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छत्तीसगढ़ के कटघोरा की एक युवती से जुड़े मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मस्जिद में हुआ निकाह कानूनी रूप से वैध नहीं है और यदि दोनों पक्ष साथ रहना चाहते हैं, तो उन्हें स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करनी होगी। यह मामला तौशीफ मेमन नामक युवक द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका से जुड़ा है, जिसमें उसने खुद को युवती का पति बताते हुए उसे अपने साथ रहने की अनुमति मांगी थी।
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यह था पूरा मामला
21 अप्रैल 2025 को कटघोरा की एक कॉलेज छात्रा अचानक लापता हो गई थी। वह कॉलेज जाने के लिए घर से निकली थी, लेकिन वापस नहीं लौटी। परिजनों ने उसकी तलाश की और कटघोरा थाने में गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई। पुलिस जांच में पता चला कि युवती कोलकाता में तौशीफ मेमन के साथ देखी गई थी। दोनों ने वहां एक मस्जिद में निकाह किया था। पुलिस ने दोनों को कोरबा वापस लाया और पूछताछ शुरू की। प्रारंभ में युवती को तौशीफ के घर भेजा गया, लेकिन स्थानीय हिंदू संगठनों के विरोध के बाद उसे पहले सखी सेंटर और फिर शक्ति सदन भेजा गया। इसके बाद तौशीफ ने हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की, जिसमें दावा किया कि वह युवती का पति है और उसे अपने साथ रहने का अधिकार है।
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हाई कोर्ट में सुनवाई और मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट
हाई कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए एक मध्यस्थता समिति गठित की थी। समिति ने अपनी जांच में पाया कि युवती अपने परिजनों के साथ नहीं, बल्कि तौशीफ के साथ रहना चाहती है। हालांकि, जांच में यह भी सामने आया कि दोनों ने कोलकाता में स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी नहीं की थी, बल्कि तौशीफ के धर्म के अनुसार मस्जिद में निकाह किया गया था। कोर्ट ने इस निकाह को कानूनी रूप से अवैध माना, क्योंकि यह स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों का पालन नहीं करता। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चूंकि दोनों बालिग हैं, इसलिए उन्हें साथ रहने से रोका नहीं जा सकता, बशर्ते वे कानूनी रूप से स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करें। फिलहाल, कोर्ट ने युवती को कोरबा के सखी सेंटर में भेजने का आदेश दिया है।
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कोर्ट का स्पष्ट निर्देश
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में जोर दिया कि भारत में अंतर-धार्मिक विवाह के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत पंजीकरण अनिवार्य है। कोर्ट ने कहा, "निकाह, जो धार्मिक रीति-रिवाजों के तहत हुआ, कानूनी रूप से मान्य नहीं है। दोनों पक्षों को अपनी मर्जी से साथ रहने के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा।" कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि युवती और तौशीफ, यदि चाहें, तो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी कर सकते हैं, क्योंकि दोनों की उम्र बालिग होने की कानूनी सीमा को पूरा करती है।
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सामाजिक और कानूनी पहलू
यह मामला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक संवेदनशीलता को भी उजागर करता है। कटघोरा में हिंदू संगठनों के विरोध ने इस मामले को और जटिल बना दिया था। संगठनों का दावा था कि यह मामला जबरन धर्मांतरण से जुड़ा हो सकता है। हालांकि, मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट ने साफ किया कि युवती अपनी मर्जी से तौशीफ के साथ है।
रिश्ते को कानूनी रूप से वैध बनाएं
हाई कोर्ट के इस फैसले ने स्पेशल मैरिज एक्ट की अहमियत को एक बार फिर रेखांकित किया है। यह कानून अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय विवाहों को कानूनी मान्यता देता है, बशर्ते निर्धारित प्रक्रिया का पालन हो। तौशीफ और युवती के लिए अब यह विकल्प खुला है कि वे कोर्ट के निर्देशानुसार शादी करें और अपने रिश्ते को कानूनी रूप से वैध बनाएं। इस मामले ने स्थानीय स्तर पर भी चर्चा छेड़ दी है। जहां एक ओर कुछ लोग इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला मान रहे हैं, वहीं कुछ संगठन इसे धार्मिक और सामाजिक मुद्दों से जोड़कर देख रहे हैं। फिलहाल, युवती सखी सेंटर में है और मामले का अगला कदम दोनों पक्षों के फैसले पर निर्भर करता है।
रीति-रिवाजों से हुए विवाह को कानूनी मान्यता
बिलासपुर हाई कोर्ट का यह फैसला स्पेशल मैरिज एक्ट के महत्व को रेखांकित करता है और यह संदेश देता है कि धार्मिक रीति-रिवाजों के आधार पर हुए विवाह को कानूनी मान्यता तभी मिल सकती है, जब वह देश के कानून के दायरे में हो। यह मामला न केवल कटघोरा, बल्कि पूरे देश में अंतर-धार्मिक विवाहों से जुड़े कानूनी और सामाजिक पहलुओं पर बहस को और तेज कर सकता है।
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