सरकार ने निभाया चुनावी वादा, लेकिन शर्तें रख दीं महिला समूहों की हैसियत से ज्यादा

सरकार ने रेडी टू ईट काम को देने के लिए ऐसी शर्तें डाल दी हैं जो महिला समूहों की आर्थिक हैसियत से कहीं ज्यादा हैं। यदि रेडी टू ईट का काम लेना है तो उनको बड़ा निवेश करना होगा। जबकि महिला स्व सहायता समूहों की माली हालत ऐसी नहीं है।

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Arun Tiwari
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The government fulfilled its election promise, but put conditions that were beyond the capacity of women's groups the sootr
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रायपुर : सरकार ने एक साल बाद अपना एक महत्वपूर्ण चुनावी वादा निभाने के लिए कदम बढ़ा दिए हैं। यह वादा है रेडी टू ईट का काम महिला स्व सहायता समूहों को देने का। शुरुवात 6 जिलों से होने जा रही है। लेकिन इसमें एक बड़ी मुश्किल महिला स्व सहायता समूहों के लिए खड़ी हो गई है।

सरकार ने इस काम को देने के लिए ऐसी शर्तें डाल दी हैं जो महिला समूहों की आर्थिक हैसियत से कहीं ज्यादा हैं। यदि रेडी टू ईट का काम लेना है तो उनको बड़ा निवेश करना होगा। जबकि महिला स्व सहायता समूहों की माली हालत ऐसी नहीं है कि वे लाखों की लागत लगाकर इस काम को कर सकें। महिला समूहों के सामने संकट यह है कि वे अब रेडी टू ईट का काम कैसे ले पाएंगी।

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पांच जिलों में रेडी टू ईट 

चुनाव के वक्त बीजेपी ने वादा किया था कि उसकी सरकार बनते ही पोषण आहार के तहत बंटने वाला रेडी टू ईट का काम बीज निगम से लेकर फिर से महिला स्व सहायता समूहों को दे दिया जाएगा। रमन सरकार के समय यह काम महिला स्व सहायता समूहों के ही जिम्मे था लेकिन भूपेश सरकार में यह काम बीज निगम को सौंप दिया था जिससे महिला समूहों से जुड़ी लाखों महिलाएं बेरोजगार हो गईं थीं।

इसी का फायदा बीजेपी ने चुनाव के समय उठाया था। लेकिन इस वादे को पूरा करने में बीजेपी सरकार को साल भर का वक्त लग गया। आखिरकार सरकार ने इसकी तरफ एक कदम बढ़ाया और छह जिलों में रेडी टू ईट का काम महिला स्व सहायता समूहों को देने का फैसला कर लिया।

ये जिले हैँ बस्तर, दंतेवाड़ा, सूरजपुर, कोरबा, रायगढ़ और बलौदाबाजार। इन जिलों में स्वसहायता समूहों को काम देने के लिए सरकार ने कुछ शर्तें रख दीं। ये शर्तें ऐसी हैं जो अधिकांश स्व सहायता समूहों बूते से बाहर हैं क्योंकि इसमें मोटी रकम का निवेश करना होगा। इन शर्तों ने ही महिला स्व सहायता समूहों को संकट में डाल दिया है।

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ये है महिला समूहों का संकट 

एक तरफ सरकार ने अपना चुनावी वादा पूरा करने का दम भर अपनी पीठ थपथपा ली। लेकिन दूसरी तरफ महिलाओं की झोली इस काम को लेने के लिए रेडी नहीं है क्योंकि उसकी आर्थिक हालत ऐसी नहीं है। प्रदेश में 68 हजार से ज्यादा सौ सहायता समूह हैं जिनमें 8 लाख से ज्यादा महिलाएं हैं। महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने के लिए ही सरकार ने यह कदम उठाया था।

रेडी टू ई का काम पहले भी महिलाओं के हवाले ही था लेकिन उस समय शर्तें ऐसी नहीं थीं। अबकी बार शर्तें कुछ ऐसी हो गई हैं जिनको पूरा करने में मुश्किल आ रही है। अब रेडी टू ईट के लिए पूरा काम मशीनों से होगा यानी मानव स्पर्श से रहित रहेगा। अब इन मशीनों को खरीदने, लगाने और संचालन का पूरा खर्च महिला स्व सहायता समूहों को ही उठाना है। यूनिट की स्थापना से लेकर गोडाउन तक की व्यवस्था इन महिलाओं को ही करनी पड़ेगी।

 इन कामों के लिए मोटे पैसे का इंतजाम करना होगा। सरकार ने साफ कह दिया है कि महिला समूहों को आर्थिक रुप से सक्षम होना चाहिए ताकि वे सारी व्यवस्था कर सकें और ये व्यवस्था कम से कम तीन महीनों के लिए हो। हालांकि सरकार ने कहा है कि जिला प्रशासन सीएसआर या डीएमएफ फंड से रीपा के भवनों में ये यूनिट स्थापित करवा सकता है लेकिन मशीन स्थापित करने का खर्च, पानी,बिजली और अन्य व्यवस्थाओं का खर्च महिला समूहों को ही उठाना होगा।

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महिला स्व सहायता समूहों के लिए शर्तें 

ऑटोमेटेड मशीन यूनिट की स्थापना
इसकी लागत और संचालन में खर्च होने वाली राशि महिला समूहों को ही देनी होगी।
रीपा के भवन या गोडाउन का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन ये जिला प्रशासन पर निर्भर करता है।
यदि रीपा के भवन या गोडाउन नहीं मिले तो महिला समूहों को खुद के भवन या किराए के भवनों की व्यवस्था करनी होगी।
सभी संसाधन महिला स्व सहायता समूहों को जुटाने होंगे।
खाद्य सामग्री की साफ सफाई, पिसाई, फोर्टीफिकेशन और पैकेजिंग समेत सभी काम ऑटोमेटिड मशीनों से ही किए जाएंगे। 
खाद्य सामग्री के निर्माण कार्य मानव स्पर्श रहित होने चाहिए। 
महिला समूहों को आर्थिक रुप से सक्षम होना चाहिए ताकि वे खुद ये सारे इंतजाम कर सकें।
इन कामों की निरंतरता कम से कम तीन महीने तक होनी चाहिए

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महिला समूह ऐसे होंगे अपात्र 

सरकार ने एक शर्त और रखी है। रेडी टू ईट का काम करने वाले महिला समूहों की खाद्य सामग्री का साल में दो बार सैंपल लिया जाएगा। यदि ये सैंपल अमानक माना गया तो यह कांट्रेक्ट तत्काल सेल्फ हेल्फ ग्रुप से ले लिया जाएगा। इसके अलावा जो समूह पहले इस तरह के काम करते थे और उनके सैंपल अमानक पाए गए थे तो उनको फिर से यह काम नहीं दिया जाएगा।

सरकार कहती है कि वो महिला स्व सहायता समूहों को कुछ कर्ज दे सकती है। लेकिन सवाल यह है कि यदि महिला स्व सहायता समूहों को आत्म निर्भर बनाना है तो इतनी कड़ी शर्तें लगाना कहां तक उचित है। यदि सरकार क्वालिटी के लिए यह शर्तें डाल रही है तो कम से कम उसे ऑटोमेटेड मशीन यूनिट और गोडाउन की व्यवस्था करनी चाहिए।   

 

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