इन दिनों सूबे की सियासत कई अलग अलग रंग दिखा रही है। हो कुछ और रहा है और दिखाया कुछ और जा रहा है। आखिर क्यों अकेले पड़ गए हैं मुखिया। आखिर किसने इनको हाईजैक कर लिया है और कौन कैप्चर कर रहा है सारे पॉलिटिकल पॉवर। क्यों नहीं सुनी जा रही संगठन, नेताओं,कार्यकर्ताओं और यहां तक कि मंत्रियों की। वे कौन नौकरशाह हैं जो हाउस के नाम पर पूरी सत्ता की बागडोर अपने हाथों में लिए हुए हैं। इन सभी सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़िए द सूत्र का साप्ताहिक कॉलम सिंहासन छत्तीसी।
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मुखिया की अपनों से दूरी-इन साहब के लिए जरुरी
प्रदेश के मुखिया अपनों से दूर होते जा रहे हैं और उनको ये खबर भी नहीं है। ये काम कर रहे हैं वे भरोसेमंद नौकरशाह जो सीएम हाउस में बैठे हैं। ये जुगलबंदी मुखिया और उनके लोगों के बीच गहरी खाई खोदने में जुटी हुई है। ये नौकरशाह मुखिया की सरलता और सहजता का फायदा उठाकर अपनी सत्ता स्थापित करने में जुटे हुए हैं। मुखिया को डेढ़ दशक तक पार्टी के सर्वमान्य नेता रहे पूर्व मुखिया से दूर किया जा रहा है। संघ से रिश्ते बिगाड़े जा रहे हैं। संगठन से तालमेल को असंतुलित किया जा रहा है। उनकी ही टीम के तीन अहम सदस्यों से संबंध खराब किए जा रहे हैं।
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ये सब करके मुखिया को अलग-थलग किया जा रहा है ताकि पूरी सरकार संचालन के सूत्र उनके ही हाथ में रहें और वे सत्ता के रथ को जहां चाहें वहां मोड़ दें। इसकी वो कहानी बताते हैँ जो पर्दे के पीछे चल रही है। मुखिया समय_समय पर सलाह लेने प्रदेश का नेतृत्व संभाल चुके अनुभवी और विधानसभा में अहम पद की जिम्मेदारी संभाल रहे नेताजी के पास जाते थे। यह जुगल जोड़ी को पसंद नहीं आया। उन्होंने इनके बीच में दूरी पैदा करनी शुरु कर दीं। उनकी सिफारिशी चिट्ठियों को सीएम हाउस से वायरल किया गया। इन चिट्ठियों से जुड़ी फाइलें सीएम हाउस में धूल खा रही हैं।
केंद्रीय नेतृत्व से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने सरकार बनते ही सीएम के सलाहकार के पद पर एक युवा और तेज तर्रार नेता और पूर्व विधायक को बैठाने को कहा था लेकिन ये काम आज तक नहीं हो पाया। इसके पीछे भी हाउस में बैठे यही श्रीमान हैं। मुखिया के साथ उन तीन अहम मंत्रियों का शीत युद्ध चल रहा है जो सीएम की टीम के प्रमुख अंग हैं। उनके बीच के टकराव को और बढ़ाया जा रहा है। रही बात संगठन की तो संगठन के सभी पत्रों को कूड़ेदान में डाल दिया गया है।
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यही कारण है कि अब तक निगम मंडल समेत अन्य महत्वपूर्ण पदों पर राजनीतिक नियुक्तियां नहीं हो पा रही हैं। संघ इन परिस्थितियों से बहुत नाराज है। लेकिन इन साहबों के आगे किसी की नहीं चल पा रही। ये पूरी सरकार को अपनी तरह से चलाना चाहते हैं। हो वही रहा है जो ये लोग चाहते हैं। यदि वक्त रहते इन घोड़ों पर लगाम नहीं लगाई गई तो रथ में बैठी वर्तमान सरकार के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है। यहां पर एक शेर याद आता है कि मेरे पैरों के नीचे जमीन नहीं हैं, और इसका भी मुझको यकीन नहीं है।
एक आईपीएस की इंट्री से चिंता में पुलिसिया पंच
एक तेज तर्रार आईपीएस कानून के सर्फ से अपने सारे दाग धोकर वापस क्या आए पुलिसिया पंच प्यारों का ब्लड प्रेशर बढ़ गया। दरअसल प्रदेश के पुलिस प्रशासन में पहले क्वाड हुआ करती थी जिसमें चार आला अफसर शुमार थे। अब ये पंच प्यारे हो गए हैं क्योंकि इनमें एक और आईपीएस की इंट्री हो गई है। ये पहले दिल्ली में थे लेकिन अब प्रदेश में अपनी धमक दिखा रहे हैं। एक आईपीएस पांच साल तक धक्के खाकर बेदाग साबित क्या हुए इन पंच प्यारों की चिंता बढ़ गई है।
इन सीनियर आईपीएस को अदालती रगड़ देने में इनकी भूमिका अहम मानी जाती है। इनकी नियुक्ति रोककर नया पेंच फंसाने में इन अफसरों ने पूर्व मुखिया का दरवाजा खटखटाया लेकिन उन्होंने इस मामले में कोई दखल देने से इनकार कर दिया। अदालत और कैट से क्लीन चिट लेकर आए ये सीनियर आईपीएस बीजेपी के लिए हेल्पफुल माने जाते रहे हैं और सरकार को उनकी इंट्री में कोई दिक्कत नहीं है। अब इन पंच प्यारों में शिकायतकर्ता को ग्रिप में लिया और सुप्रीम कोर्ट मामला ले जाने को कहा लेकिन उसने भी अपने हाथ खड़े कर दिए।
अब ये इस चिंता में हैं कि आखिर इस तूफान को रोका कैसे जाए। अदालत से क्लीन चिट लेकर आए ये अफसर तेज तर्रार होने के साथ ही तेज दिमाग, सिस्टम की नस-नस से वाकिफ और खुर्राट भी माने जाते हैं। पंच प्यारों को डर है कि यदि सिस्टम में आ गए तो फिर चुन-चुन कर हिसाब होगा। उनकी पंचायत अब नहीं चल पाएगी क्योंकि बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी।
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