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रायपुर : छत्तीसगढ़ में खनिज संपदा का भंडार सरकार और आदिवासी दोनों के लिए आफत बन गया है। सरकार इससे कमाई करना चाहती है तो आदिवासी इसे बचाकर अपनी जिंदगी बचाने में लगे हैं। हसदेव के बाद अब विवाद बैलाडीला पर शुरु हो गया है। सरकार ने आर्सेलर मित्तल और रुंगटा को लोहा निकालने के लिए बैलाडीला की खदानें दे दी हैं। अब आदिवासी इन कंपनियों से लोहा लेने को तैयार होने लगे हैं। बैलाडीला को बचाने के लिए आदिवासियों का संघर्ष पिछले छह साल से चल रहा है। इसी विरोध के कारण 6 साल पहले आवंटित हुई खदान को अडानी कंपनी खोद नहीं पा रही है। अब इन मल्टीनेशनल कंपनियों के खिलाफ आदिवासी आंदोलन पर आमादा हो गए हैँ।
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लोहे पर लाल आदिवासी
हसदेव के बाद अब छत्तीसगढ़ के आदिवासी लोहे पर लाल हो गए हैँ। यह लोहा ले जाने के लिए सरकार ने आर्सेलर मित्तल और रुंगटा को दे दी हैं। आदिवासी इन कंपनियों को लोहा ले जाने से पहले इनसे लोहा लेने को तैयार हो गए हैं। पहले आपको बताते हैं कि मसला क्या है। और क्यों सरकार की कमाई आफत में पड़ गई है। सरकार ने बैलाडीला की चार लौह अयस्क की खदानों की नीलामी की। इनमें से दो खदानें दुनिया की बड़ी स्टील कंपनी आर्सेलर मित्तल ने हासिल की है। इन खदानों की नीलामी से 50 साल में प्रदेश को करीब डेढ़ लाख करोड़ की कमाई का अनुमान है। जिन खदानों की नीलामी की गई है उनमें दंतेवाड़ा जिले की बैलाडीला डिपाजिट-01ए, बैलाडीला डिपाजिट-01बी, बैलाडीला डिपाजिट-01 सी, और कांकेर जिले की हाहालादी की खदान हैं। बैलाडीला की तीनों खदानें कुल 1725 हेक्टेयर की हैं। इससे परे हाहालादी की खदानें 201 हेक्टेयर की हैं। चारों खदानों में करीब तीन सौ मिलियन टन लौह अयस्क होने का अनुमान है। बैलाडीला वन ए, और बैलाडीला वन बी की खदान बहुराष्ट्रीय कंपनी आर्सेलर मित्तल को हासिल हुई है। बैलाडीला वन सी खदान रूंगटा स्टील को मिली है। बैलाडीला की तीनों खदानों से परे कांकेर जिले की हाहालादी की खदान सागर स्टोन को हासिल हुई है।
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अब होगा क्या
सरकार इससे बेहद खुश है क्योंकि इन कंपनियों ने उम्मीद से कई गुना ज्यादा बड़ी बोली लगा दी। कम्पोजिट लाईसेंस के बाद खनन के लिए माइनिंग लीज जारी की जाएगी। सभी को नियमानुसार पर्यावरण स्वीकृति लेनी होगी। खास बात यह है कि चारों खदानों के लिए देश-दुनिया की बड़ी कंपनियों ने रूचि दिखाई। इनमें आर्सेलर मित्तल के अलावा टाटा, जिंदल, निको, सारडा स्टील, लायड स्टील सहित अन्य नामी गिनामी कंपनियां भी दौड़ में थी। चारों खदानें 50 साल की लीज पर आवंटित की जाएगी। इससे राज्य को रायल्टी और डीएमएफ मिलाकर करीब डेढ़ लाख करोड़ की राजस्व प्राप्त होने का अनुमान है।
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लोहा लेने को तैयार आदिवासी
कुछ इसी तरह की कोशिश साल 2018-19 में हुई थी। जब अडानी कंपनी को बैलाडीला की डिपोजिट 13 खदान आवंटित की थी। इस खदान के आवंटन के खिलाफ आदिवासियों ने इतना बड़ा आंदोलन छेड़ा कि इस आवंटन पर रोक लग गई और अब तक अडानी कंपनी यहां से लोहा नहीं निकाल पाई है। बैलाडीला खदान बचाने के लिए आंदोलन कर रहे छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के सदस्य मंगल कुंजाम कहते हैं कि इन खदानों को खोदने से पूरा पर्यावरण संतुलन ही खतरे में पड़ जाएगा। इन खदानों से करीब 150 गांव के आदिवासियों की सांसें और दिनचर्या दोनों चलती हैं। यहां से लोहा निकालने के लिए फिर लाखों पेड़ों की बलि दी जाएगी। यहां के आदिवासी कहते हैं कि छह साल से चल रहा आंदोलन और तेज किया जाएगा। यहां पर न तो खदान खोदने दी जाएगी और न ही पेड़ों को काटने दिया जाएगा।
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यहां पर हिमालय की जड़ी बूटी
मंगल कुंजाम कहते है कि बैलाडीला की इस पहाड़ी पर ऐसी दुर्लभ जड़ी बूटियां हैं जो हिमालय पर पाई जाती हैं। इस खुदाई से यह सभी नष्ट हो जाएंगी। यहां पर जंगली जानवर रहते हैं वे कहां जाएंगे। आदिवासियों की रोजी रोटी के साथ पीने के पानी का संकट पैदा हो जाएगा। 150 गांव के हजारों आदिवासी की जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी। जल्द ही आंदोलन की रुपरेखा तय करने के लिए इन गांवों के आदिवासियों की बैठक होने जा रही है। इसके बाद विरोध प्रदर्शन शुरु हो जाएगा। सरकार के सामने हसदेव के बाद एक और बड़ी चुनौती सामने आ गई है। एक तरफ सरकार के सामने आदिवासी हैं तो दूसरी तरफ मल्टीनेशनल कंपनी। अब देखना है कि आखिर कौन सा पलड़ा भारी पड़ने वाला है।
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