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छत्तीसगढ़ के मुंगेली और बिलासपुर जिलों की सीमा पर स्थित बरेला पुल अब एक सुरक्षित रास्ता नहीं, बल्कि मौत का रास्ता बन चुका है। लाखों रुपये की लागत से दो महीने पहले इस पुल की मरम्मत का दावा किया गया था, लेकिन आज यह पुल फिर से उसी बदहाल स्थिति में है गड्ढे, दरारें, और बारिश में जलभराव। स्थानीय लोगों के लिए यह पुल हर दिन जान जोखिम में डालकर पार करने की मजबूरी बन गया है।
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बरेला पुल की बदहाली पर एक नजर
बरेला पुल, जो राष्ट्रीय राजमार्ग (NH) का हिस्सा है, मुंगेली और बिलासपुर को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण मार्ग है। यह पुल न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि व्यापार और आवागमन के लिए भी अहम है। लेकिन इसकी वर्तमान स्थिति इसे एक खतरनाक रास्ता बना रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि मरम्मत के बाद भी पुल की सतह पर गहरे गड्ढे और दरारें मौजूद हैं, जो वाहनों के लिए खतरा बने हुए हैं। हल्की बारिश में भी पुल तालाब में तब्दील हो जाता है, जिससे गड्ढे दिखाई नहीं देते और दुर्घटनाओं का जोखिम बढ़ जाता है। रात में खराब रोशनी और गड्ढों की वजह से यह पुल और भी खतरनाक हो जाता है।
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लाखों की मरम्मत, फिर भी जस की तस हालत
दो महीने पहले इस पुल की मरम्मत के लिए लाखों रुपये खर्च किए गए थे। लेकिन वर्तमान स्थिति देखकर सवाल उठता है कि यह पैसा कहां गया? क्या मरम्मत के नाम पर सिर्फ पेचवर्क किया गया? स्थानीय लोगों और जानकारों का मानना है कि मरम्मत कार्य में भ्रष्टाचार की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। कुछ प्रमुख बिंदु जो इस आशंका को बल देते हैं। मरम्मत में इस्तेमाल सामग्री की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं। ऐसा लगता है कि सस्ती सामग्री का उपयोग कर ठेकेदारों ने मुनाफा कमाया। मरम्मत कार्य की निगरानी में कमी रही। जिम्मेदार अधिकारियों ने कार्य की गुणवत्ता जांचने में रुचि नहीं दिखाई। यह संदेह है कि मरम्मत का बजट फाइलों में ही खर्च हो गया और वास्तविक कार्य न्यूनतम हुआ।
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कलेक्टर और विधायक का रुख
मुंगेली के कलेक्टर कुंदन कुमार और क्षेत्रीय विधायक पुन्नूलाल मोहले ने मामले का संज्ञान लिया।
कलेक्टर ने कहा, यह पुल दो जिलों की सीमा पर है, जिसके कारण नवनिर्माण की प्रक्रिया में देरी हो रही है। चूंकि यह राष्ट्रीय राजमार्ग का हिस्सा है, इसलिए मैं एनएच अधिकारियों से बात करूंगा और इस समस्या का स्थायी समाधान निकाला जाएगा।
विधायक पुन्नूलाल मोहले का आश्वासन
विधायक मोहले ने भी त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मैंने एनएच अधिकारियों से इस पुल के बारे में बात की है। जनता की सुरक्षा सर्वोपरि है, और इसके साथ कोई समझौता नहीं होगा। जल्द ही ठोस कार्रवाई की जाएगी और समस्या का स्थायी समाधान होगा।”
भ्रष्टाचार की आशंका और जवाबदेही का सवाल
बरेला पुल की बदहाली ने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। मरम्मत के लिए खर्च हुए लाखों रुपये कहां गए? क्या ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत से जनता के पैसे का दुरुपयोग हुआ? क्यों नहीं हुई गुणवत्ता की जांच? मरम्मत कार्य की निगरानी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं निभाई? क्या होगा स्थायी समाधान? कलेक्टर और विधायक के आश्वासनों के बावजूद, क्या यह पुल वाकई सुरक्षित और टिकाऊ बनेगा?
ठोस कार्रवाई और पारदर्शिता की मांग
स्थानीय लोग अब सिर्फ आश्वासनों से संतुष्ट नहीं हैं। उनकी मांग है कि मरम्मत कार्य में हुए खर्च की उच्च स्तरीय जांच हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।पुल की मरम्मत या पुनर्निर्माण में उच्च गुणवत्ता की सामग्री का उपयोग हो और कार्य की निगरानी हो। समस्या का समाधान जल्द से जल्द हो, ताकि लोगों को जान जोखिम में डालकर सफर न करना पड़े।
प्रशासनिक लापरवाही का नमूना
बरेला पुल की बदहाल स्थिति न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि भ्रष्टाचार की आशंका को भी बल देती है। लाखों रुपये खर्च होने के बावजूद पुल की जर्जर हालत जनता के साथ धोखा है। कलेक्टर कुंदन कुमार और विधायक पुन्नूलाल मोहले के आश्वासनों ने उम्मीद जरूर जगाई है, लेकिन जनता अब ठोस कार्रवाई और स्थायी समाधान की प्रतीक्षा में है। यदि इस मामले में भ्रष्टाचार की पुष्टि होती है, तो दोषियों पर कड़ी कार्रवाई अनिवार्य है। सवाल यह है कि क्या बरेला पुल वाकई सुरक्षित बनेगा, या यह सिर्फ कागजी वादों तक सीमित रहेगा? समय और कार्रवाई ही इसका जवाब देगी।
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