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ओमपाल @ ग्वालियर
भारत में जन्माष्टमी का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा और भक्ति का होता है। लेकिन ग्वालियर शहर के फूलबाग स्थित ऐतिहासिक गोपाल मंदिर (Gopal Temple) में इस दिन की खासियत कुछ अलग ही है। इस मंदिर में राधा और कृष्ण की मूर्तियों का श्रृंगार फूलों से नहीं, बल्कि बेशकीमती आभूषणों से किया जाता है। यह आभूषण लाखों नहीं, बल्कि 100 करोड़ रुपए से अधिक की कीमत के होते हैं। इस श्रृंगार में उपयोग किए जाने वाले आभूषणों में स्वर्ण मुकुट, हीरे जड़े कंगन, पन्ना और सोने की सात लड़ी का हार, मोती की माला, और सोने की बांसुरी जैसी चीजें शामिल हैं।
100 करोड़ के आभूषण का महत्व
ये आभूषण सिर्फ धार्मिक महत्व नहीं रखते, बल्कि ऐतिहासिक भी हैं। इन आभूषणों को सिंधिया राजवंश के समय में तैयार किया गया था। यह आभूषण रियासत काल के हैं और इनकी कीमत आज के समय में लगभग 100 करोड़ रुपए से अधिक मानी जाती है। इनका श्रृंगार राधा-कृष्ण की मूर्तियों में किया जाता है, जो जन्माष्टमी के दिन एक अनोखा दृश्य प्रस्तुत करता है।
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बैंक के लॉकर में रखे जाते हैं आभूषण
इन आभूषणों को साल भर बैंक के लॉकर में सुरक्षित रखा जाता है। यह आभूषण केवल जन्माष्टमी के दिन भगवान राधा-कृष्ण के श्रृंगार के लिए निकाले जाते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान, पुलिस और सुरक्षा अधिकारियों की तैनाती होती है। प्रत्येक कदम पर वीडियो ग्राफी भी की जाती है ताकि सुरक्षा और संरक्ष्ण सुनिश्चित किया जा सके। यह आभूषण पूरी तरह से नगर निगम की देखरेख में रहते हैं और इन्हें साल में सिर्फ एक बार, जन्माष्टमी के दिन ही मंदिर लाया जाता है।
ग्वालियर के गोपाल मंदिर का ऐतिहासिक श्रृंगार
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आभूषणों की सुरक्षा के लिए कड़ी निगरानी
आभूषणों की सुरक्षा के लिए कड़ी निगरानी रखी जाती है। लगभग 500 पुलिसकर्मियों की तैनाती इस दिन मंदिर के आसपास की जाती है। इसके अलावा, पूरे परिसर की सीसीटीवी कैमरों के माध्यम से भी निगरानी की जाती है। आभूषणों को लॉकर से मंदिर लाने और वापस रखने के बीच पूरी प्रक्रिया में हर कदम की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है।
जन्माष्टमी के दिन कैसे होता है आभूषणों का श्रृंगार?
जन्माष्टमी के दिन सुबह 10 बजे, आभूषणों को सेंट्रल बैंक के लॉकर से सुरक्षित रूप से निकाला जाता है। फिर इन्हें मंदिर लाया जाता है और भगवान राधा-कृष्ण की मूर्तियों का विशेष श्रृंगार किया जाता है। इस प्रक्रिया में कई घंटे लगते हैं और सुरक्षा व्यवस्था का पूरा ध्यान रखा जाता है। लगभग रात 1 से 2 बजे के बीच, इन आभूषणों को फिर से बैंक के लॉकर में सुरक्षित रख दिया जाता है।
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जानें गोपाल मंदिर का इतिहास
गोपाल मंदिर की स्थापना 1921 में माधवराव प्रथम ने की थी। सिंधिया राजाओं ने भगवान राधा-कृष्ण की पूजा के लिए विशेष चांदी के बर्तन और रत्न जड़ित सोने के आभूषण बनवाए थे, जिनमें पन्ना और सोने का हार, हीरे जड़े कंगन, मोती की माला, और स्वर्ण मुकुट शामिल हैं। 1956 में मध्य प्रदेश के गठन के बाद इन एंटीक गहनों को सुरक्षित रखा गया। 2007 में सरकार ने जन्माष्टमी के दिन इन गहनों को पुनः उपयोग करने की अनुमति दी। तब से हर साल जन्माष्टमी पर भगवान राधा-कृष्ण को इन बेशकीमती आभूषणों से सजाया जाता है और वे 24 घंटे तक भक्तों को दर्शन देते हैं।
मंदिर से जुड़ी है भक्तों की आस्था और मान्यताएं
भक्तों का विश्वास है कि रत्न जड़ित गहनों से सजे राधा-कृष्ण के दर्शन से उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। हर साल जन्माष्टमी पर भक्त इस भव्य स्वरूप के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं। इस वर्ष भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी है, और मंदिर में विशेष पूजा और कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। भक्तों की श्रद्धा और उत्साह का यह दृश्य हर साल जन्माष्टमी पर देखने को मिलता है।
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