छत्तीसगढ़ के बस्तर से बड़ी खबर सामने आई है। ईसाई धर्म के एक पादरी का शव पिछले 13 दिनों से रखा हुआ है। पादरी के शव को गांववाले दफनाने नहीं दे रहे है। जब गांववालों ने पादरी को दफनाने नहीं दिया तो पादरी के बेटे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इसके बाद हाईकोर्ट ने उसकी याचिका 9 जनवरी को खारिज कर दी थी।
याचिका में बताया कि उसके पिता सुभाष पादरी थे। 7 जनवरी को बीमारी के कारण उनका निधन हो गया था। ग्रामीण मेरी जमीन पर भी दफनाने नहीं दे रहे हैं। इस मामले में सरकार से भी कोई मदद नहीं मिली। हाईकोर्ट के याचिका खारिज करने के बाद बेटे ने सरकार से गुहार लगाई। ग्रामीणों का कहना है कि वह गांव में किसी ईसाई को दफन नहीं होने देंगे। ग्रामीण मेरी जमीन पर भी दफनाने नहीं दे रहे हैं।
बस्तर के दरभा निवासी रमेश बघेल का परिवार आदिवासी है। उनके पूर्वजों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। रमेश के पिता पादरी थे। 7 जनवरी को लंबी बीमारी के बाद उनकी मौत हो गई थी। परिवार ने अपने गांव चिंदवाड़ा के कब्रिस्तान में ईसाईयों के लिए सुरक्षित जगह पर उनका अंतिम संस्कार करने की तैयारी की।
इसकी जानकारी होने पर गांव के लोगों ने विरोध कर दिया। गांव वालों ने कहा- किसी ईसाई व्यक्ति को गांव में दफनाने नहीं देंगे। चाहे वह गांव का कब्रिस्तान हो या उसकी खुद की जमीन।
जब हाईकोर्ट और सरकार से मदद नहीं मिली तो पादरी के बेटे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। पादरी के बेटे के गुहार लगाने के बाद सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट और सरकार के इस फैसले से दुखी है। हाईकोर्ट और राज्य सरकार समाधान नहीं कर सकीं। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए जवाब मांगा है। अगली सुनवाई बुधवार को होगी।
गांववाले किसी ईसाई व्यक्ति को गांव के कब्रिस्तान या उसकी खुद की जमीन पर भी दफनाने की अनुमति नहीं दे रहे हैं। उनका कहना है कि गांव में किसी ईसाई का अंतिम संस्कार नहीं होगा।
पादरी के बेटे ने इस मामले में क्या कानूनी कदम उठाए हैं?
पादरी के बेटे ने पहले हाईकोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन हाईकोर्ट ने 9 जनवरी को याचिका खारिज कर दी। इसके बाद बेटे ने सरकार से मदद मांगी। जब मदद नहीं मिली, तो उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।