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रायपुर। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस का संगठन लगातार बिखराव की खबरें आ रही हैं। संगठन में बन रहीं इन्हीं दूरियों को मिटाने के लिए कांग्रेस प्रदेश प्रभारी और पार्टी महासचिव सचिन पायलट एक बार छत्तीसगढ़ के दौरे पर आए हैं। वे रायपुर में पार्टी नेताओं की मैराथन बैठक लेने वाले हैं। इस बैठक में नेता और पदाधिकारी अपनी भड़ास निकाल सकते हैं, जिससे बैठक में कमजोर परफॉर्मेंस और निष्क्रिय नेताओं को लेकर हंगामा होने के आसार हैं। वहीं दूसरी ओर पार्टी के नेता लगातार संगठन पर अपनी उपेक्षा के आरोप लगा रहे हैं। ऐसे में उनकी मांग है कि प्रदेश प्रभारी पायलट उनकी बात भी सुनें।
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दिनभर जारी रहेगा बैठकों का दौर
इन बैठकों में प्रदेश संगठन के काम काज की खामियों पर विस्तार से चर्चा हो सकती है। सूत्रों के मुताबिक पार्टी के कई नेता और पदादिकारी भी संगठन की खामियों को उछालकर प्रभारी के संज्ञान में लाने के मूड में दिख रहे हैं। इसके साथ ही बैठक में जिला अध्यक्षों को लेकर भी चर्चा हो सकती है। इसके साथ ही पार्टी के सक्रिय और निष्ठावान कार्यकर्ता लगातार इस मांग को उठा रहे हैं कि सिर्फ पदाधिकारी ही नहीं बल्कि उनसे भी चर्चा कर फीडबैक लेना चाहिए। क्योंकि विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद से संगठन मजबूत होने की बजाय लगातार संगठन कमजोर होता जा रहा है।
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क्या है चुनौती ?
सचिन पायलट के पास सबसे बड़ी चुनौती पार्टी में उपजी गुटबाजी को खत्म कर सभी क्षत्रपों को एकजुट करने की होगी। फिलहाल प्रदेश कांग्रेस में चार गुट नजर आ रहे हैं। जिसमें एक गुट पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का है। भूपेश बघेल पांच साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। और 15 साल की रमन सिंह की सरकार को सत्ता से बाहर करने में उनकी अहम भूमिका थी। लेकिन विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद से भूपेश संगठन में उस तरह से अपनी पैठ नहीं बना पाए, जैसा शायद वो चाहते थे। हलांकि पार्टी ने राष्ट्रीय महासचिव बनाकर उन्हें साधने की कोशिश जरूर की, लेकिन प्रदेश स्तर पर कोई खास तवज्जों नहीं मिलने से वो खफा जरूर हैं। और शायद यहीं वजह है कि सरकार के खिलाफ लड़ाई में फिलहाल उनका योगदान महज सोशल मीडिया पोस्ट तक सीमित है। भूपेश बघेल के बाद पार्टी में दूसरा बड़ा नाम पूर्व उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव का है। सिंहदेव सरगुजा संभाग से आते हैं। पार्टी में उनका कद बेहद बड़ा है। विधानसभा चुनाव के दौरान उनकी नाराजगी जग जाहिर थी, जिसका कांग्रेस पार्टी को नुकसान भी उठाना पड़ा था। विधानसभा चुनाव में पार्टी को सभी 14 सीटों में हार मिली थी।
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क्षत्रपों को साधने की चुनौती
ऐसे में पायलट को भूपेश, सिंहदेव के साथ ही चरणदास महंत और ताम्रध्वज साहू और वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को एक धुरी में लाना होगा। ताम्रध्वज साहू जहां साहू समाज के बड़े नेता माने जाते हैं, वहीं दीपक बैज बस्तर संभाग के बड़े नेता माने जाते हैं। हलांकि 2023 में हुए विधानसभा चुनावों में ये नेता पार्टी को कुछ खास लाभ नहीं दिला पाए थे। लेकिन अगर पार्टी 2028 में बीजेपी सियासी संग्राम जीतना चाहती है तो उसे इन सभी सियासी तीरों को एक साथ अपने तरकश में लाना होगा। अब देखना यह है सचिन पायलट इस सियासी चुनौती से कैसे पार पाते हैं।
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