अरुण तिवारी, RAIPUR. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ की चुनावी सभा में ऐलान कर दिया कि वे तीन साल में छत्तीसगढ़ की नक्सली ( Naxalites ) समस्या को खत्म कर देंगे। अब ये चुनावी जुमला है या कोई मुकम्मल प्लान, 'द सूत्र' ने इसकी पड़ताल की। छत्तीसगढ़ की रगों में नक्सली मर्ज का बहना यहां की सबसे बड़ी समस्या है। केंद्र सरकार ने अब इस मर्ज की सर्जरी करने की तैयारी कर ली है। अमित शाह ने कुछ इसी तरफ इशारा किया है। नक्सलियों को नापने के लिए शाही प्लान तैयार किया गया है। इस प्लान पर ही अमल किया जा रहा है। यदि सब कुछ प्लान के मुताबिक हुआ तो तीन साल में छत्तीसगढ़ से नक्सलियों का सफाया हो सकता है। क्या है ये शाही प्लान या शाह नीति आइए आपको बताते हैं।
अब नक्सलियों को खत्म करने की तैयारी पूरी
छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या दशकों पुरानी है। यहां पर नक्सली और सुरक्षा बलों की मुठभेड़ की खबरें आए दिन आती रही हैं। नक्सलियों की हिमाकत इतनी बढ़ी है कि वे झीरम घाटी जैसी घटना को अंजाम दे चुके हैं। इस घटना में कांग्रेस के दिग्गज नेता नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा और विद्याचरण शुक्ल समेत 33 लोग मारे गए थे। नक्सलियों के खत्म करने के लिए सलवा जुड़ूम जैसी योजनाएं भी चलाई गईं, लेकिन वे अंजाम तक पहुंचती इससे पहले ही इसके जनक महेंद्र कर्मा को मौत के घाट उतार दिया गया। लेकिन अब नक्सलियों को खत्म करने की तैयारी की जा चुकी है। केंद्र सरकार ने इसका पूरा प्लान तैयार कर लिया है। केंद्रीय गृह सचिव का हाल ही में छत्तीसगढ़ दौरा हो चुका है और हाईलेवल मीटिंग कर वे राज्य सरकार के अफसरों को इस प्लान के कुछ प्रमुख बिंदु समझा भी चुके हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी छत्तीसगढ़ की जनता के बीच ऐलान कर दिया है कि अगले तीन साल में नक्सलियों का सफाया कर दिया जाएगा। पिछली भूपेश सरकार ने इसमें हीला हवाली बरती, लेकिन अब नक्सलियों के खात्मे में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी।
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एनआईए को भी हिडमा की सालों से तलाश है
इस पूरे प्लान का पहला टारगेट है 25 लाख का इनामी और नक्सलियों का चीफ हिडमा ( Chief Hidma )। हिडमा को मारने के लिए सुरक्षा बलों ने पिन प्वाइंटेड नक्सली ऑपरेशन का बड़ा प्लान तैयार किया है। सुरक्षा बलों के बढ़ते मूवमेंट के कारण हिडमा डीप फॉरेस्ट एरिया में छिपता फिर रहा है। सुरक्षा बलों को निशाना बनाने के लिए नक्सली टीसीओसी यानी टेक्निकल काउंटर अफेंसिव कैंपेन चला रहे हैं। पिछले कुछ सालों में जो भी बड़े नक्सली हमले हुए हुए हैं उनमें हिडमा का नाम आता रहा है। हिडमा का जन्म साउथ सुकमा के पुरवर्ती गांव में ही हुआ था। हिडमा को हिडमालू और संतोष के नाम से भी जाना जाता है। मुरिया जनजाति से आने वाले 51 साल के हिड़मा के गांव में सुरक्षा बलों ने अपना कैंप खोल लिया है। जानकार कहते हैं कि हिड़मा गुरिल्ला युद्ध में माहिर है और एके 47 का पुराना जानकार है। यही कारण है कि नक्सली उसे अपना कमांडर मानते हैं। हिडमा का बड़ा नेटवर्क माना जाता है। एनआईए को भी हिडमा की सालों से तलाश है। घने जंगल का ये इलाका दंडकारण्य कहलाता है और यही नक्लियों का कोर एरिया माना जाता है। सुरक्षा बलों की धमक कायम रखने के लिए यहां पर बेस कैंप का जाल बिछाया जा रहा है। फॉरवर्ड ऑपरेशन बेस यानी एफओबी बनने से नक्सली और घने जंगल की तरफ भाग रहे हैं। राज्य सरकार कहती है कि वो आम आदमी के लिए सरल है तो नक्सलियों के लिए उतनी ही कठोर है।
अब देखना है कि नक्सली समस्या हल होती है या सिर्फ चुनावी वादा
अमित शाह के तीन साल में नक्सली समस्या खत्म करने के प्लान पर पूर्व मुख्यमंत्री कहते हैं कि छत्तीसगढ़ की जनता इस बात की गवाह है कि बीजेपी की सरकार बनते ही बस्तर में नक्सली घटनाएं बढ़ गई हैं। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार के पांच साल में नक्सलियों के नाम पर आदिवासियों की प्रताड़ना बंद हो गई थी। लेकिन बीजेपी सरकार आते ही फर्जी एनकाउंटर फिर शुरू हो गए हैं। इसलिए कम से कम बीजेपी को नक्सली हिंसा खत्म करने की बात नहीं करनी चाहिए। ये मुद्दा इन दिनों इसलिए भी गर्म है क्योंकि लोकसभा चुनाव हैं, छत्तीसगढ़ में बस्तर में पहले चरण में वोट डालने है। बस्तर ही नक्सलियों का गढ़ माना जाता है। अब देखना है कि तीन साल में छत्तीसगढ़ में नक्सली समस्या हल हो पाती है या ये सिर्फ चुनावी वादे ही रहते हैं।