नियुक्तिकर्ता को ही है सजा देने का अधिकार...हाई कोर्ट ने पलटा कलेक्टर का आदेश

शिक्षक एलबी कैलाश चंद्र रामटेक की याचिका पर सुनवाई करते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट न्यायमूर्ति बीडी गुरु की एकलपीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी को दंडित करने का अधिकार केवल उसके नियुक्तिकर्ता अधिकारी को ही है।

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Harrison Masih
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शिक्षक एलबी कैलाश चंद्र रामटेक की याचिका पर सुनवाई करते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति बीडी गुरु की एकलपीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी को दंडित करने का अधिकार केवल उसके नियुक्तिकर्ता अधिकारी को ही है। अन्य किसी अधिकारी को यह अधिकार प्राप्त नहीं है।

इस आदेश के तहत कोर्ट ने बीजापुर के कलेक्टर द्वारा जारी किए गए निलंबन आदेश और सहायक आयुक्त, आदिवासी विकास विभाग द्वारा जारी आरोप पत्र के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगा दी है। कोर्ट ने उक्त अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का निर्देश भी दिया है।

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मामले की पूरी पृष्ठभूमि

शिक्षक एलबी कैलाश चंद्र रामटेक, जो जनपद माध्यमिक शाला बीजापुर में पदस्थ हैं, को विभागीय आश्रम छात्रावास की संचालन व्यवस्था के लिए विकासखंड बीजापुर में प्रभारी मंडल संयोजक के रूप में कार्य करने का अतिरिक्त दायित्व सौंपा गया था।

सितंबर 2024 में रामटेक का एक ऑडियो वायरल हुआ, जिसमें अधीनस्थ कर्मचारियों से पैसे के लेन-देन की बात सामने आई। इसके आधार पर कलेक्टर बीजापुर ने 15 सितंबर 2024 को उन्हें छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्तनी) नियम 1966 के तहत तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। साथ ही, 20 सितंबर 2024 को विभागीय जांच के लिए सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग द्वारा आरोप पत्र भी जारी किया गया।

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याचिका और कानूनी दलीलें

इस कार्रवाई के खिलाफ शिक्षक कैलाश चंद्र रामटेक ने अधिवक्ता मतीन सिद्दीकी और नरेंद्र मेहेर के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता मतीन सिद्दीकी ने कोर्ट को बताया कि: याचिकाकर्ता का मूल पद "शिक्षक एलबी" है।

छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा सेवा भर्ती तथा पदोन्नति नियम 2019 के अनुसूची-1 के अनुसार शिक्षक एलबी की नियुक्ति के लिए संयुक्त संचालक ही नियुक्तिकर्ता अधिकारी हैं।केवल वही अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को निलंबन या दंड देने का अधिकार रखते हैं।अधिवक्ता ने तर्क दिया कि न तो कलेक्टर बीजापुर और न ही सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग, याचिकाकर्ता के नियुक्तिकर्ता अधिकारी हैं। अतः उनके द्वारा की गई कार्रवाई नियम विरुद्ध है।

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कोर्ट का निर्णय

याचिकाकर्ता की ओर से पेश किए गए तथ्यों और नियमों से सहमति जताते हुए जस्टिस बीडी गुरु की सिंगल बेंच ने कहा कि: “सिर्फ नियुक्तिकर्ता अधिकारी को ही अधिकार है कि वह अपने अधीनस्थ कर्मचारी को दंडित करे या निलंबित करे। अन्य अधिकारियों द्वारा ऐसी कार्रवाई करना नियमों का उल्लंघन है।”

इस आधार पर कोर्ट ने कलेक्टर बीजापुर द्वारा जारी निलंबन आदेश और सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग द्वारा जारी आरोप पत्र के क्रियान्वयन पर अस्थायी रोक लगा दी है। साथ ही, संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी करते हुए जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

इस निर्णय का व्यापक प्रभाव

इस आदेश से स्पष्ट होता है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए नियमों का सख्ती से पालन आवश्यक है। यदि नियुक्तिकर्ता अधिकारी की अनुमति या अधिकार क्षेत्र के बाहर कोई कार्रवाई होती है, तो वह अवैध मानी जाएगी।

यह फैसला छत्तीसगढ़ के शासकीय कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण नजीर बन सकता है और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता तथा नियमों के पालन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

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