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कांकेर। शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए सरकार भले ही 'स्कूल चलो अभियान', 'सब पढ़ें-सब बढ़ें' मध्यान भोजन जैसी योजनाएं चला रही हो। लेकिन जमीनी हकीकत इससे काफी अलग है।
ग्रमीण के घर से चल रहा स्कूल
जिला मुख्यालय से महज 23 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद बाबूदबेना गांव में स्कूल की हालत बेहद दयनीय है। यहां मौजूद प्राथमिक शाला का भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है। आलम यह है कि, पिछले 10 दिन से स्कूल एक ग्रामीण के घर से संचालित हो रहा है।
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स्कूल भवन जर्जर
बात यहीं तक सीमित रहती तो गनीमत थी। इसी मकान में शिक्षकों का कार्यालय संचालित होने के साथ ही शिक्षकों का दफ्तर भी संचालित किया जा रहा है। मिड-डे-मील भी इसी मकान में पकाया जा रहा है। गांव की सरपंच ने बताया कि स्कूल भवन की हालत बेहद जर्जर है।
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ग्रामीण ने दिखाई दरियादिली
भवन के मरम्मत की कोशिश की गई थी, लेकिन छज्जा पूरी तरह ढह गया। बच्चे बीते एक साल से रंगमंच में पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन बरसात के कारण अब वहां बैठना मुश्किल हो गया। ऐसे में गांव के एक युवक अंकित पोटई ने स्कूल चलाने के लिए अपना पक्का मकान नि:शुल्क दिया है।
बिल्डिंग के लिए भेजा प्रस्ताव
सरपंच ने बताया कि नई बिल्डिंग बनाने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। लेकिन इस पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। हैरानी की बात यह है कि जिला शिक्षा विभाग को इस जर्जर स्कूल भवन की भनक तक नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि जब शिक्षा विभाग को जमीनी हालात की जानकारी ही नहीं है तो भी आम जनता को योजनाओं का लाभ कैसे मिलेगा?
जर्जर स्कूल भवनों की मरम्मत की जाएगी
इस मामले में कलेक्टर निलेश कुमार महादेव क्षीरसागर ने कहा कि, जर्जर स्कूलों में बच्चों को न पढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं। रेनोवेशन के लिए जर्जर स्कूलों की लिस्ट बनाई जा रही है। आने वाले समय में जर्जर स्कूल भवनों की मरम्मत कराई जाएगी। इससे पहले जितने भी पोटाकेबिन भवन जर्जर थे उनकी मरम्मत कराई गई है।
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प्रदेश में जर्जर स्कूलों की संख्या
यह स्कूल तो एक बागनी भर है। अगर आकड़ों पर नजर डालें तो प्रदेश के तीन हजार 700 से ज्यादा स्कूल भवन जर्जर है। जिसमें 2 हजार 737 प्राथमिक विद्यालय, 752 माध्यमिक स्कूल , 161 हाई स्कूल और 139 हायर सेकेंडरी स्कूलों के भवन जर्जर हालत में हैं।
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