महापौर के डायरेक्ट इलेक्शन की तैयारी , जल्द जारी हो सकता है अध्यादेश

छत्तीसगढ़ सरकार ने अध्यादेश जारी कर चुनावों को छह महीने बढ़ाने का दरवाजा खोल दिया है। नगर निगमों और नगर पालिकाओं का कार्यकाल पूरा होने पर इनमें प्रशासक बैठा दिए जाएंगे।

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Arun tiwari
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रायपुर. सरकार जल्द ही दो बड़े फैसले लेने जा रही है। महापौर और नगरपालिका अध्यक्षों को सीधे जनता चुनेगी। इसके लिए अध्यादेश लाने की तैयारी की जा रही है। वहीं नगरीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव भी एक साथ कराए जाएंगे। इसकी तैयारी भी पूरी कर ली गई है।

इससे पहले सरकार ने अध्यादेश जारी कर चुनावों को छह महीने बढ़ाने का दरवाजा खोल दिया है। नगर निगमों और नगर पालिकाओं का कार्यकाल पूरा होने पर इनमें प्रशासक बैठा दिए जाएंगे। पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही इन चुनावों में रिजर्वेशन दिया जाएगा। यानी ओबीसी को उसकी आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया जाएगा।  

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जनता चुनेगी मेयर

सरकार ने मेयर का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का फैसला कर लिया है। इसके लिए सत्ता और संगठन में सहमति बन गई है। पार्टी के विधायक, सांसद और अन्य नेता भी चाहते हैं कि मेयर का चुनाव सीधे जनता के जरिए होना चाहिए। यह सहमति बनने के बाद सरकार की अंतिम मुहर लगना बाकी है।

सरकार महापौर और नगरपालिका अध्यक्षों के डायरेक्ट इलेक्शन कराने के लिए अध्यादेश जारी कर सकती है। सरकार के अंदर इस बात पर भी विचार हो रहा है कि विधानसभा के शीतकालीन सत्र में नगर पालिक निगम संशोधन अधिनियम लाकर भी इस फैसले को लागू किया जा सकता है।

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रमन सरकार में मेयर के सीधे चुनाव होते थे, लेकिन भूपेश बघेल सरकार ने नियमों को बदलर मेयर के इलेक्शन अप्रत्यक्ष प्रणाली से करा लिए यानी पार्षदों के जरिय महापौर का चुनाव किया गया। सरकार बदलने के बाद लगातार इस बात की चर्चा चल रही थी कि मेयर के इलेक्शन डायरेक्ट हों या इन डायरेक्ट।

इस पर सरकार ने रायशुमारी भी करवाई थी। इसकी रिपोर्ट आने के बाद और जनप्रतिनिधियों की मंशा को देखते हुए सरकार ने अब मेयर का चुनाव सीधे जनता से कराने का फैसला कर लिया है।

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प्रदेश में नगरीय निकायों की स्थिति 

कुल निकाय - 184
नगर निगम - 14
नगर पालिका - 48
नगर परिषद - 122

एक साथ होंगे निकाय और पंचायत चुनाव 

मेयर के सीधे इलेक्शन क साथ ही सरकार निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव भी एक साथ कराने जा रही है। इसकी तैयारी पूरी कर ली है। सरकार ने इसके संकेत भी दे दिए हैं। दरअसल सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया है] जिससे ये स्थानीय चुनाव छह महीने तक की देरी से हो सकते है।

नगरीय निकायों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद सरकार इन पर अपने प्रशासक बैठा देगी। इन चुनावों में छह महीने की देरी करने से सरकार को दोनों चुनाव एक साथ कराने का पूरा वक्त मिल जाएगा। दिसंबर में नगरीय निकायों का कार्यकाल खत्म हो रहा है।

इसके लिए तीन जनवरी से पहले चुनाव कराने होंगे, वहीं फरवरी में पंचायत संस्थाओं का कार्यकाल खत्म हो जाएगा। यही कारण है कि सरकार ने प्रशासक बैठाने का अध्यादेश जारी कर छह महीने तक चुनाव टालने का रास्ता साफ कर लिया है। 

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 ओबीसी आरक्षण का नया नियम होगा लागू 

निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में नए सिरे से आरक्षण किया जाएगा। इस आरक्षण प्रक्रिया में भी देरी लग सकती है। इस बार ओबीसी का आरक्षण नए सिरे से होगा। सरकार ने ओबीसी कल्याण आयोग की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है।

अब हर निकाय और हर पंचायत में ओबीसी की आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया जाएगा। यह पचास फीसदी तक हो सकता है। राज्य निर्वाचन आयोग इसी हिसाब से आरक्षण की प्रक्रिया पूरी करेगा। राज्य निर्वाचन आयोग महापौर का आरक्षण करेगा तो कलेक्टर के जरिए पार्षदों का आरक्षण होगा।

यह चुनाव सरकार के कामकाज का लिटमस टेस्ट माने जा रहे हैं इसलिए वो फूंक फूंक कर कदम रख रही है। बीजेपी जीत के घोड़े पर सवार है तो कांग्रेस को संजीवनी की तलाश है। इन चुनावों में ही कांग्रेस संजीवनी तलाश रही है।

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