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National Forum on Climate and Environmental Justice : छत्तीसगढ़ के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार के खिलाफ एलान ए जंग कर दिया है। राष्ट्रीय जलवायु और पर्यावर्णीय न्याय मंच ( NACEJ ) ने केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ( MoEF&CC ) को खुला पत्र लिखा है। न्याय मंच ने हाल ही में जारी अधिसूचनाओं पर कड़ी आपत्ति दर्ज की है। पत्र में कहा गया है कि ये अधिसूचनाएं ‘उद्योग / व्यापार की सुविधा’ को अधिक प्राथमिकता देती हैं और पर्यावरण संरक्षण, सार्वजनिक स्वास्थ्य और समुदायों के अधिकारों का हनन करती हैं।
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ये है न्याय मंच का पत्र
12 नवंबर 2024 को जारी अधिसूचनाओं G.S.R 702(E) और G.S.R 703(E) के तहत MoEF&CC ने निम्नलिखित उद्योगों को 'स्थापना की अनुमति'( Consent to Establish) और 'संचालन की अनुमति' (Consent to Operate) की अनिवार्यता से छूट दी है।
● वे सभी उद्योग जिन्होंने पर्यावर्णीय मंजूरी (Environmental Clearance) प्राप्त कर ली है।
● 39 उद्योगों को "श्वेत उद्योग" (White Industries) की श्रेणी में डाल दिया गया है।
1. मंत्रालय अपने ही उद्देश्यों का उल्लंघन कर रहा है, जब वह पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य की दीर्घकालिक सुरक्षा की तुलना में, ‘उद्योग / व्यापार की सुविधा’ को अधिक महत्वपूर्ण मानता है।
2. भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं को कमज़ोर करना – ये छूट भारत के उत्सर्जन तीव्रता (Emission Intensity) को कम करने और UNFCCC के तहत जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने की प्रतिबद्धता को कमज़ोर करती हैं।
3. मनमानी और अवैज्ञानिक छूट - फ्लाई ऐश ईंट निर्माण जैस कई उद्योगों के पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गंभीर नकारात्मक प्रभावों का ठोस दस्तावेजी सबूत हैं, फिर भी इन्हें छूट दी गई है।
4. जल और वायु अधिनियमों में अवैध संशोधन – ये अधिसूचनाएं जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1974 और वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1981 की मौलिक धाराओं को प्रभावी रूप से संशोधित कर रही हैं, जो केवल विधिक प्रक्रिया के माध्यम से किया जा सकता है। ये अधिसूचनाएं संघीय ढांचे की सिद्धांतों का भी उल्लंघन करता हैं।
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NACEJ द्वारा प्रस्तुत आपत्तियां
1. पर्यावरण सुरक्षा उपायों को कमज़ोर करना – ‘स्थापना और संचालन की अनुमति’ की अनिवार्यता को हटाना जल और वायु अधिनियमों के मूल उद्देश्यों का उल्लंघन है।
2. निगरानी और अनुपालन की उपेक्षा – उद्योगों के लिए अनिवार्य अनुमति प्रक्रियाओं को समाप्त करने से, पर्यावर्णीय मानकों का पालन सुनिश्चित करने की एकमात्र नियमित निगरानी प्रक्रिया समाप्त हो जाएगी।
3. "श्वेत उद्योगों" से होने वाला प्रदूषण – कोयला दहन का एक उपोत्पाद - फ्लाई ऐश में आर्सेनिक, लेड और मरकरी जैसे जहरीले भारी धातु होते हैं, जो वायु, जल और मिट्टी को प्रदूषित कर सकते हैं और खाद्य श्रृंखला के माध्यम से स्थानीय समुदायों को गंभीर स्वास्थ्य खतरों में डाल सकते हैं।
4. जल और वायु अधिनियमों का अवैध संशोधन – जल अधिनियम और वायु अधिनियम की धारा 25(1) में उद्योगों को 'स्थापना' या 'संचालन' की अनुमति से पूरी तरह छूट देने का कोई प्रावधान नहीं है। ये संशोधन केवल संसद के माध्यम से ही किए जा सकते हैं।
5. परामर्श की अनुपस्थिति – प्रभावित समुदायों, विशेषज्ञों और नागरिक समाज व जन संगठनों से परामर्श किए बिना, नीतिगत निर्णय लेना लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन है। इससे, भारत सरकार की पूर्व-विधान परामर्श नीति (2014) की आवश्यकताओं की अवहेलना हुई हैं, जो सार्वजनिक परामर्श को अनिवार्य बनाती है।
NACEJ की मांगें:
1. अधिसूचनाओं G.S.R 702(E) और G.S.R 703(E) को तत्काल वापस लिया जाए।
2. 39 उद्योगों को ‘स्थापना और संचालन की अनुमति’ से छूट देने के पर्यावरणीय, सामाजिक, आर्थिक प्रभाव पर स्वतंत्र व विस्तृत अध्ययन करके, इस अध्ययन को सार्वजनिक किया जाए।
3. राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (SPCBs) की भूमिका बनाए रखी जाए, ताकि वे पर्यावरणीय मानकों के अनुपालन की निगरानी कर सकें।
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कौन हैं इस संस्था के सदस्य
_NACEJ के सदस्य, जिनमें आंदोलनों के ज़मीनी सामाजिक कार्यकर्ता, जलवायु वैज्ञानिक, पर्यावरण शोधकर्ता, पारिस्थितिकीविद् और वकील शामिल है, मंत्रालय से अपेक्षा करते हैं कि वह इस अधिसूचना को तत्काल वापस ले और ‘उद्योग / व्यापार की सुविधा’ के बहाने, पर्यावरणीय नियमों को कमज़ोर करने के बजाय, भारत के पर्यावरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य व जनता के अधिकारों की सुरक्षा को प्राथमिकता दे।
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