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संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर में रविवार रात को यादव समाज के हुए कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बोल और व्यवहार ने कांग्रेस में हलचल मचा दी है। चौहान ने इस कार्यक्रम के दौरान ना सिर्फ कांग्रेस के पूर्व दिग्गज नेता स्वर्गीय सुभाष यादव को याद किया, बल्कि उनके पुत्र व कांग्रेस विधायक सचिन यादव को अपने बगल में बैठाते हुए पूरा सम्मान दिया। सीएम ने सुभाष यादव को लेकर कहा कि मप्र की राजनीति की दिशा बदलने का काम उन्होंने किया था, जो विकास में पीछे रह गया था उनको आगे लाने में अहम भूमिका निभाई थी।
कांग्रेस में सिंधिया के बाद अब बीजेपी की नजरें यादव परिवार पर
यादव परिवार का खरगोन जिले में खासा दखल तो ही और खंडवा में भी उनका अहम प्रभाव है। वहीं निमाड़ के अन्य जिलों में भी वह अपना प्रभाव रखते हैं। खरगोन में कांग्रेस की काफी पकड़ है, हालत यह है कि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में खरगोन की सभी छह सीटों पर बीजेपी की हार हुई थी, कांग्रेस ने पांच जीती और एक निर्दलीय के खाते में गई थी। जिस तरह से कांटे के मुकाबले दिख रहे हैं, ऐसे में अब बीजेपी की नजर कांग्रेस में सिंधिया के बाद यादव परिवार पर है। साल 2023 के चुनाव में मामूली सीटों के अंतर पर यादव परिवार उनके लिए सिंधिया की तरह तारणहार बन सकता है। इसी गणित पर पूरा फोकस किया जा रहा है।
पहले भी सीएम खुलकर दे चुके ऑफर
सीएम शिवराज सिंह चौहान से लेकर गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा और बीजेपी के कई नेता सुभाष यादव के बड़े बेटे अरुण यादव के खुलकर ऑफर दे चुके हैं। नगरीय निकाय चुनाव के दौरान जून-जुलाई 2022 में चौहान ने एक मंच पर कहा था कि ‘आप कांग्रेस में क्या कर रहे हैं, अरुण भैया? आओ और बीजेपी में शामिल हो। कांग्रेस में सिर्फ कमलनाथ ही राज कर रहे हैं। पहले वे (राज्य) अध्यक्ष बने, फिर मुख्यमंत्री… वे हर जगह हैं। आप वहां क्या करेंगे? कांग्रेस में आपकी देखभाल कौन कर रहा है? साल 2018 में, विधानसभा चुनाव से पहले, बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने अरुण यादव को पार्टी में शामिल होने के लिए कहा था, जबकि गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने 2021 के खंडवा उपचुनाव से पहले एक निमंत्रण दिया था, जो उस वर्ष नंदकुमार की मृत्यु के बाद रिक्त हई थी।
जैसा माधवराज सिंधिया के साथ वैसा ही सुभाष यादव के साथ हुआ
कांग्रेस पार्टी में जिस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराज सिंधिया के साथ हुआ वैसा ही कुछ क्रम अरुण यादव के पिता सुभाष यादव के साथ हुआ। दोनों ही पार्टी में तो कई अहम पद पर रहे, सरकार में भी रहे, लेकिन उन्हें कभी भी मुख्यमंत्री पद का सौभाग्य नहीं मिला। माधवराज की जगह दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने और इसी तरह सुभाष यादव भी डिप्टी सीएम के पद तक ही पहुंच सके। ऐसे में इतिहास को देखते हुए भी बीजेपी अब अरुण यादव से आस लगाए हुए हैं। वैसे भी बीजेपी निमाड़ क्षेत्र में अपने मजबूत नेता दिवंगत नंदकुमार चौहान की जगह एक मजबूत नेता की तलाश कर रही है। नंदकुमार 1996 और 2019 के बीच खंडवा से छह बार सांसद रहे। अरूण यादव ने छात्र राजनीति से अपनी यात्रा शुरू की, केंद्र में मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान केंद्रीय राज्य मंत्री (2009-2011) थे, और 2014 में मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एमपीसीसी) के अध्यक्ष बने। उन्हें 2018 में कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए जमीन पर कड़ी मेहनत करने के लिए जाना जाता है, लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले कमलनाथ को एमपीसीसी प्रमुख के रूप में बदल दिया गया।
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अपील के बाद, यादव ने जवाब में ट्वीट किया था कि ‘आपने कांग्रेस के एक छोटे से कार्यकर्ता को सत्ता में आमंत्रित किया है। कांग्रेस पार्टी ने मुझे और मेरे परिवार को बिन मांगे ही बहुत कुछ दिया है। हम सत्ता में जरूर आएंगे, मगर बीजेपी के साथ नहीं कांग्रेस की सरकार बनाकर आएंगे। 2021 में खंडवा में लोकसभा उपचुनाव से पहले, यादव ने चुनाव प्रचार के दौरान दौड़ से बाहर होने का विकल्प चुना था और अपनी नाराजगी के बारे में बात की थी। उन्होंने उस वर्ष कमलनाथ को राज्य नेतृत्व दिए जाने के स्पष्ट संदर्भ में कहा था कि फसल मैं उगाता हूं, काट कोई और ले जाता है। 2018 में भी मेरे साथ ऐसा हुआ था। जब साल 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी तो भी अरुण यादव को कोई अहम भूमिका नहीं मिली। हालांकि, उनके भाई सचिन को मंत्री बनाया गया था। यादव को राज्यसभा में भी भेजे जाने की बात हुई थी, लेकिन विवेक तन्खा को ही फिर मनोनीत किया गया।