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छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलवाद के खिलाफ चल रही मुहिम को एक बड़ी सफलता मिली है। सुकमा और नारायणपुर जिलों में बीते दो दिनों के भीतर 45 नक्सलियों ने पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के समक्ष आत्मसमर्पण कर हिंसा का रास्ता छोड़ दिया।
इनमें से सुकमा जिले में 23 नक्सलियों ने, जिन पर कुल 1 करोड़ 18 लाख रुपये का इनाम था, और नारायणपुर जिले में 22 नक्सलियों ने, जिन पर 37.5 लाख रुपये का इनाम था, सरेंडर किया। इस घटना ने माओवादी संगठनों को गहरा आघात पहुंचाया है और यह दर्शाता है कि छत्तीसगढ़ सरकार की आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति (2025) तथा नक्सल विरोधी अभियानों का असर अब स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।
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सुकमा में 23 नक्सलियों का आत्मसमर्पण
12 जुलाई 2025 को सुकमा जिले में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में 23 नक्सलियों, जिनमें 9 महिलाएं शामिल थीं, ने सीआरपीएफ के डीआईजी आनंद सिंह राजपुरोहित, सैयद मोहम्मद हबीब असगर, और सुकमा के पुलिस अधीक्षक किरण चव्हाण की उपस्थिति में आत्मसमर्पण किया। इन नक्सलियों पर कुल 1 करोड़ 18 लाख रुपये का इनाम था, जिसमें 11 वरिष्ठ कैडर शामिल थे, जिनमें से प्रत्येक पर 8 लाख रुपये का इनाम था। इसके अलावा, चार नक्सलियों पर 5 लाख, एक पर 3 लाख, और सात नक्सलियों पर 1-1 लाख रुपये का इनाम था।
आत्मसमर्पण करने वालों में पोडियाम भीमा उर्फ लोकेश जैसे कुख्यात माओवादी शामिल हैं, जिन पर 2012 में सुकमा के पहले कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन के अपहरण, 2017 के बुरकापाल हमले, और 2021 के टेकलगुड़ा मुठभेड़ में शामिल होने का आरोप है, जिसमें 46 सुरक्षाकर्मियों की जान गई थी। इसके अलावा, रमेश उर्फ कमलु, जो माओवादी नेता मडवी हिड़मा का निजी गार्ड था, और मडवी जोगा, बीएनपीसी नेता राजक्का का सुरक्षा गार्ड, भी आत्मसमर्पित नक्सलियों में शामिल हैं।
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सुकमा के पुलिस अधीक्षक किरण चव्हाण ने इसे बस्तर क्षेत्र के लिए एक बड़ी सफलता बताया। उन्होंने कहा कि नक्सलियों का आत्मसमर्पण ‘नियद नेल्लानार’ योजना और राज्य की 2025 की आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति के प्रभाव का परिणाम है। आत्मसमर्पित नक्सलियों को तत्काल 50,000 रुपये की सहायता दी गई और उन्हें शिक्षा, आवास, और व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसी सुविधाएं प्रदान की जाएंगी।
नारायणपुर में 22 नक्सलियों ने छोड़ा हथियार
इससे एक दिन पहले, 11 जुलाई 2025 को नारायणपुर जिले में 22 नक्सलियों, जिनमें 8 महिलाएं और 14 पुरुष शामिल थे, ने आत्मसमर्पण किया। इन पर कुल 37.5 लाख रुपये का इनाम था, जिसमें शीर्ष माओवादी नेता शुक्लाल, जो कुतुल एरिया कमेटी का प्रभारी था, भी शामिल था। नारायणपुर के पुलिस अधीक्षक रॉबिन्सन गुड़िया ने बताया कि ये माओवादी अबूझमाड़ क्षेत्र में सक्रिय थे, और उनके आत्मसमर्पण ने कुतुल एरिया कमेटी को गहरा झटका दिया है।
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नारायणपुर में आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने नक्सल विचारधारा से मोहभंग, संगठन के भीतर बढ़ती अंदरूनी कलह, और स्थानीय आदिवासियों पर अत्याचार को अपने निर्णय का कारण बताया। इसके साथ ही, सरकार की विकास योजनाओं और पुनर्वास नीति ने उन्हें मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
नक्सलियों पर बढ़ता दबाव और आत्मसमर्पण का कारण
पिछले 15 महीनों में छत्तीसगढ़ में 1,521 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, जो सरकार की नीतियों और सुरक्षाबलों के लगातार दबाव का परिणाम है। छत्तीसगढ़ सरकार की ‘नियद नेल्लानार’ योजना, जिसके तहत नक्सल मुक्त घोषित होने वाली ग्राम पंचायतों को 1 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाएं दी जाती हैं, ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बदलाव की लहर पैदा की है।
सुकमा और नारायणपुर में नक्सलियों के खिलाफ चल रहे तीव्र अभियानों ने उनके गढ़ को कमजोर किया है। सुकमा-बीजापुर सीमा पर सुरक्षाबलों की बढ़ती मौजूदगी और अबूझमाड़ क्षेत्र में नए कैंपों की स्थापना ने नक्सलियों को बैकफुट पर ला दिया है। इसके अलावा, नक्सल संगठनों में बढ़ती असंतुष्टि और विचारधारा से मोहभंग ने भी आत्मसमर्पण की प्रक्रिया को तेज किया है।
मुख्यमंत्री और केंद्रीय नेतृत्व की प्रतिक्रिया
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस उपलब्धि पर खुशी जताते हुए सोशल मीडिया पर लिखा, “बस्तर बदल रहा है। बंदूक की आवाज थम रही है और लोकतंत्र की गूंज हर कोने में सुनाई दे रही है। सुकमा में 23 और नारायणपुर में 22 नक्सलियों के आत्मसमर्पण से यह साफ है कि लोग अब हिंसा नहीं, बल्कि विकास और शांति की राह चुन रहे हैं।”
उन्होंने इसे सरकार की विश्वास-निर्माण नीतियों का परिणाम बताया।केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इस सफलता की सराहना की और कहा कि 2026 तक भारत को नक्सलवाद मुक्त बनाने का लक्ष्य तेजी से पूरा हो रहा है। उन्होंने सुरक्षाबलों और छत्तीसगढ़ पुलिस को बधाई दी।
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आत्मसमर्पण नीति और पुनर्वास के लाभ
छत्तीसगढ़ सरकार की 2025 की आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति के तहत आत्मसमर्पित नक्सलियों को तत्काल आर्थिक सहायता, शिक्षा, आवास, और आजीविका के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। सुकमा में आत्मसमर्पित प्रत्येक नक्सली को 50,000 रुपये की प्रारंभिक सहायता दी गई, जबकि नारायणपुर में भी समान लाभ दिए गए। यह नीति न केवल नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने में मदद कर रही है, बल्कि स्थानीय समुदायों में विकास और विश्वास को भी बढ़ावा दे रही है।
नक्सलवाद पर गहरा प्रहार
इन आत्मसमर्पणों ने नक्सल संगठनों की रीढ़ तोड़ दी है, खासकर पीपुल्स लिबरेशन गेरिला आर्मी (PLGA) की बटालियन नंबर 1 को, जो माओवादियों की सबसे मजबूत सैन्य इकाई मानी जाती थी। सुकमा में आत्मसमर्पित नक्सलियों में इस बटालियन के कई सदस्य शामिल थे, जिससे यह साफ है कि संगठन की ताकत कमजोर पड़ रही है।
नारायणपुर के अबूझमाड़ क्षेत्र में भी नक्सलियों का आधार लगातार कमजोर हो रहा है। कुतुल एरिया कमेटी के पतन ने संगठन की रणनीतिक क्षमता को गहरा नुकसान पहुंचाया है। सुरक्षाबलों को आत्मसमर्पित नक्सलियों से मिली खुफिया जानकारी से नक्सल नेटवर्क को और कमजोर करने में मदद मिलेगी।
सरकार की दोहरी रणनीति
यह आत्मसमर्पण छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। सरकार की दोहरी रणनीति—सुरक्षाबलों का दबाव और विकास योजनाओं के जरिए विश्वास निर्माण नक्सलियों को हथियार डालने के लिए मजबूर कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह गति बनी रही, तो छत्तीसगढ़ जल्द ही नक्सल मुक्त राज्य बन सकता है।
हालांकि, चुनौतियां अभी बाकी हैं। आत्मसमर्पित नक्सलियों का पूर्ण पुनर्वास और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी है। साथ ही, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यों को और तेज करने की जरूरत है ताकि स्थानीय लोग हिंसा के बजाय शांति और प्रगति को चुनें।
शांति और विकास की नई लहर शुरू
सुकमा और नारायणपुर में 45 नक्सलियों के आत्मसमर्पण ने न केवल नक्सल संगठनों को कमजोर किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि छत्तीसगढ़ में शांति और विकास की नई लहर शुरू हो चुकी है। सरकार की नीतियां, सुरक्षाबलों की मेहनत, और स्थानीय समुदायों का समर्थन इस बदलाव का आधार बन रहे हैं। यह घटना नक्सलवाद के खिलाफ एक मजबूत संदेश है कि हिंसा का रास्ता अब अतीत बनता जा रहा है, और छत्तीसगढ़ एक नक्सल मुक्त भविष्य की ओर अग्रसर है।
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