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रायपुर : छत्तीसगढ़ सरकार की माली हालत खराब है और पुलिस फिजूलखर्ची कर रही है। पुलिस का ध्यान अपराध रोकने में कम और किराए की गाड़ियों के इस्तेमाल पर ज्यादा है। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक अकेले रायपुर पुलिस ही किराए के वाहनों पर सालाना 50 करोड़ रुपए खर्च कर रही है।
विभाग की तरफ से ये बताया गया है कि रायपुर पुलिस किराए की 650 गाड़ियों का इस्तेमाल करती है। यह बात इसलिए भी हैरान करती है क्योंकि सरकार की खरीदी 40 करोड़ की 400 बुलेरो बिना उपयोग के दो साल से खड़ी हैं। उनके इस्तेमाल के लिए टेंडर ही नहीं हो पा रहा। अब इसे किराए में फिजूलखर्ची कहें या फिर पुलिस की मोटी कमाई।
किराए के नाम पर कमाई
छत्तीसगढ़ की पुलिस किराए की गाड़ियों के नाम पर बड़ी कमाई कर रही है। द सूत्र ने इसकी जानकारी जुटाई तो ताज्जुब में डालने वाली थी। आरटीआई के जरिए ये बात पता चली है कि रायपुर पुलिस में 600-650 गाड़ियां किराए की चल रही हैं। विभाग ने किराए के वाहनों की जानकारी तो दे दी लेकिन लॉगबुक की कॉपी नहीं दी।
यहां पर पुलिस ने चालाकी दिखाई है। द सूत्र ने इस गोरखधंधे की पड़ताल की तो यह सामने आया कि यह सरकार के लिए तो फिजूलखर्ची है लेकिन पुलिस के लिए मोटी कमाई का जरिया है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक किराए की गाड़ियां 2 हजार रुपए दिन के हिसाब से चलती हैं। यानी करीब 4 करोड़ रुपए महीने इन गाड़ियों का किराया चुकाया जाता है।
यह खर्च सालाना 50 करोड़ रुपए का होता है। पुलिस के एक बड़े अधिकारी के मुताबिक यह गाड़ियां जमीन पर कम और कागजों पर ज्यादा हैं। पुलिस अफसरों के हिसाब से फर्जी बिल बनाया जाता है। यही कारण है कि आरटीआई में गाड़ियों की लॉगबुक नहीं दी जाती। यह पुलिस की कमाई का बड़ा जरिया होता है।
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यही है पूरे प्रदेश का हाल
पुलिस के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक छत्तीसगढ़ पुलिस जितना पैसा किराए की गाड़ियों में फूंक रही है उससे पांच हजार नई गाड़ियां खरीदी जा सकती थीं। सूत्रों की मानें तो पांच साल में किराए की गाड़ियों पर 250 करोड़ रुपए से ज्यादा फूंक दिए गए। सबसे अधिक बुरी स्थिति है राजनांदगांव और रायपुर रेंज की।
रायपुर में 650 तो तीन टुकड़ों में बंट गए राजनांदगांव जैसे छोटे जिले में 100 इनोवा और स्कार्पियो किराये की चल रही है। दुर्ग और बिलासपुर जैसे बड़े जिलों में भी यही हाल है। पीएचक्यू के सीनियर आईपीएस के मुताबिक गाड़ियां कागजों में चल रही है। क्योंकि, इतनी गाड़ियों की जरूरत नहीं होती। इनमें से आधी गाड़ियां खुद पुलिस अधिकारियों की है, जो अपने परिजनों और रिश्तेदारों या फिर टैक्सी वालों के जरिये चलवा रहे हैं।
नक्सलवाद के नाम पर बस्तर में किराये की गाड़ियों का खेला शुरू हुआ था, वह अब पूरे छत्तीसगढ़ में फैल गया। सीनियर पुलिस अफसरों के मुताबिक सत्ताधारी पर्टी के छुटभैया नेताओं से लेकर अधिकारियों तक का काफी दबाब रहता है। जिससे सबकी दो-दो, चार-चार गाड़ियां कागजों में चला दी जाती हैं। कई आरआई अपने परिजनों के नाम पर ट्रेवल एजेंसी खोल कर बैठे हैं। यदि सरकार ने किराए के इस खेल पर एक्शन लिया तो उसे करोड़ों रुपए की बचत हो सकती है।
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400 नई बुलेरो चलाने नहीं हो पा रहा टेंडर
एक तरफ तो किराए की गाड़ियों पर करोड़ों फूंके जा रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ 40 करोड़ में खरीदी गईं 400 बुलेरो दो साल से चलने के इंतजार में खड़ी हैं। इन गाड़ियों को चलाने के लिए टेंडर ही नहीं हो पा रहा है। रायपुर के परेड मैदान में खड़ी 400 बोलेरो पर धूल की मोटी परत जम गयी है।
वाहन के टायर भी खराब होने लगे हैं। वायरिंग को चूहों ने काट दिया है। गाड़ियों को खरीदने के बाद एक भी बार नहीं चलाया गया है। दो साल से गाड़ियां खड़ी खड़ी जर्जर हो रही हैं। गाड़ियों की खरीद के लिए जून 2024 में टेंडर जारी हो गया था। दिसंबर में बीजेपी की नई सरकार बन गई। नई सरकार में डायल 112 सर्विस संचालन के लिए कई बार टेंडर की डेट आगे बढ़ती रही।
टेंडर फाइनल होने पर नई कंपनी को काम दे दिया गया। जिस कंपनी को काम दिया गया उसके खिलाफ भी बीजेपी सरकार के पास कई शिकायतें थी। लिहाजा, बीजेपी सरकार ने कंपनी को डिफाल्टर बताते हुए टेंडर निरस्त कर दिए। इसके बाद से अब तक न तो नया टेंडर जारी हुआ है, न ही इन गाड़ियों का उपयोग हो रहा है।
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