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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में एक अहम फैसाला दिया है। कोर्ट ने 14 वर्षीय नाबालिग बच्ची के अपहरण और दुष्कर्म बलात्कार के मामले में आरोपी की सजा को बरकरार रखते हुए उसकी अपील खारिज कर दी है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्त गुरु की डिवीजन बेंच ने 26 जून को सुनाए फैसले में कहा कि, बचपन से खिलवाड़ करने वालों के लिए कानून में कोई नरमी नहीं हो सकती। कोर्ट ने नाबालिग पीड़िता की गवाही को "स्टर्लिंग विटनेस" अर्थात विश्वसनीय गवाह मानते हुए विशेष अदालत के निर्णय को पूरी तरह उचित ठहराया।
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कोर्ट ने इसलिए कहा स्टर्लिंग विटनेस
हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि ऐसी पीड़िताएं जो बिना दबाव के स्पष्ट, सटीक और विरोधाभास रहित गवाही देती हैं, उन्हें स्टर्लिंग विटनेस अर्थात विश्वसनीय गवाह कहा जाता है। ऐसे मामलों में किसी अन्य गवाह या अतिरिक्त सबूत की जरूरत नहीं होती।
कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि, बाल यौन शोषण केवल पीड़िता पर नहीं, बल्कि मानवता और समाज पर हमला है। ऐसे अपराधों में कोई रहम नहीं दिखाया जा सकता। पाक्सो एक्ट बच्चों की सुरक्षा के लिए बना है।
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यह है पूरा मामला
29 जून 2020 की शाम सरगुजा जिले के अंबिकापुर की 14 वर्षीय बच्ची अपनी दो सहेलियों के साथ टहलने निकली थी। तभी आरोपी राजू यादव उसे बहला-फुसलाकर कच्हार के जंगल में ले गया। पूरी रात उसे वहीं रखा और दुष्कर्म किया। सुबह आरोपी ने अपने दो साथियों को बुलाया और बच्ची को उनके हवाले कर फरार हो गया। बच्ची किसी तरह घर पहुंची और स्वजनों को आपबीती सुनाई। पिता ने उसी दिन थाने में शिकायत दर्ज कराई।
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सबूत और मेडिकल रिपोर्ट ने साबित किया अपराध
स्कूल के दस्तावेजों व माता-पिता के बयान से बच्ची की उम्र 14 साल 5 महीने साबित हुई। मेडिकल रिपोर्ट में शरीर पर चोट नहीं मिली, लेकिन स्लाइड जांच में मानव शुक्राणु पाए गए। पीड़िता की गवाही निरंतर, स्पष्ट और विश्वसनीय पाई गई। आरोपी यौन संबंध बनाने में सक्षम पाया गया। इस पर कोर्ट ने कहा, कि, जबरदस्ती का मतलब हर बार चोट नहीं होती, पीड़िता की मानसिक स्थिति और बयान ही काफी हैं।
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