दंतेवाड़ा में लगेगा फागुन मेला...राज्यों के 1000 देवी-देवता होंगे शामिल
Phagun Fair in Dantewada : फागुन मेला में हर दिन मां दंतेश्वरी की विशेष पूजा अर्चना होगी। साथ ही आखेट की कई रस्म अदा कर 600 साल पुरानी परंपरा निभाई जाएगी।
Phagun Fair in Dantewada : छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में 5 से 15 मार्च तक फागुन मेला लगेगा। हर दिन मां दंतेश्वरी की विशेष पूजा अर्चना होगी। साथ ही आखेट की कई रस्म अदा कर 600 साल पुरानी परंपरा निभाई जाएगी। इससे पहले बसंत पंचमी के दिन दंतेश्वरी मंदिर में त्रिशूल की स्थापना की गई है। फागुन मेला में शामिल होने 1 हजार से ज्यादा देवी-देवता पहुंचेंगे।
इस साल फागुन मेला के लिए टेंपल कमेटी ने करीब 45 लाख रुपए का बजट रखा है और प्रशासन ने मांग की है। खास बात है कि फागुन मेला में शामिल होने सिर्फ छत्तीसगढ़ और बस्तर से ही नहीं बल्कि ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना समेत महाराष्ट्र जैसे पड़ोसी राज्यों से भी देवी-देवता मेला में शामिल होने पहुंचेंगे।
पिछले साल पहली बार मेडाराम और भद्रकाली देवी को भी फागुन मेले में शामिल होने का आमंत्रण मिला था। देवियों ने आमंत्रण को स्वीकारा और मेले में शामिल हुईं। पिछले साल भी करीब 1 हजार देवी-देवता शामिल हुए थे।
किवदंतियों के मुताबिक, करीब 600 साल पहले आखेट (शिकार) प्रचलित था। जंगली जानवर किसानों की फसलें खराब कर देते थे। ग्रामीण इस समस्या के निदान के लिए राजा-महाराजा के पास गए। तब उस समय के राजा ने जानवरों का शिकार करना शुरू किया था। राजा जब शिकार करते, तो किसी दैवीय शक्ति की वजह से तीर लगने के बाद भी जानवर मरते नहीं थे।
फिर राजा ने जानवरों के शिकार के लिए आराध्य देवी माता दंतेश्वरी की आराधना कर अनुमति ली थी। इसके बाद शिकार शुरू किया गया था। अनुमति लेने वाले दिन से ही फागुन मड़ई की शुरुआत हुई थी। इसके बाद धीरे-धीरे स्थानीय देवी-देवताओं को भी इस मड़ई में शामिल किया जाने लगा।
दंतेवाड़ा के दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी लोकेंद्र नाथ जिया की माने तो फागुन मेला आखेट (शिकार) के लिए प्रसिद्ध है। इसमें रस्में तिथि और समय के अनुसार 10 से 11 दिनों तक चलती हैं। अब शिकार का नाट्य रूपांतरण कर परंपरा निभाई जाती है।
FAQ
फागुन मेले का आयोजन कब और कहाँ होता है?
फागुन मेला हर साल छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में आयोजित किया जाता है। इस वर्ष यह मेला 5 से 15 मार्च तक चलेगा।
फागुन मेले की ऐतिहासिक परंपरा क्या है?
फागुन मेला करीब 600 साल पुरानी परंपरा से जुड़ा है। पहले यह आखेट (शिकार) से संबंधित था, जब राजा ने माता दंतेश्वरी की अनुमति लेकर जंगली जानवरों का शिकार शुरू किया था। बाद में यह परंपरा मेले का रूप ले चुकी है, जिसमें देवी-देवताओं की पूजा और आखेट का नाट्य रूपांतरण किया जाता है।
स वर्ष फागुन मेले के आयोजन के लिए कितना बजट निर्धारित किया गया है?
इस वर्ष फागुन मेले के आयोजन के लिए टेंपल कमेटी ने लगभग 45 लाख रुपये का बजट निर्धारित किया है और प्रशासन से इसकी मांग की गई है।