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बीजापुर धमाके की कड़ियां अब लंबी होती जा रही है। द सूत्र ने इस धमाके की सुरंग खोदकर बम लगाने से लेकर लाखों का इनामी नक्सली जिसने यह हमला करवाया उसकी जानकारी दे दी। आइए अब आपको बताते हैं कि कैसे 60 किलो के आईईडी बम को जवान डिटेक्ट नहीं कर पाए। यह हैरानी कि बात है कि इतने हैवी बम का पता जवानों को नहीं लग पाया। इसकी क्या वजह है आगे पढ़िए...
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बम का पता इस वजह से नहीं चला
दरअसल, नक्सलियों द्वारा बिछाए गए आईईडी बम को डिटेक्ट करने के लिए जवान मोबाइलट्रेस® हैंडहेल्ड ट्रेस डिटेक्टर मशीन का अधिक इस्तेमाल करते हैं। यह मशीन जमीन के अंदर दफन आईईडी बम को आसानी से डिटेक्ट कर लेती है। बीजापुर धमाके में आरओपी में तैनात जवान जमीन के अंदर दफन बम को इसलिए नहीं पहचान पाए क्योंकि यह डिटेक्टर मशीन केवल 2 फीट अंदर दफन बम की पहचान कर सकती है।
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नक्सलियों द्वारा 60 किलो का आईईडी बम जमीन के 5 से 6 फ़ीट अंदर दफनाया गया था। इस वजह से बम का पता नहीं लग पाया। जवानों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली हैंडहेल्ड ट्रेस डिटेक्टर इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) को आसानी से पहचान जाती है लेकिन, जमीन की गहराई में दफ़न बम को पहचाना मशीन के लिए भी नामुमकिन था।
डीआरजी जवान नक्सलियों के हैं सबसे बड़े दुश्मन
डीआरजी (जिला रिजर्व गार्ड) जवान नक्सलियों के सबसे बड़े दुश्मन हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि डीआरजी की टीम में स्पेशल जवानों की भर्ती होती है। डीआरजी में वह सुरक्षाबल शामिल होते हैं जो, बस्तर इलाके या इसके आस-पास के क्षेत्र के होते हैं। इन सुरक्षाबलों को आसपास की स्थानीय भाषा आती है। ये जवान बस्तर के लोगों से भी जल्दी घुल-मिल जाते हैं। डीआरजी जवानों के इन गुणों के कारण फोर्स को ऑपरेशन करने में सफलता मिली है। नक्सलियों की भाषा आम बोल-चाल वाली होती है। मुखबिरों से भी डीआरजी जवानों के अच्छे संपर्क होते हैं। इसे डीआरजी के जवान आसानी से समझ जाते हैं।
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