वनों में आदिवासियों का दखल खत्म करना चाहती है सरकार, 5 साल से नोटिस में अटक रहा अधिकार

इस टकराव की वजह वो नोटिस है जो बार बार जारी होता है और विरोध की आग में जल जाता है। इन दिनों वन विभाग और आदिवासियों के बीच पूरे प्रदेश में आंदोलन की आग धधक रही है। इसी विरोध के बीच कोयला निकालने के लिए अडानी की आरी पेड़ों पर चलने लगी है।

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Arun Tiwari
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The government wants to end the interference of tribals in forests the sootr
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रायपुर : अपने अधिकारों को लेकर वन विभाग और आदिवासियों के बीच लड़ाई बढ़ती जा रही है। पिछले पांच साल से सरकार नोटिस-नोटिस का खेल खेल रही है। अधिकारों का यह टकराव भूपेश बघेल के समय शुरु हुआ था जो आज तक जारी है। इस टकराव की वजह वो नोटिस है जो बार बार जारी होता है और विरोध की आग में जल जाता है। इन दिनों वन विभाग और आदिवासियों के बीच पूरे प्रदेश में आंदोलन की आग धधक रही है। इसी विरोध के बीच कोयला निकालने के लिए अडानी की आरी पेड़ों पर चलने लगी है। आइए आपको बताते हैं फॉरेस्ट और ट्राइबल के बीच बढ़ रहे टकराव की पूरी हिस्ट्री।

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सरकार और ट्राइबल में टकराव 

सरकार और आदिवासियों में हमेशा से टकराव होता रहा है। एक बार फिर ये टकराव तेज हो गया है। हम आपको बता रहे हैं इन दिनों चल रही सरकार और आदिवासियों के बीच की लड़ाई के बारे में। इस पूरी कहानी में मुख्य किरदार वन विभाग है। वन विभाग का एक नोटिस आदिवासियों को हमेशा से परेशान करता रहा है। पिछले पांच साल में यही नोटिस-नोटिस की लड़ाई चल रही है। नोटिस जारी होता है तो विरोध शुरु हो जाता है और नोटिस को टाल दिया जाता है।

हम आपको तीन नोटिस दिखाते हैं। यह लड़ाई शुरु हुई भूपेश सरकार के समय 2020 में जब जून में एक नोटिस जारी हुआ जिसमें वन विभाग को सीएफआरआर यानी कम्युनिटी फॉरेस्ट रिसोर्स राइट्स का अधिकार सौंप दिया जाता है। यह आदिवासियों को मंजूर नहीं था। प्रदेश में इसका विरोध हुआ और कुछ दिनों में नोटिस वापस ले लिया गया। इसका अगला भाग विष्णु सरकार में मई में आया। मई 2025 को फिर एक नोटिस जारी हो गया।

इसमें फिर वही बात कही गई कि वन विभाग को सीएफआरआर के लिए नोडल एजेंसी बनाया जाता है। यह तस्वीरें इस आदेश के विरोध की हैं। यह विरोध बस्तर से लेकर पूरे छत्तीसगढ़ में किया गया। सरकार झुकी और डेढ़ महीने बाद इस आदेश को कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन से जुड़े आलोक शुक्ला कहते हैं कि इसकी नोडल एजेंसी केंद्रीय जनजातिय विभाग है। जब राज्य को अधिकार नहीं है तो फिर वन विभाग क्यों इसमें नोडल एजेंसी बनना चाहता है।

शुक्ला कहते हैं कि दरअसल सरकार, इसके जरिए आदिवासियों की वनों के मामले में दखलंदाजी खत्म करना चाहती है। ताकि वन संबंधी फैसलों के लिए उसे ग्रामसभा की अनुमति न लेनी पड़े और वो अपनी मनमर्जी से उद्योगपतियों के संबंध में फैसले कर सके। वनो पर वनवासियों का अधिकार है और उसके रिसोर्स,प्रबंधन और सुरक्षा के बारे में फैसला वही करेंगे। यह अधिकार उनको कानून देता है। फिर वन विभाग क्यों इसमें अपनी टांग अड़ाता रहता है। कहा ये भी जा रहा है कि केंद्र सरकार नया कानून बनाकर वनवासियों का अधिकार खत्म करना चाहती है। इसीलिए ये सब हो रहा है।

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पेड़ों पर चलने लगी अडानी की आरी 

महाराष्ट्र को बिजली देने के लिए एक बार फिर अडानी की आरी पेड़ों पर चलने लगी है। गारे पेलमा कोल ब्लॉक से महाराष्ट्र बिजली कंपनी के लिए कोयला अडानी को ही देना है। इसलिए एक बार फिर पेड़ों की कटाई शुरु हो गई है। आदिवासियों के विरोध के बीच कांग्रेस ने भी अपना समर्थन दे दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पेड़ों की कटाई वाले गांवों में पहुंचकर सरकार को चेतावनी दे दी। एक तरह से उन्होंने आदिवासियों को यह जताने की कोशिश की कि वे उनके साथ हैं और सरकार उद्योगपतियों के हाथों छत्तीसगढ़ की संपदा को बेच रही है। बघेल ने कहा कि एक पेड़ मां के नाम और सारी संपदा अडानी के नाम।

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यह है गारे पेलमा में पेड़ों की कटाई की वजह 

पेड़ काटने के लिए ग्राम सभा की अनुमि जरुरी है लेकिन बिना अनुमति के ही यह पेड़ काटे जा रहे हैं। यह कोल ब्लॉक गारे पेलमा सेक्टर में है। यह कोल ब्लॉक 14 गांवों के अंतरगत आता है। कोल ब्लॉक का कुल एरिया 2583 हेक्टेयर है। इसमें 200 हेक्टेयर फॉरेस्ट एरिया है।कोयला निकालने का काम अडानी कंपनी को मिला है। कोयला निकालने के लिए हजारों पेड़ काटे जाएंगे। यह मामला एनजीटी दिल्ली में विचाराधीन है।

यह क्षेत्र पांचवीं अनुसूची और पेसा एक्ट के तहत आता है। धारा 244 ख में साफ कहा गया है कि ग्रामसभा की अनुमति के बिना कोई कार्यवाही नहीं हो सकती। छत्तीसगढ़ के घने जंगल के पेड़ लोगों के लिए प्राणवायु हैं। हसदेव जंगल में अडानी कंपनी राजस्थान की बिजली कंपनी के लिए कोयला निकालती है और इसलिए ही लाखों पेड़ काटे जा रहे हैं।

अब राजस्थान के बाद महाराष्ट्र सरकार को भी अपनी बिजली के लिए छत्तीसगढ़ से कोयला चाहिए। इस कोयले को निकाले के लिए महाराष्ट्र पॉवर जनरेशन कंपनी ने अडानी को ही अपना एमडीओ बनाया है। यानी अडानी कंपनी ही महाराष्ट्र पॉवर जनरेशन कंपनी को कोयला मुहैया कराएगी। इसके लिए फिर पेड़ काटे जा रहे हैं।

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