वीकृत कर एसपी को वापस भेजते थे। फिलहाल सीबीआई इस मामले में सारे तथ्य एकत्र कर रही है इसी प्रक्रिया के तहत सीबीआई अब कभी भी आईपीएस इंदिरा कल्याण को भी पूछताछ के लिए बुला सकती है।

आपको यह भी बता दें कि आरोपी अधिकारियों को हाई कोर्ट से मिली अग्रिम जमानत का फैसला सुप्रीम कोर्ट भी गया वहां भी जांच एजेंसी ने डिजिटल सबूत का हवाला दिया और बतौर गोपनीय दस्तावेज कोर्ट में पेश किया। अब सीबीआई की एंट्री के बाद प्रकरण एक बार फिर सुर्ख़ियों में है और इस मामले में एक आईजी स्तर के आईपीएस अधिकारी का नाम आने बाद सत्ता का गलियारों में हलचल मची हुई है।

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