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कृष्ण कुमार सिकंदर। रायपुर. छत्तीसगढ़ में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दौरे से ठीक पहले नक्सलियों ने एक पत्र जारी कर संघर्ष विराम और शांति वार्ता की पेशकश की है। नक्सलियों की इस पहल को माना जा रहा है कि सुरक्षा बलों की ताबड़तोड़ कार्रवाई और भारी संख्या में नक्सलियों के मारे जाने से नक्सली बैकफुट पर हैं। नक्सलियों के संघर्ष विराम और शांति वार्ता की पेशकश को मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भले ही बड़ी सफलता मान रहे हैं, कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज को नक्सलियों के शांति वार्ता का प्रस्ताव सरकार का प्रोपेगेंडा लगा।
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ऑपरेशन कागर के कारण बैकफुट पर नक्सली
नक्सलियों का यह पत्र ऐसे समय में जारी किया है, जब प्रदेश में सुरक्षा बलों ने ऑपरेशन कगार के तहत कई बड़े नक्सली कैंपों को ध्वस्त कर दिया है। नक्सलियों पर लगातार दबाव के कारण अब बातचीत की टेबल पर आने की बात कर रहे हैं। हालांकि, नक्सली मामलों के जानकार मानते हैं कि यह सिर्फ नक्सलियों की रणनीतिक चाल भी हो सकती है, ताकि सुरक्षा बलों की कार्रवाई पर विराम लगे तो खुद को फिर से संगठित कर सकें। नक्सलियों ने यह पत्र तेलुगू भाषा में जारी किया गया है। इस पत्र में सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति ने भारत सरकार से ऑपरेशन कागर को रोकने की अपील की है। साथ ही पत्र में शांति वार्ता के लिए कुछ शर्तें भी रखी हैं।
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शांति वार्ता और संघर्ष विराम की अपील के साथ आरोप भी
नक्सलियों ने एक तरफ शांति वार्ता और संघर्ष विराम की अपील के साथ सरकार और सुरक्षा बलों पर आरोप भी लगाए हैं। पत्र में नक्सलियों ने मध्य भारत में जारी सशस्त्र संघर्ष को तत्काल रोकने की मांग की है। भारत सरकार और सीपीआई (माओवादी) दोनों को बिना शर्त संघर्ष विराम के लिए सहमत होने को कहा गया है। इसके साथ आरोप भी लगाया है कि भाजपा सरकार ने ऑपरेशन कगार को उग्रवाद विरोधी आक्रामक अभियान बताया गया है। इसके तहत माओवादी प्रभावित क्षेत्रों को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है। नक्सलियों ने इस ऑपरेशन के कारण बड़े पैमाने पर हिंसा, गिरफ्तारियां और हत्याएं होने का दावा किया है।
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नक्सलियों ने एक तरफ शांति वार्ता और संघर्ष विराम के लिए जारी पत्र में 400 से अधिक माओवादी नेताओं, कार्यकर्ताओं और आदिवासी नागरिकों के मारे जाने का आरोप लगाया है। इसके अलावा महिला नक्सलियों के साथ कथित यौन हिंसा और फांसी देने, बड़ी संख्या में नागरिकों की अवैध गिरफ्तारी और यातना देने का आरोप का भी आरोप लगाया है। नक्सलियों ने शांति वार्ता और संघर्ष विराम के लिए कुछ शर्ते भी जोड़ी हैं। सरकार से मांग की गई है कि सुरक्षा बलों की तत्काल वापसी हो, नक्सल प्रभावित जनजातीय क्षेत्रों से।नए सैनिकों की तैनाती पर रोक लगाई जाए, भविष्य में कोई सैन्य विस्तार न किया जाए औत उग्रवाद विरोधी अभियानों को निलंबित किया जाए।
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नक्सलियों ने की सरकार पर दबाव बनाने की अपील
नक्सलियों ने शांति वार्ता और संघर्ष विराम की अपील के साथ आदिवासियों के खिलाफ "नरसंहार युद्ध" छेड़ने का आरोप लगाया है। साथ ही नागरिक इलाकों में सैन्य बलों के इस्तेमाल को असंवैधानिक करार दिया है। नक्सलियों ने बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार संगठनों, पत्रकारों, छात्रों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं से सरकार पर शांति वार्ता के लिए दबाव बनाने का भी आह्वान किया है।
इनलोगों के वार्ता के समर्थन में राष्ट्रव्यापी अभियान चलाने की भी अपील की है। साथ ही कहा है कि अगर सरकार उनकी सुरक्षा बलों की वापसी और सैन्य अभियानों को रोकने की शर्त मानती है तो नक्सली भी युद्धविराम की घोषणा करेंगे और बातचीत के लिए तैयार होंगे।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जताया संदेह
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा कि अगर नक्सलियों की ओर से ठोस पहल हुई है तो इस पर विचार किया जाना चाहिए। इसके साथ ही नक्सलियों की पहल संदेह भी जताया है कि कहीं सरकार सिर्फ वाहवाही लूटने के लिए खुद ही प्रोपेगेंडा तो नहीं रही है। बैज ने सवाल उठाए कि नक्सली किस स्थिति में शांति वार्ता करना चाहते हैं? उनका असल मकसद क्या है और बस्तर में शांति स्थापित करने के लिए क्या बेहतर हो सकता है? इस बारे में सरकार को स्पष्ट करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार अगर वार्ता करना चाहती है तो वार्ता से पहले यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि वह वार्ता को किस रूप में देख रही है। क्या यह सिर्फ राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास तो नहीं है?
उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री ने रखा सरकार का पक्ष
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के आरोप पर उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री विजय शर्मा ने सरकार का पक्ष स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि सरकार किसी भी सार्थक वार्ता के लिए तैयार है, लेकिन इसके लिए कोई शर्त मान्य नहीं है। यदि नक्सली वास्तव में मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं, तो उन्हें अपने प्रतिनिधि और वार्ता की शर्तों को सार्वजनिक रूप से स्पष्ट करना होगा। वार्ता का स्वरूप किसी कट्टरपंथी विचारधारा की तर्ज पर नहीं हो सकता। अगर नक्सली वार्ता चाहते हैं, तो उन्हें भारतीय संविधान को स्वीकार करना होगा। अगर नक्सली संविधान को नहीं मानेंगे और शासन के समानांतर कोई व्यवस्था थोपने का प्रयास करते हैं तो वार्ता का कोई मतलब नहीं रह जाता।
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