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BHOPAL. मप्र में तेलंगाना की पार्टी भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस की एंट्री हुई है। बीआरएस ने जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन यानी जयस के साथ हाथ मिलाकर मप्र में एंट्री की है। बीआरएस और जयस के इस गठबंधन के बाद जयस के दूसरे गुट जिसका नेतृत्व विधायक डॉ. हीरा अलावा करते हैं उसने इस गठबंधन से पल्ला झाड़ लिया है। अब सवाल ये है कि बीआरएस और जयस का ये गठबंधन मप्र की सियासत में किस तरह से असर डालेगा। बीआरएस, जयस और बाकी दलों के साथ मिलकर थर्ड फ्रंट का नेतृत्व करता है तो इससे बीजेपी और कांग्रेस में से किसका फायदा होगा किसे नुकसान। मप्र आदिवासी वर्ग की सियासत किस तरह से बदलने वाली है देखिए ये रिपोर्ट
जयस के पांच और सदस्यों ने बीआरएस की सदस्यता ग्रहण की
बीआरएस यानी भारत राष्ट्र समिति के प्रमुख और तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव और साथ में है जयस से जु़ड़े डॉ. आनंद राय, केसीआर ने डॉ. आनंद राय के गले में गुलाबी दुपट्टा डालकर बीआरएस की सदस्यता दिलाई। डॉ. आनंद राय के साथ जयस के पांच और सदस्यों ने बीआरएस की सदस्यता ग्रहण की। अब इस तस्वीर में जयस के संस्थापक सदस्य विक्रम अछालिया, राष्ट्रीय अध्यक्ष लोकेश मुजाल्दा, सीमा वास्कले, रामदेव काकोड़िया भी नजर आ रहे हैं। दरअसल जय युवा आदिवासी संगठन के ये वो सदस्य है जो खुद को मूल जयस कहते हैं।
जयस के एक गुट के बीआरएस को सपोर्ट करने से क्या मप्र की सियासत बदलेगी
दरअसल जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन यानी जयस एक ऐसा सामाजिक संगठन है जो पिछले 10 सालों से आदिवासी वर्ग के बीच सक्रिय है। 2018 के चुनाव में जयस ने कांग्रेस को सपोर्ट किया था। नतीजा ये रहा कि आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से कांग्रेस ने 30 सीटों पर जीत दर्ज की और बीजेपी 16 सीटों पर सिमट गई। यही वजह है कि पिछले दो सालों से बीजेपी ने आदिवासी वर्ग पर फोकस किया है। अब जयस के एक गुट के बीआरएस को सपोर्ट करने से क्या मप्र की पूरी सियासत बदलने वाली है। बीआरएस में शामिल हुए नेताओं की माने तो तैयारी थर्ड फ्रंट बनाने की है। जिसमें ओबीसी महासभा और चंद्रशेखर की पार्टी भीम आर्मी का भी साथ मिल सकता है। क्योंकि इसी साल जनवरी के महीने में जब भीमा आर्मी ने भोपाल के जंबूरी मैदान में शक्ति प्रदर्शन किया था तो जयस और ओबीसी महासभा ने साथ भीम आर्मी का साथ दिया था और भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर ने मप्र में आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का वादा भी किया और बीआरएस में शामिल नेता मानते हैं कि आदिवासी और समाज के बाकी वर्गों के लिए जमीनी लड़ाई तो जयस जैसे संगठन ही लड़ रहे हैं।
कई सीटों पर त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय मुकाबले हो सकते हैं
जानकार मानते हैं कि यदि ऐसा होता है तो मप्र की सियासी तस्वीर बदल सकती है। जयस पहले से आदिवासी वर्ग के बीच सक्रिय है तो आदिवासी वर्ग उन प्रत्याशियों को समर्थन देगा जो पहले से उनके लिए काम करते रहे हैं। इस तरह से माना जा सकता है कि मप्र में आदिवासी सीटों की सियासत पर भी असर पड़ेगा और यदि ऐसा होता है तो ये बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए चिंता में डालने वाला है। क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस दोनों जानते हैं कि इस वर्ग के साथ यदि अनुसूचित जाति और ओबीसी भी थर्ड फ्रंट में शामिल होते हैं तो कई सीटों पर त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय मुकाबले हो सकते हैं जो दोनों पार्टियों को मुश्किल में डाल सकते हैं।
बीएसपी का विकल्प बनने की कोशिश भीम आर्मी कर रही है
मप्र की दो दलीय चुनावी राजनीति में बीएसपी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन वो कभी भी इस स्थिति में नहीं रहे कि सरकार बनाने में उनकी अहम भागीदारी बनी हो। बीएसपी ने अकेले ही चुनाव लड़ा है न कि किसी पार्टी के साथ। अब बीएसपी का विकल्प बनने की कोशिश भीम आर्मी कर रही है और जयस ने आदिवासी वर्ग में अपना प्रभाव तो जमाया ही हुआ है इसलिए माना यही जा रहा है कि सभी लोग मिल जाते हैं तो फिर एक नई तरह की सियासत जन्म ले सकती है। बहरहाल जयस का दूसरा गुट जो डॉ. हीरा अलावा से जुड़ा है उसने इस गठबंधन से पल्ला झाड़ लिया है और उस गुट का कहना है कि वो स्वतंत्र रूप से 80 सीटों पर चुनाव लड़ने के अपने फैसले पर कायम है।
जयस 2018 के चुनाव के पहले दो गुटों में बंट गया था
जय युवा आदिवासी संगठन यानी जयस 2018 के चुनाव के पहले दो गुटों में बंट गया था। मूल जयस के लोग नहीं चाहते थे कि जयस चुनावी राजनीति में उतरे, लेकिन हीरा अलावा चाहते थे कि जयस के युवाओं को चुनावी राजनीति में आना चाहिए। यहीं से मतभेद शुरू हुए। हालांकि, इन मतभेदों को दूर करने के लिए जयस के दोनों गुटों की बैठक अप्रैल के महीने में खलघाट में हुई थी तब ये तय किया गया कि जयस प्रत्यक्ष तौर पर चुनावी राजनीति से दूर रहेगा। मगर हीरा अलावा गुट उससे पहले ही 80 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुका था। 19 मई को जयस के स्थापना दिवस का कार्यक्रम भी दोनों गुटों ने अलग-अलग तरीके से मनाया। अब जब जयस का एक गुट ने बीआरएस से हाथ मिलाया तो हीरा अलावा गुट ने इस गठबंधन से पल्ला झाड़ लिया।
जयस के दो गुट होने से आदिवासी वर्ग के बीच कन्फ्यूजन पैदा होगा
जयस का हीरा अलावा गुट अभी भी इस बात पर अडिग है कि वो 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगा मगर कोई रोड मैप नहीं है। यानी हीरा अलावा कांग्रेस के ही टिकट पर चुनाव लड़ेंगे या फिर किसी और दल से हाथ मिलाया जाएगा या बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे क्योंकि हीरा अलावा गुट के जयस के कई पदाधिकारी बीजेपी के संपर्क में बताए जाते हैं। हालांकि, हीरा अलावा गुट के पदाधिकारियों का दावा है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों से उनका कोई लेना देना नहीं है। यानी जयस के दोनों गुटों ने मतभेद भुलाने के लिए जो मीटिंग की थी उस मीटिंग का कोई असर पड़ा नहीं और दोनों अब अपनी अपनी राह चलेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जयस के दो गुट होने से आदिवासी वर्ग के बीच कन्फ्यूजन पैदा होगा। हालांकि, दोनों ही गुट इससे इंकार करते हैं।
ये नया गठबंधन आदिवासी सीटों पर किसका नुकसान करेगा
बहरहाल बीआरएस से हाथ मिलाकर मूल जयस ने चुनाव लड़ने के लिए जो जरूरी संसाधन होते है वो जुटाने की कोशिश की है लेकिन हीरा अलावा गुट के सामने संसाधन जुटाना बेहद मुश्किल काम है क्योंकि चुनाव जीतने के लिए कार्यकर्ताओं की टीम के साथ धनबल की भी जरूरत पड़ती है। हीरा अलावा गुट स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेगा तो ये संसाधन कहां से आएंगे इसका जवाब अभी इस गुट के पास नहीं है। अब ये तो हुई जयस की बात लेकिन ये नया गठबंधन आदिवासी सीटों पर किसका नुकसान करेगा बीजेपी का या कांग्रेस का और किसे फायदा मिलेगा
कांग्रेस ने 47 में से 30 सीटें जीती थी, इस बार हालात बदले हुए हैं
हाल ही में कांग्रेस की आदिवासी परिषद् की बैठक में दिग्विजय सिंह का दिया ये बयान काफी मायने रखता है। कांग्रेस भी जानती है कि आदिवासी वर्ग जिस तरफ जाएगा वो ही सरकार बनाने में कामयाब होगा। मगर कांग्रेस के सामने चुनौती ढेर सारी है। पिछली बार कांग्रेस ने 47 में से 30 सीटें जीती थी, लेकिन इस बार हालात बदले हुए हैं। कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले डॉ. हीरा अलावा स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। जयस का एक गुट बीआरएस के साथ शामिल हो चुका है तो क्या कांग्रेस को आदिवासी सीटों पर समर्थन मिल सकेगा या नहीं। आदिवासी सीटों पर कश्मकश के हालात बनने वाले हैं इसलिए कांग्रेस इस बात पर भी विचार कर रही है कि आदिवासी वर्ग से आने वाले प्रत्याशियों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिया जाए।
आदिवासी सीटों पर आरएसएस भी सक्रिय है
जयस की वजह से पिछले चुनाव में बढ़त लेने वाली कांग्रेस को जयस का साथ नहीं मिलेगा तो कहीं ना कहीं नुकसान होगा ये बात तय है। लेकिन बीजेपी क्या फायदे में रहेगी। बीजेपी को भी नुकसान हो सकता है। ये बात बीजेपी भी अच्छी तरह से जानती है। इसलिए पिछले दो साल से आदिवासी वर्ग पर फोकस कर रही बीजेपी ने आदिवासी इलाकों में पेसा एक्ट लागू किया। शिक्षा और रोजगार की चिंता की जा रही है। सीएम शिवराज सिंह चौहान महीने में एकबार झाबुआ जिले का दौरा जरूर करते हैं। आदिवासी सीटों पर आरएसएस भी सक्रिय है और बीजेपी को लगता है कि आदिवासी वर्ग के लिए जो भी कल्याणकारी योजनाएं चल रही है उसका उसे फायदा मिलेगा।
जाहिर है कि जयस ने राजनीतिक गलियारों में टेंशन पैदा कर दी है। अब तक जयस का समर्थन हासिल करने की कोशिशों में जुटे दोनों ही दलों को बीआरएस और जयस के इस गठबंधन से झटका तो लगा है। ये जरूर देखना होगा कि आदिवासी सीटों पर मिलने वाली चुनौती से दोनों दल किस तरह से पार पाएंगे।