/sootr/media/media_files/2025/03/09/FGKjRpTrrMFvr4MY7OTP.jpg)
सरकार की एक रिपोर्ट कहती है कि छत्तीसगढ़ में पिछले एक साल में 54 अफसरों को एसीबी ने रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा है। तो फिर ये सांय सांय कार्रवाई है या सांय सांय करॅप्शन। सरकारी अधिकारी,अधिकारी कर्मचारियों को यदि खौफ होता तो एक साल में नजारा कुछ दिखाई देता। लेकिन सरकार बदली है भ्रष्टाचार का सिस्टम नहीं।
इस पर भी सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है कि वो जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम कर रही है। इस बार सिंहासन छत्तीसी में हम भ्रष्टाचार के कुछ ऐसे मामले बता रहे हैं जो सरकार की नाक के नीचे चल रहे हैं। इनसे आप जरुर समझ जाएंगे कि ये करॅप्शन फ्री स्टेट है यानी यहां करॅप्शन के लिए सब फ्री हैं। राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों की ऐसी ही अनसुनी खबरों के लिए पढ़िए द सूत्र का साप्ताहिक कॉलम सिंहासन छत्तीसी।
ये खबर भी पढ़िए...CG Breaking : बेटी ने पिता पर लगाया दुष्कर्म का आरोप
सांय-सांय कार्रवाई या सांय-सांय कॅरप्शन
छत्तीसगढ़ में विष्णु सरकार की ताजपोशी को एक साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है। इस एक साल के दौरान एंटी करॅप्शन ब्यूरो ने 54 सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों को रंगे हाथों घूसखोरी करते हुए पकड़ा है। यानी विष्णुकाल में अब तक 54, छत्तीसगढ़ के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में एक चर्चा बहुत जोरों से चल रही है। विष्णु सरकार के अब तक के कार्यकाल में 54 अधिकारी एसीबी के हत्थे चढ़े हैं यानी हर महीने कम से कम चार सरकारी कारिंदे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहे हैं। तो ये सांय सांय कार्रवाई है या सांय सांस करॅप्शन।
सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है कि वो जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी के तहत कार्रवाई कर रही है। लेकिन हे विष्णु इसे क्या ये नहीं कहा जाएगा कि आपके प्रदेश में खुलेआम भ्रष्टाचार हो रहा है, अगर खौफ होता तो ये घूसखोरी कैसे चलती। यहां पर एक बात और है, कहा जाता है कि पकड़ा गया वो चोर है,जो बच गया वो सयाना है। क्या ये नहीं हो सकता कि पकड़ में सिर्फ 54 आए हैं और न जाने कितने सयाने हैं जो बच गए हैं। जरा गौर कीजिए इस आंकड़े पर। इस पर पीठ थपथपाने की जगह इस चिंता कीजिए।
ये खबर भी पढ़िए...सुरक्षित नहीं पत्रकार, माफिया बना रहे निशाना... ये 5 घटनाएं कह रहीं आतंक की कहानी
ढाई आखर स्कैम के
छत्तीसगढ़ में गुपचुप तरीके से एक बड़ा खेला हो गया। यह खेला जमीनों से जुड़ा हुआ है। इसमें बिल्डर मालामाल और गरीब कंगाल हो रहा है। जाहिर मामला बिल्डर और कोलोनाइजर्स से जुड़ा हुआ है इसलिए एक नियम बदलवाने में पैसे के लेन देन का तो कोई हिसाब ही नहीं होगा। नगरीय प्रशासन विभाग ने बिल्डरों की मिलीभगत से गरीबों के हकों की कटौती करने वाला आदेश 13 सितंबर 2023 को राजपत्र में प्रकाशित कर दिया। सरकारी नियमों में ऐसे समय बदलाव किया गया, जब पूरा तंत्र चुनाव में लगा था। यानी बिल्डर गरीबों का हक मारने में कामयाब हो गए। हुआ कुछ यूं कि कुल आकार की जगह संख्या लिख दिया गया और यहीं पर ढाई अक्षर का स्कैम हो गया।
पुराने नियमों के अनुसार बिल्डर जो कॉलोनी बनाएंगे उसमें कुल जमीन के 15 फीसदी हिस्से में निम्न आय और कमजोर तबके के लिए घर बनाने होंगे। बिल्डरों ने इसे नया नियम करवा दिया। नए नियम के मुताबिक कुल जमीन की जगह मकान या प्लॉट की कुल संख्या का 9 फीसदी हिस्सा ही गरीबों के मकान के लिए होगा। पुराने नियम अनुसार अगर कोई बड़ा बिल्डर 100 एकड़ की कालोनी बना रहा है तो उसे 15 एकड़ गरीबों के आवासों के लिए छोड़ना होता था।
ये खबर भी पढ़िए...BJP में बड़ी बगावत...पार्षदों की क्रॉस वोटिंग से बागी उम्मीदवार की जीत
मगर इस नियम से अब 100 एकड़ में जितने मकान बनाएगा, उन मकानों की संख्या का नौ परसेंट गरीबों के लिए रिजर्व करेगा। रेरा के अनुसार 13 सितंबर 2023 के बाद अब तक छत्तीसगढ़ में 217 नए प्रोजेक्ट की मंजूरी मिली है। इसके लिए 54,65756 वर्ग मीटर क्षेत्रफल की जमीन निर्धारित की गई है। इनमें 25170 प्लाट कटेंगे या आवास बनेंगे। अब इसमें पुराने नियम के हिसाब से गरीबों के लिए 200 एकड़ जमीन आरक्षित करनी पड़ती। जबकि नए नियम के मुताबिक बिल्डरों को इसमें से 9 परसेंट के हिसाब से सिर्फ 20 एकड़ जमीन ही देनी होगी। तो हो गई न बिल्डरों की बल्ले-बल्ले।
नया मोक्षित बनाने की तैयारी
इन दिनों छत्तीसगढ़ मेडिकल कार्पोरेशन के दवा खरीदी में बड़े भ्रष्टाचार की नई नई परतें खुल रही हैं। विधानसभा में भी बीजेपी विधायकों ने सरकार को इस कॅरप्शन पर खूब खरी खोटी सुनाई। मामला इतना बड़ा है कि इसमें दवा सप्लायर के साथ 15 सरकारी अफसरों के खिलाफ भी जांच चल रही है। लेकिन ये सरकारी सिस्टम है साहब ऐसे थोड़ी सुधरेगा। अब ये सिस्टम नया मोक्षित बनाने की तैयारी में लग गया है। पहले हम पहला मोक्षित बताते हैं। छत्तीसगढ़ मेडिकल कारपोरेशन के अफसरों ने बस्तर में बांस की ट्रांसपोर्टिंग करने वाले छोटे व्यवसायी को जमीन से उठाकर एक हजार करोड़ का आसामी बना दिया था।
हालांकि, वक्त ने उसे अब सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है। यही है मोक्षित कार्पोरेशन जो दवा की सप्लाई करता था। लेकिन साहब भी कम नहीं हैं। एक जेल के अंदर गया तो दूसरा मोक्षित तैयार करने लगे हैं। सीजीएमएससी के अफसरों ने नए दवा माफिया के लिए जगह तैयार करनी शुरू कर दी है। 44 लाख लोगों की सिकलसेल जांच के लिए न केवल पॉलिसी बदल दी बल्कि टेंडर में ऐसे क्लॉज डाल दिए हैं जो नए दवा माफिया के लिए मुफीद हैं।
ये खबर भी पढ़िए...बीआईटी में पकड़ी गई बड़ी गड़बड़ी, हिमांशु की जगह दिव्यांशु दे रहा था एग्जाम
संदेह का घेरा यहां से शुरु होता है कि जब 80 लाख लोगों की इन हाउस सिकलसेल जांच हो चुकी थी तो उसका पैटर्न बदलकर पीपीपी मोड क्यों किया गया। उस पर यह शर्त कि ज्वाइंट वेंचर वाली पार्टी ही इसमें अप्लाई कर सकती है। यानी यह सब बातें यह बता रही हैं कि किसी नए माफिया को छत्तीसगढ़ में स्थापित करने की बड़े जोरों की तैयारी है।