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रायपुर : छत्तीसगढ़ पुलिस की रुचि गाड़ियां खरीदने से ज्यादा किराए की गाड़ियों में है। जितने के वाहन पुलिस के पास हैं उससे ज्यादा किराए में उड़ाए जा रहे हैं। पुलिस ने इतने रुपए किराए की गाड़ियों में उड़ा दिए हैं जिससे 5 हजार से ज्यादा नई चमचमाती गाड़ियां खरीदी जा सकती थीं। द सूत्र की पड़ताल में ये सामने आया है कि पिछले पांच साल में जितने की गाड़ियां पुलिस ने खरीदी हैं उससे ज्यादा पैसे की किराए की गाड़ियां लग गई हैं। हर जिले में पुलिस के पास किराए की जरुरत से ज्यादा गाड़ियां चल रही है। यहां पर यही सवाल उठ रहा है कि क्या किराए की गाड़ियों के नाम पर बड़ा खेला हो रहा है।
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किराए पर पुलिस महकमा
एक तरफ तो छत्तीसगढ़ का पुलिस महकमा किराए पर चल रहा है तो दूसरी तरफ प्रदेश में हत्या और रेप जैसे संगीन अपराधों में इजाफा हो रहा है। हर जिले में पुलिस किराए की गाड़ियां लेकर सांय सांय चला रही है। द सूत्र ने पड़ताल की कि आखिर पिछले पांच साल में कितने की गाड़ियां पुलिस महकमे ने खरीदी हैं और इतने समय में कितना फंड किराए की गाड़ियों में उड़ा दिया गया। इस पड़ताल में हैरान करने वाले आंकड़े सामने आए। पुलिस ने पांच साल में जिनती गाड़ियां खरीदी हैं उससे करीब करीब दोगुनी गाड़ियां किराया देने के बदले आ जाती। पिछले पांच सालों में यानी साल 2020 से 2025 तक 3677 वाहन खरीदे। इनकी कीमत 156 करोड़ 51 लाख 90 हजार 232 रुपए थी। इनमें से 3202 वाहन विभिन्न इकाइयों में उपयोग किए जा रहे हैं। कुछ एक्सीडेंट के कारण ऑफ रोड हैं तो कुछ की डिलेवरी होनी बाकी है।
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पुलिस ने इस साल इतने वाहन खरीदे
साल 2020-2021 में 23 करोड़ की लागत से 746 वाहन खरीदे गए।
साल 2021-2022 में 27 करोड़ में 537 गाड़ियां खरीदी गईं।
साल 2022-2023 में 36 करोड़ में 641 वाहन लिए गए।
साल 2023-2024 में 53 करोड़ की लागत से 1104 गाड़ियों की खरीदी हुई।
साल 2024-2025 में 169 करोड़ में 649 वाहन खरीदे गए।
इस तरह इन पांच सालों में 156 करोड़ खर्च कर 3677 वाहन पुलिस के उपयोग के लिए खरीदे गए।
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ये है किराए का खेला
छत्तीसगढ़ पुलिस जितना पैसा किराए की गाड़ियों में फूंक दिया है उससे पांच हजार नई गाड़ियां खरीदी जा सकती थीं। सूत्रों की मानें तो साल में 50 करोड़ रुपए से ज्यादा सभी जिलों में किराए की गाड़ियों पर खर्च किए जाते हैं। इस हिसाब से पांच साल में किराए की गाड़ियों पर 250 करोड़ रुपए फूंक दिए गए। सबसे अधिक बुरी स्थिति है राजनांदगांव और रायपुर रेंज की। तीन टुकड़ों में बंट गए राजनांदगांव जैसे छोटे जिले में 100 इनोवा और स्कार्पियो किराये की चल रही है। पीएचक्यू के सीनियर आईपीएस के मुताबिक गाड़ियां कागजों में चल रही है। क्योंकि, इतनी गाड़ियों की जरूरत नहीं होती। इनमें से आधी गाड़ियां खुद पुलिस अधिकारियों की है, जो अपने परिजनों और रिश्तेदारों या फिर टैक्सी वालों के जरिये चलवा रहे हैं। डीजीपी ने एक मीटिंग ली थी जिसमें पता चला कि एक एसपी ने रैंडम जांच की तो पता चला कि बिल बनाने के चक्कर में तीन जवानों को चार गाड़ियों में बैठाने कारनामा सामने आ गया। जब सरकार ने इस खेला को रोकने के लिए सख्ती दिखाई तो चार-पांच दिन के भीतर 33 जिलों में पुलिस विभाग ने 400 इनोवा और स्कार्पियो को हटा दिया। बिलासपुर में गाड़ियों की संख्या 110 से 53 पर आ गई है।
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किराए के खेला पर एक्शन जरुरी
अफसरों की ट्रेवल एजेंसी नक्सलवाद के नाम पर बस्तर में किराये की गाड़ियों का खेला शुरू हुआ था, वह अब पूरे छत्तीसगढ़ में फैल गया। सीनियर पुलिस अफसरों के मुताबिक सत्ताधारी पर्टी के छुटभैया नेताओं से लेकर अधिकारियों तक का काफी दबाब रहता है। जिससे सबकी दो-दो, चार-चार गाड़ियां कागजों में चला दी जाती हैं। कई आरआई अपने परिजनों के नाम पर ट्रेवल एजेंसी खोल कर बैठे हैं। यदि सरकार ने किराए के इस खेल पर एक्शन लिया तो उसे करोड़ों रुपए की बचत हो सकती है।
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