वन विभाग का 2.5 हजार करोड़ का बजट, हाथी के हिस्से में 2 करोड़ , छत्तीसगढ़ में हाथी मानव संघर्ष

असम,झारखंड के साथ छत्तीसगढ़ में भी हाथी और मानव संघर्ष एक बड़ा और अहम मुद्दा है। पिछले एक दशक में सैकड़ों लोग हाथी के गुस्से का शिकार हुए हैं तो कई हाथी मानव के अमानवीय कर्मों की भेंट चढ़ गए। मानव-हाथी संघर्ष रोकने के लिए वन विभाग गंभीर दिखाई नहीं देता।

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Arun Tiwari
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रायपुर : उत्तराखंड के देहरादून में हुई हाथी प्रोजेक्ट की संचालन समिति की बैठक में एक बार फिर छत्तीसगढ़ की चर्चा हुई। असम,झारखंड के साथ छत्तीसगढ़ में भी हाथी और मानव संघर्ष एक बड़ा और अहम मुद्दा है। पिछले एक दशक में सैकड़ों लोग हाथी के गुस्से का शिकार हुए हैं तो कई हाथी मानव के अमानवीय कर्मों की भेंट चढ़ गए। मानव-हाथी संघर्ष रोकने के लिए वन विभाग कितना गंभीर है यह उसके बजट से दिखाई देता है। वन विभाग का ढाई हजार करोड़ से ज्यादा का बजट है लेकिन हाथी के हिस्से में ढाई करोड़ रुपए भी नहीं आए। सरकार ने इस संघर्ष को रोकने के लिए कई योजनाएं चलाईं लेकिन वे सब भी ठंडे बस्ते में चलीं गईं। छत्तीसगढ़ में मानव - हाथी संघर्ष की पड़ताल करती द सूत्र की रिपोर्ट हाथी कैसे बनेंगे साथी। 

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हाथी क्यों नहीं बन पा रहे साथी 

हाथी का हिंदू धर्म में पौराणिक महत्व है। हाथी को भगवान गणेश का रुप माना जाता है। हाथी धन की देवी लक्ष्मी का वाहन भी माना जाता है। लेकिन इसके बाद भी हाथी और इंसान आपस में साथी नहीं बन पा रहे हैं। हाथी और मानव के बीच संघर्ष बढ़ता जा रहा है। कभी हाथी मानव की जान लेते हैं तो कभी मानव हाथियों को अमानवीय मौत दे देते हैं। हाल ही मे उत्तराखंड के देहरादून में हुई हाथी प्रोजेक्ट के संचालन समिति की बैठक में भी छत्तीसगढ़ में मानव हाथी संघर्ष का मुद्दा उठा। असम,झारखंड समेत छत्तीसगढ़ में भी यह बड़ा मुद्दा है। द सूत्र ने इस मामले की पड़ताल की। इस पड़ताल में इस संघर्ष की बढ़ती इबारत सामने आ गई।

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एक दशक में 600 लोगों की मौत 

छत्तीसगढ़ में प्रवासी हाथियों ने अपना स्थायी बसेरा बना लिया है, इसलिए दो दशकों में हाथियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। यही वजह है कि मानव-हाथी द्वंद्व की घटनाएं बढ़ी हैं। यह आंकड़े डराने वाले हैं कि 11 सालों में इन बेकाबू हाथियों ने तकरीबन 600 लोगों को कुचल कर मार डाला। अभी घटनाएं तेजी से सामने आ रही हैं। हफ्तेभर में ही सात लोग मारे गए हैं। यह भी चौंकाने वाले तथ्य हैं कि इन हाथियों को काबू में करने वन विभाग ने करोड़ों रुपए फूंक दिए, पर समस्या खत्म होने के बजाय बढ़ती ही गई। छत्तीसगढ़ में प्रवासी हाथियों ने अपना स्थायी बसेरा बना लिया है, इसलिए दो दशकों में हाथियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। यही वजह है कि मानव-हाथी द्वंद्व की घटनाएं बढ़ी हैं। यह आंकड़े डराने वाले हैं कि 11 सालों में इन बेकाबू हाथियों ने तकरीबन 600 लोगों को कुचल कर मार डाला।

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दो दशक में 221 हाथियों का शिकार 

हाथी शेड्यूल-1 प्रजाति का एनिमल है। ऐसे में हाथियों की रक्षा करना भी वन विभाग की जिम्मेदारी है। एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में मानव-हाथी द्वंद्व में वर्ष 2001 से वर्ष 2024 तक 221 हाथियों की मौत हुई है। इनमें से 33 प्रतिशत 72 हाथियों की मौत करंट लगने से हुई है। वर्तमान में राज्य में 300 से ज्यादा हाथी मौजूद हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान ने राज्य में हाथियों को लेकर अध्ययन के बाद दावा किया है कि देश में हाथियों की कुल आबादी में से एक प्रतिशत हाथी छत्तीसगढ़ में है, लेकिन देश के अन्य राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ में मानव-हाथी द्वंद्व का अनुपात 15 प्रतिशत है। जानकार कहते हैं कि राज्य में मानव-हाथी द्वंद्व बढ़ने की वजह राज्य में तेजी से कट रहे जंगल हैं। छत्तीसगढ़ में मानव हाथी संघर्ष के बढ़ते मामलों के बाद भी हसदेव जैसे बड़े वन क्षेत्र को कोयले के लिए काटा जा रहा है। यह गंभीर मुद्दा है। 

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इतने काम,सब नाकाम 

सोलर फेंसिंग : इसमें हल्का करंट रहता है, जिससे हाथी गांव के अंदर प्रवेश नहीं कर पाते। यह योजना वर्तमान में धरातल पर ही नहीं है।

मधुमक्खी पालन : विभाग का दावा था कि जंगल में जहां मधुमक्खियों का छत्ता होता है, वहां आसपास हाथी नहीं रुकते, लेकिन यह योजना भी फेल।

अस्स्थायी ट्रांजिस्ट कैंप : इस योजना के तहत विभाग जंगल में हाथियों को चारा देता था। विभाग का मकसद था कि इससे हाथी गांव की तरफ रुख नहीं करेंगे।

कुमकी हाथी : बिगड़ैल हाथियों को रोकने कर्नाटक से कुमकी हाथी लाए गए। कुमकी वर्तमान में सफेद हाथी साबित हो रहे हैं।

रेडियो कॉलर : रेडियो कॉलर खरीदे गए , अभी एक भी हाथी के गले में रेडियो कॉलर नहीं है।
 
सोलर बजुका : खेतों में पुतला खड़ा करने का फरमान था, यह योजना भी कारगर नहीं रही। 

गले में घंटी : हाथियों के गले में घंटी बांधने का आदेश जारी किया गया। इसके लिए विभाग ने घंटियां खरीदी थी, लेकिन यह योजना धरातल पर नहीं उतर पाई।

आठ गजराज वाहनों की खरीदी : गजराज वाहन से भी हाथियों को रहवासी क्षेत्र में आने से रोकने की योजना कारगार साबित नहीं हुई।

राज्य सरकार का बजट 

प्रोजेक्ट हाथी के तहत केंद्र से फंड जरुर मिलता है लेकिन राज्य सरकार अपनी ओर से इतना फंड देती है जो उंट के मुंह में जीरा ही साबित होता है। इस बार वन विभाग का बजट ढाई हजार करोड़ का है लेकिन हाथी-मानव संघर्ष के लिए दो करोड़ रुपए ही रखे गए हैं। राज्य में 2004 से 2014 के बीच  8,657 घटनाएँ संपत्ति नुकसान और 99,152 घटनाएँ फसल नुकसान की दर्ज की गयी। इस अवधि में मानव-हाथी संघर्ष की वजह से 20 करोड़ से ज्यादा मुआवजे की राशि का भुगतान किया गया। प्रोजेक्ट एलिफेंट की शुरुआत साल 1992 में भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी। हाथियों की संख्या में बढ़ोतरी और इनके शिकार को रोकने के लिए प्रोजेक्ट एलिफेंट की शुरुआत हुई थी। प्रदेश में प्रोजेक्ट एलिफेंट नाम के लिए ही चल रहा है। यही वजह है कि इसके बजट में भी इजाफा नहीं हो पा रहा है। प्रोजेक्ट एलिफेंट के तहत प्राकृतिक आवासों को सुधारना, हाथी-मानव संघर्ष को नियंत्रित करना सहित कई काम किए जाते हैं। 

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