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छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) योजना के तहत दाखिला लेने की कोशिश कर रहे अभिभावक जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं। उनकी शिकायतें एक जैसी हैं: "2011 की गरीबी रेखा सूची में नाम नहीं है, अंग्रेजी नहीं आती, बच्चे को हिंदी मीडियम स्कूल चाहिए, स्कूल बहुत दूर है, क्या करें?" इन सवालों के बीच हजारों गरीब बच्चों का निजी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा का सपना अधूरा रह रहा है।
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खाली सीटें, अधूरी उम्मीदें
राज्य में आरटीई के तहत दाखिला प्रक्रिया जोरों पर है, लेकिन दूसरे राउंड की आवेदन प्रक्रिया खत्म होने के बाद भी करीब 9,000 सीटें खाली हैं। शिक्षा विभाग की चिंता साफ झलकती है, क्योंकि पहला राउंड पूरा होने के बाद भी दाखिला प्रक्रिया को बढ़ाया गया, फिर भी सीटें नहीं भरीं। पिछले दो सालों में 1 लाख से ज्यादा आवेदन आए, लेकिन सीटों की संख्या उससे आधी होने के बावजूद 8,000 से अधिक सीटें खाली रह गईं। इस साल भी यही स्थिति बनती दिख रही है।
14 साल पुराने नियम बने रोड़ा
विशेषज्ञों का कहना है कि आरटीई के तहत दाखिले के नियमों में खामियां इस समस्या की जड़ हैं। दरअसल साल 2011 की गरीबी रेखा सूची (बीपीएल) बनाई गई थी। इस सूची में नाम दर्ज होना अनिवार्य है। अब यह सूची 14 साल पुरानी है। यानी इस 14 साल में जन्मे बच्चों का नाम इसमें नहीं होगा। यही वजह है कि कई जरूरतमंद परिवार नामांकन की परिधि में नहीं आ पा रहे हैं।
इतना ही नहीं, सामाजिक परिवेश में अंतर होने, स्कूलों का आवंटन दूर हो जाने और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों का चयन आदि कारणों से चुने गए बच्चे भी दाखिला नहीं ले पाते। नतीजतन, गरीब और जरूरतमंद बच्चे इस योजना का लाभ नहीं उठा पा रहे।
हिंदी मीडियम स्कूलों की अनदेखी
इस विसंगति के बाद छत्तीसगढ़ प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने कहा कि हिंदी माध्यम स्कूलों में अधिकांश सीटें खाली रह जाती हैं, जबकि अंग्रेजी माध्यम स्कूलों का आवंटन दूर होने के कारण अभिभावक दाखिला लेने से कतराते हैं। उन्होंने कहा, "नियमों में संशोधन जरूरी है। प्रवेश अर्हता को और लचीला करना होगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे इस योजना का लाभ ले सकें।"
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पिछले सालों का हाल दोहराने की आशंका
पिछले साल 1.22 लाख आवेदनों के बावजूद 8,000 से ज्यादा सीटें खाली रह गई थीं। 2023 में भी 1.18 लाख आवेदनों के बाद 8,859 सीटें नहीं भरी जा सकीं। इस साल भी करीब 1 लाख आवेदनों के बाद 9,000 सीटें खाली हैं। यह स्थिति शिक्षा विभाग के लिए चिंता का विषय है। अगर नियमों में बदलाव नहीं हुआ, तो इस साल भी पिछले सालों की तरह हजारों सीटें खाली रहने की आशंका है।
जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच रही योजना
आरटीई का मकसद गरीब और वंचित बच्चों को निजी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा देना है, लेकिन जटिल नियमों के कारण यह मकसद पूरा नहीं हो रहा। अभिभावकों की शिकायत है कि पुराने नियमों और प्रक्रियागत खामियों के चलते उनके बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित हो रहे हैं। शिक्षा विभाग को अब नियमों में संशोधन और प्रक्रिया को सरल करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि हर जरूरतमंद बच्चे का स्कूल जाने का सपना साकार हो सके।
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