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छत्तीसगढ़ के तीन प्रमुख शहरों रायपुर, भिलाई और कोरबा की हवा लगातार जहरीली बनी हुई है। नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनकैप) के तहत पिछले पांच साल में इन शहरों में हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए 200 करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन हाल ही में सामने आई सेल्फ असेस्मेंट रिपोर्ट ने चौंकाने वाली तस्वीर पेश की है।
इन शहरों में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 10) का स्तर तय मानक से 15 माइक्रोमीटर अधिक है, जो स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन रहा है। प्रशासन ने कई उपाय किए, लेकिन प्रदूषण पर काबू नहीं पाया जा सका। यह स्थिति न केवल सरकारी योजनाओं की प्रभावशीलता पर सवाल उठाती है, बल्कि नागरिकों के स्वास्थ्य को लेकर भी चिंता बढ़ा रही है।
हवा की गुणवत्ता चिंताजनक
15वें वित्त आयोग के तहत रायपुर, भिलाई और कोरबा को एनकैप में शामिल किया गया था, ताकि इन शहरों में वायु प्रदूषण को कम किया जा सके। इन शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए मॉनिटरिंग सिस्टम स्थापित किए गए, और इंजीनियरों को हैदराबाद में विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया।
इसके बावजूद, पीएम 10 का स्तर रायपुर में 75, भिलाई में 69 और कोरबा में 65 माइक्रोमीटर दर्ज किया गया, जबकि राष्ट्रीय मानक के अनुसार यह 60 माइक्रोमीटर से कम होना चाहिए। पीएम 10 वे छोटे कण हैं, जिनका व्यास 10 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है, और ये सांस के जरिए फेफड़ों में पहुंचकर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करते हैं।
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औद्योगिक गतिविधियां और लापरवाही
रिपोर्ट के अनुसार, इन शहरों में प्रदूषण बढ़ने के कई कारण हैं।
औद्योगिक गतिविधियां : भिलाई और कोरबा जैसे औद्योगिक केंद्रों में कारखानों से निकलने वाला धुआं और रसायन हवा को प्रदूषित कर रहे हैं।
निर्माण कार्य : अनियंत्रित निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल पीएम 10 के स्तर को बढ़ा रही है।
वाहनों की संख्या : रायपुर जैसे बड़े शहर में वाहनों की बढ़ती संख्या और उनसे निकलने वाला धुआं प्रदूषण का प्रमुख कारण है।
कृषि और बायोमास जलाना : खेतों में पराली जलाना और कोयला-लकड़ी का उपयोग भी हवा को जहरीला बना रहा है।
प्राकृतिक कारण : जंगल की आग और पराग कण भी प्रदूषण में योगदान दे रहे हैं।
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स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा
पीएम 10 कण सांस के साथ फेफड़ों में प्रवेश कर खांसी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और अन्य श्वसन संबंधी बीमारियों को बढ़ाते हैं। लंबे समय तक ऐसी हवा में रहने से हृदय रोग और फेफड़ों के कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों और बुजुर्गों पर इसका प्रभाव सबसे अधिक पड़ता है। रायपुर के एक डॉक्टर ने बताया, “हवा में मौजूद ये सूक्ष्म कण फेफड़ों में जाकर रक्तप्रवाह को प्रभावित करते हैं, जिससे दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।”
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200 करोड़ खर्च, फिर भी नाकामी
पिछले पांच साल में एनकैप के तहत रायपुर, भिलाई और कोरबा में वायु प्रदूषण कम करने के लिए कई योजनाएं चलाई गईं, जिनमें 200 करोड़ रुपये खर्च किए गए। इनमें शामिल हैं।
सड़क मरम्मत और सफाई : खराब सड़कों की पेंच रिपेयरिंग और पेवर ब्लॉक लगाने का काम।
वृक्षारोपण : शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों में पेड़ लगाने की मुहिम।
ई-वाहनों को बढ़ावा : इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए गए।
बायोमास प्रबंधन : बायोमास जलाने से रोकने के लिए इंसीनरेटर की स्थापना।
कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन प्लांट : निर्माण स्थलों से निकलने वाले कचरे के प्रबंधन के लिए संयंत्र।
जनजागरूकता : वॉल पेंटिंग, सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) अभियान।
इन प्रयासों के बावजूद, हवा की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ। विशेषज्ञों का कहना है कि योजनाओं का कार्यान्वयन सतही रहा, और कई जगहों पर केवल कागजी कार्रवाई हुई। उदाहरण के लिए, निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए गए, और औद्योगिक इकाइयों पर उत्सर्जन मानकों का पालन सख्ती से नहीं कराया गया।
प्रशासन की कोशिशें और कमियां
प्रशासन ने प्रदूषण कम करने के लिए कई कदम उठाए, जैसे निमोरा में प्रशासनिक अकादमी में ट्रेनिंग प्रोग्राम, पब्लिक आउटरेज एक्टिविटी और सड़कों की नियमित सफाई। लेकिन ये प्रयास नाकाफी साबित हुए। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण के स्रोतों पर सख्ती से नियंत्रण और दीर्घकालिक नीतियों की कमी के कारण परिणाम नहीं मिले। उदाहरण के लिए, कोरबा जैसे औद्योगिक शहर में कोयला आधारित प्लांट्स पर प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की नियमित जांच नहीं हो रही है।
नागरिकों की चिंता और मांग
रायपुर, भिलाई और कोरबा के निवासियों ने प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर चिंता जताई है। स्थानीय निवासी और पर्यावरण कार्यकर्ता प्रशांत साहू ने कहा, “200 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी अगर हवा साफ नहीं हो रही, तो यह सरकारी तंत्र की नाकामी है। हमें सख्त कानून और पारदर्शी कार्यान्वयन चाहिए।” नागरिकों ने मांग की है कि
औद्योगिक इकाइयों पर प्रदूषण नियंत्रण मानकों का सख्ती से पालन हो।
निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण के लिए नियमित निगरानी की जाए।
जन जागरूकता अभियानों को और प्रभावी बनाया जाए।
ई-वाहनों और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए और निवेश हो।
औद्योगिक और शहरी विकास की चुनौतियां
वायु प्रदूषण का यह संकट केवल रायपुर, भिलाई और कोरबा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ के औद्योगिक और शहरी विकास की चुनौतियों को दर्शाता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि प्रदूषण कम करने के लिए दीर्घकालिक नीतियां, जैसे हरित ऊर्जा को बढ़ावा, औद्योगिक उत्सर्जन पर सख्त निगरानी और जन परिवहन को मजबूत करना जरूरी है। साथ ही, एनकैप के तहत खर्च किए गए 200 करोड़ रुपये के उपयोग की स्वतंत्र जांच की मांग भी उठ रही है, ताकि यह पता चल सके कि धन का सही इस्तेमाल हुआ या नहीं।
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