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छत्तीसगढ़ में राज्य पॉवर कंपनियों के कर्मचारियों और पेंशनरों के लिए लागू कैशलेस स्वास्थ्य योजना के तहत मोतियाबिंद ऑपरेशन में गंभीर अनियमितताएं सामने आई हैं। आंखों के अस्पतालों में मरीजों से उच्च गुणवत्ता वाले लेंस के लिए अतिरिक्त राशि मांगी जा रही है, और पैसे नहीं देने पर घटिया क्वालिटी के लेंस लगाए जा रहे हैं।
इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि इंजीनियरिंग पब्लिक वेलफेयर एसोसिएशन ने इसकी शिकायत सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से की है। यह घटना न केवल स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता की कमी को उजागर करती है, बल्कि मरीजों के साथ हो रही आर्थिक शोषण की गंभीर समस्या को भी सामने लाती है।
कैशलेस स्वास्थ्य योजना और अनियमितताएं
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राज्य पॉवर कंपनियों के कर्मचारियों और पेंशनरों के लिए शुरू की गई कैशलेस स्वास्थ्य योजना का उद्देश्य जरूरतमंद लोगों को मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना था। इस योजना के तहत मोतियाबिंद जैसे नेत्र रोगों के ऑपरेशन को शामिल किया गया है, जिसका लाभ हजारों लोग उठा रहे हैं।
हालांकि, हाल के महीनों में सामने आए तथ्यों ने इस योजना की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इंजीनियरिंग पब्लिक वेलफेयर एसोसिएशन के अनुसार, कई निजी और सहभागी अस्पताल मरीजों से मोतियाबिंद ऑपरेशन के दौरान इस्तेमाल होने वाले इंट्राआक्यूलर लेंस (IOL) की गुणवत्ता के नाम पर अतिरिक्त राशि वसूल रहे हैं।
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मरीजों को बताया जाता है कि बेहतर दृष्टि के लिए महंगे लेंस की जरूरत है, और यदि वे अतिरिक्त राशि नहीं देते, तो कम गुणवत्ता वाले लेंस का उपयोग किया जाता है। यह प्रथा न केवल केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है, बल्कि मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी है।
लेंस की कीमत में भारी खेल
एसोसिएशन ने अपनी शिकायत में बताया कि केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार, इंट्राआक्यूलर लेंस की कीमत और उसका प्रॉफिट मार्जिन पहले से तय है। इसके बावजूद, कई अस्पताल ड्रग प्राइस कंट्रोल (DPC) शेड्यूल का पालन नहीं कर रहे हैं और लेंस की कीमतों को लेकर कोई सीलिंग प्राइस लागू नहीं किया जा रहा है।
उदाहरण के तौर पर, बाजार में 750 रुपये की लागत वाला लेंस मरीजों को 15,000 रुपये तक में बेचा जा रहा है। यह एक संगठित तरीके से मरीजों के शोषण का मामला है, जिसमें अस्पताल और कुछ चिकित्सा सेवा प्रदाता मिलकर मुनाफाखोरी कर रहे हैं।
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एसोसिएशन के अध्यक्ष पीके खरे ने बताया कि 1 अप्रैल 2025 से 30 अगस्त 2025 तक छत्तीसगढ़ में लगभग 150 मोतियाबिंद ऑपरेशन इस योजना के तहत किए गए। इनमें से कई मामलों में मरीजों ने शिकायत की कि उन्हें या तो महंगे लेंस खरीदने के लिए मजबूर किया गया या फिर घटिया क्वालिटी के लेंस लगाए गए, जिसके कारण उनकी दृष्टि में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ।
खरे ने यह भी बताया कि यह योजना डॉक्टरों और अस्पतालों के बीच लोकप्रिय है, क्योंकि बिल जमा करने के 10 दिनों के भीतर पूरा भुगतान हो जाता है, लेकिन मरीजों के साथ हो रही इस अनुचित वसूली को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
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प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंची शिकायत
इंजीनियरिंग पब्लिक वेलफेयर एसोसिएशन ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है। एसोसिएशन ने अपनी शिकायत में मांग की है।
अस्पतालों द्वारा लेंस की कीमतों में हो रही मनमानी पर तत्काल रोक लगाई जाए।
ड्रग प्राइस कंट्रोल शेड्यूल के तहत इंट्राआक्यूलर लेंस की सीलिंग प्राइस निर्धारित की जाए।
दोषी अस्पतालों और चिकित्सा सेवा प्रदाताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
मरीजों को गुणवत्तापूर्ण लेंस और उपचार सुनिश्चित करने के लिए एक निगरानी तंत्र स्थापित किया जाए।
एसोसिएशन ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि इस मामले में तुरंत कार्रवाई नहीं की गई, तो यह मरीजों के बीच अविश्वास को और गहरा करेगा, और कैशलेस स्वास्थ्य योजना की विश्वसनीयता पर सवाल उठेंगे।
मरीजों पर प्रभाव
मोतियाबिंद एक गंभीर नेत्र रोग है, जिसका समय पर और सही इलाज न होने पर दृष्टिहीनता का खतरा बढ़ जाता है। कैशलेस स्वास्थ्य योजना के तहत मरीजों को मुफ्त या कम खर्च में ऑपरेशन की सुविधा मिलने की उम्मीद थी, लेकिन घटिया लेंस के उपयोग और अतिरिक्त राशि की मांग ने कई मरीजों को निराश किया है।
कुछ मरीजों ने बताया कि ऑपरेशन के बाद उनकी दृष्टि में सुधार के बजाय धुंधलापन या अन्य समस्याएं बढ़ गई हैं, जिसका कारण कम गुणवत्ता वाले लेंस हो सकते हैं। यह स्थिति विशेष रूप से बुजुर्ग मरीजों के लिए चिंताजनक है, जो इस योजना पर सबसे अधिक निर्भर हैं।
प्रशासन और अस्पतालों की जवाबदेही
इस मामले ने छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य विभाग और अस्पतालों की जवाबदेही पर सवाल उठाए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की अनियमितताओं को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम जरूरी हैं।
कठोर निगरानी तंत्र : कैशलेस स्वास्थ्य योजना के तहत संचालित होने वाले अस्पतालों की नियमित जांच और ऑडिट।
पारदर्शी मूल्य निर्धारण : लेंस और अन्य चिकित्सा उपकरणों की कीमतों को सार्वजनिक करना और डीपीसी नियमों का सख्ती से पालन।
जागरूकता अभियान : मरीजों को उनके अधिकारों और योजना के तहत मिलने वाली सुविधाओं के बारे में जागरूक करना।
दंडात्मक कार्रवाई : नियमों का उल्लंघन करने वाले अस्पतालों के खिलाफ लाइसेंस रद्द करने या जुर्माना लगाने जैसे कदम।
अस्पतालों की मुनाफाखोरी
यह मामला छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है। कैशलेस स्वास्थ्य योजना जैसी कल्याणकारी योजनाओं का उद्देश्य गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करना है, लेकिन अस्पतालों की मुनाफाखोरी और प्रशासन की लापरवाही इसे खोखला कर रही है। पीएमओ में शिकायत दर्ज होने के बाद अब यह देखना होगा कि सरकार और स्वास्थ्य विभाग इस मामले में क्या कार्रवाई करते हैं।
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