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इस बार निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में आरक्षण को लेकर बहुत सवाल खड़े हो रहे हैं। खासतौर पर ओबीसी आरक्षण को लेकर सियासत बहुत गर्म हो गई है। बात हाल ही में हुए पंचायत चुनाव के आरक्षण पर करते हैं। इस बार का आरक्षण कमाल का है। कमाल इसलिए क्योंकि जब ओबीसी को 25 फीसदी फ्लैट रिजर्वेशन का नियम था तो उसके हिस्से में 27 जिलों में 7 जिला पंचायत के अध्यक्ष आए थे। अब जबकि ओबीसी का रिजर्वेशन आबादी के हिसाब से पचास फीसदी तक कर दिया है तो उसके हिस्से में 33 में से हासिल आई शून्य की स्थिति है। है न
कमाल की बात। अब इस कमाल पर सियासत होना तो लाजिमी है और यह सियासत शुरु भी हो गई है।
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ओबीसी आरक्षण का कमाल
यह है हाल ही में हुए जिला पंचायत अध्यक्षों के आरक्षण की स्थिति। छत्तीसगढ़ में कुल 33 जिले हैं। इनमें से 8 जिले अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किए गए हैं। इनके अलावा 8 जिले अनुसूचित जनजाति की महिला के लिए आरक्षित हैं। अनुसूचित जाति के लिए 4 जिले हैं जिनमें 2 जिले महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। फ्री फॉर ऑल यानी जिसमें सामान्य वर्ग से लेकर कोई भी चुनाव लड़ सकता है ऐसे 6 जिले हैं। और 7 जिले ऐसे हैं जो फ्री फॉल ऑल हैं लेकिन सिर्फ महिलाओं के लिए यानी यह जिले अनारक्षित महिला के लिए हैं।
यह है 33 जिलों में आरक्षण। इसमें आपको कहीं ओबीसी नजर नहीं आया होगा जबकि प्रदेश की आधी आबादी ओबीसी की है। यह हम नहीं कह रहे बल्कि ओबीसी कल्याण आयोग ही कहता है। और उसी ने पूरे प्रदेश का अध्ययन कर यह सार निकाला है कि ओबीसी की आबादी आधी है इसलिए इन चुनावों में उसको आबादी के अनुसार 50 फीसदी तक रिजर्वेशन मिलना चाहिए। लीजिए मिल गया ओबीसी को उसका हक।
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पिछला और अब का ओबीसी आरक्षण
इससे पहले ओबीसी को इन चुनावों में 25 फीसदी फ्लैट आरक्षण का नियम था। पांच साल पहले जब चुनाव हुए थे तब भूपेश सरकार थी। प्रदेश में 27 जिले थे और ओबीसी आरक्षण 25 फीसदी था। इन 27 जिलों में से 7 जिले ओबीसी के लिए आरक्षित थे। इनमें से 4 जिले ओबीसी महिला के लिए थे। एसटी वर्ग के लिए 13 जिले और एससी वर्ग के लिए 3 जिले और अनारक्षित वर्ग के लिए 4 जिला पंचायत अध्यक्ष के पद दिए गए थे। यानी जब ओबीसी को 25 फीसदी आरक्षण था तो ओबीसी के हिस्से में 7 जिले आए थे अब जबकि आबादी के आधार पर 50 फीसदी तक आरक्षण है तब ओबीसी के हिस्से में 33 जिलों में से जीरो मिला है।
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ओबीसी आरक्षण के कुछ और कमाल
ओबीसी आरक्षण के कुछ और कमाल बताते हैं। 85 अनुसूचित ब्लॉक में एक भी सीट ओबीसी के लिए आरक्षित नहीं है। सरगुजा संभाग में अंबिकापुर, बलरामपुर, सूरजपुर, कोरिया, मनेंद्रगढ, चिरमिरी, भरतपुर सोनहत, बस्तर के 7 जिले बस्तर, कांकेर, कोंडागांव, दंतेवाडा, नारायणपुर, सुकमा, बीजापुर समेत मानपुर मोहला, जशपुर, गैरोला पेंड्रा मरवाही, और कोरबा जिले में ओबीसी के हाथ कुछ नहीं लगा है। रायपुर जिला पंचायत में 16 क्षेत्रों में से केवल 4 ओबीसी के लिए आरक्षित है। बिलासपुर जिले में सदस्यों के 17 में से केवल एक क्षेत्र में ओबीसी महिला के लिए आरक्षित है, ओबीसी पुरुष के लिए 17 में से एक भी सीट आरक्षित नहीं है।
इसी तरह बिलासपुर जिले के चार जनपद पंचायत में दो जनपद पंचायत अध्यक्ष के पद अनुसूचित जाति महिला, एक अनारक्षित महिला और एक जनपद अध्यक्ष का पद अनारक्षित रखा गया है। ओबीसी के लिए बिलासपुर जिले के अंतर्गत चार जनपद पंचायतों में से एक भी जनपद पंचायत अध्यक्ष का पद ओबीसी के लिये आरक्षित नहीं है। यह हम इसलिए बता रहे हैं क्योंकि माना जाता है कि शहरी इलाके यानी रायपुर और बिलासपुर जिलों में ओबीसी की संख्या सबसे ज्यादा है। वहीं बीजेपी कहती है कि आबादी के आधार पर ही आरक्षण किया गया है। कांग्रेस सिर्फ भ्रम फैलाने का काम कर रही है। आरक्षण की सारी प्रक्रिया नियमानुसार हुई है।
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तेज हुई ओबीसी पर सियासत
बहरहाल स्थिति जो भी हो लेकिन सियासत अपने पूरे चरम पर है। कांग्रेस आरोप लगा रही है कि उसने ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का काम किया था लेकिन वह विधेयक आज भी राजभवन में धूल खा रहा है। वहीं बीजेपी कहती है कि ओबीसी वर्ग के कल्याण के उसकी आबादी के हिसाब से ही उसको उसका हक दिया जा रहा है। कांग्रेस ओबीसी आरक्षण को खत्म करने का आरोप लगाकर पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन कर रही है तो बीजेपी सामान्य सीटों पर ओबीसी को चुनाव लड़वाने की तैयारी।।