छत्तीसगढ़ पुलिस विभाग में कार्यरत अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए एक बड़ा फैसला सामने आया है। शनिवार को मिलने वाली साप्ताहिक छुट्टी को अनिश्चितकाल के लिए रद्द कर दिया गया है। यह निर्णय पुलिस महानिदेशक (DGP) के निर्देश के आधार पर लिया गया है। इसके पीछे लंबित प्रकरणों के समय-सीमा में निराकरण की आवश्यकता को वजह बताया गया है। यह आदेश अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (प्रशासन) की ओर से जारी किया गया है, जिसकी विभाग में व्यापक चर्चा हो रही है।
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ये कहा गया है आदेश में
जारी पत्र में उल्लेख किया गया है कि कार्यालयीन कार्यों की महत्ता और संवेदनशीलता को देखते हुए लंबित प्रकरणों का समय पर निपटारा आवश्यक है। इसी कारण पुलिस महानिदेशक ने निर्देश दिया है कि शनिवार को भी पुलिस मुख्यालय में अधिकारी उपस्थित रहकर आवश्यक कार्यों का निष्पादन करें।
इसके तहत:
सभी अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी) को अपनी शाखा में शनिवार को उपस्थित रहना होगा।
संबंधित शाखा प्रमुखों के साथ सहायक पुलिस महानिरीक्षक (एआईजी) स्तर के अधिकारियों को भी शनिवार को कार्यालय में उपस्थित रहना अनिवार्य किया गया है।
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अन्य विभागों में भी हलचल
इस आदेश के जारी होने के बाद यह खबर मंत्रालय और अन्य सरकारी विभागों में तेजी से फैल गई है। चर्चा है कि पुलिस विभाग के बाद अब अन्य सरकारी विभागों की शनिवार की छुट्टियों पर भी पुनर्विचार हो सकता है। इससे कर्मचारियों में असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है।
फाइव डे वर्किंग सिस्टम पर असर
वर्तमान में छत्तीसगढ़ में सरकारी कर्मचारियों के लिए सप्ताह में पांच दिन कार्य व्यवस्था लागू है। लेकिन व्यावहारिक रूप से अधिकांश आईएएस, आईपीएस और विभागाध्यक्ष शनिवार को भी कार्यालय में उपस्थित रहते हैं। अब इस आदेश के बाद आशंका जताई जा रही है कि सरकार अन्य विभागों में भी शनिवार की छुट्टी समाप्त करने की दिशा में कदम बढ़ा सकती है।
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जनहित का तर्क भी सामने
कुछ वरिष्ठ अफसरों और जनप्रतिनिधियों का मानना है कि शुक्रवार को अगर आम नागरिकों का कोई कार्य लंबित रह जाता है, तो वह सोमवार तक के लिए टल जाता है। ऐसे में यदि कलेक्ट्रेट और अन्य जनसेवा से संबंधित कार्यालय शनिवार को भी खुले रहें, तो इससे आम जनता को सुविधा होगी और कार्यों में तेजी आएगी।
पुलिस विभाग का यह फैसला प्रशासनिक कसौटी पर खरा उतरने की मंशा से लिया गया है, लेकिन इससे कर्मचारियों के कार्य संतुलन और मनोबल पर असर पड़ सकता है। यदि यह सिलसिला अन्य विभागों तक पहुंचता है, तो यह छत्तीसगढ़ की सरकारी कार्यसंस्कृति में एक बड़ा बदलाव साबित हो सकता है।
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