मध्य प्रदेश में 25 कॉन्स्टेबलों को सस्पेंड कर दिया गया है। ये कॉन्स्टेबल एमपी के अलग-अलग 5 जिलों के हैं, जिन्हें एक हफ्ते के भीतर सस्पेंड किया गया है। सस्पेंड करने का कारण बस इतना है कि इन्होंने 15 अगस्त के परेड के लिए बैंड प्रशिक्षण में जाने से मना कर दिया था। ऐसे में मामला दो बार कोर्ट तक जा चुका है। वहीं पुलिस मुख्यालय ने तीन बार इसे लेकर अलग-अलग आदेश दिए हैं।
आदेश का पालन नहीं करने पर किया सस्पेंड
आरक्षकों को सस्पेंड करने का कारण बताते हुए पुलिस अधिकारियों का कहना है कि आदेश का पालन नहीं करने पर यह एक्शन लिया गया है। आपको बता दें कि आरक्षकों को 15 अगस्त के परेड के लिए बैंड प्रशिक्षण में जाने के आदेश दिए गए थे। एमपी के सभी 5 जिलों ( रायसेन, मंदसौर, खंडवा, हरदा और सीधी ) के 25 कॉन्स्टेबल को सस्पेंड किया गया है।
जानें कहां से शुरू हुआ पूरा मामला...
एमपी के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने मुख्यमंत्री बनते ही प्रदेश के हर जिले में पुलिस बैंड की स्थापना करने का फैसला लिया। ऐसे में सीएम के आदेश के बाद पुलिस हेड क्वार्टर, भोपाल से एडीजी साजिद फरीद शापू ने 18 दिसंबर को सभी जिलों के एसपी के नाम आदेश जारी किया। आदेश में लिखा था कि हर जिले में पुलिस बैंड की स्थापना की जानी है।
अपनी इकाई में पदस्थ आरक्षक से लेकर एएसआई रैंक तक के कर्मियों की सूची 25 दिसंबर तक विशेष सुरक्षा बल मुख्यालय तक आवश्यक तौर पर भेजें। भेजे गए नाम ऐसे होने चाहिए जो 45 वर्ष की उम्र से कम हों। साथ ही वो बैंड दल में शामिल होने के इच्छुक हों। इनकी लिखित सहमति के आवेदन पत्र के साथ ही इनकी सूची विशेष सुरक्षा बल मुख्यालय को भेजी जाए।
इस आदेश के बाद 10 जनवरी से इंदौर, भोपाल और जबलपुर में 90 दिवसीय प्रशिक्षण की शुरुआत हो गई । इस प्रशिक्षण में प्रदेशभर की तमाम बटालियन के 330 कॉन्स्टेबल शामिल हुए।
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एसपी ने बिना इच्छा जाने ही नाम भेजे
इस आदेश के बाद 10 जनवरी से इंदौर, भोपाल और जबलपुर में 90 दिवसीय प्रशिक्षण की शुरुआत हो गई । इस प्रशिक्षण में प्रदेशभर की तमाम बटालियन के 330 कॉन्स्टेबल शामिल हुए। वहीं कई जिलों के एसपी ने बीना कॉन्स्टेबल की इच्छा जानें नाम भेज दिए।
आरक्षकों ने कोर्ट में दी याचिका
इच्छा के विरुद्ध नाम भेजे जाने पर आरक्षकों ने कोट में याचिका दयर की। आरक्षकों की तरफ से दायर याचिका में वकीलों ने दलील दी कि आरक्षकों ने बैंड दल में जाने की इच्छा नहीं जताई है। न ही कोई लिखित सहमति दी। इसके बावजूद इन्हें बैंड दल में शामिल होने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। इन दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया। बाकी के जवान प्रशिक्षण लेते रहे।
यह प्रशिक्षण पुलिस जवानों के स्किल डेवलपमेंट के लिए है- कोर्ट
सरकार की तरफ से एडवोकेट नीलेश सिंह तोमर ने कोर्ट को बताया कि पुलिस विभाग ने पहले सहमति का कॉलम रखा था, लेकिन किसी ने भी प्रशिक्षण के लिए लिखित सहमति नहीं दी। इसके बाद विभाग ने तय किया कि किसी की सहमति नहीं ली जाएगी और बगैर सहमति के ही ट्रेनिंग लिस्ट तैयार की जाएगी।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद ग्वालियर हाईकोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि संगीत देवदूतों की भाषा है। सरकार ने हर जिले में पुलिस बैंड के गठन का फैसला कम्युनिटी पुलिसिंग को ध्यान में रखकर किया है, इसमें कुछ गलत नहीं है। ये प्रशिक्षण पुलिस जवानों के स्किल डेवलपमेंट के लिए है।
सुनवाई के बाद निकले आदेश
स्वतंत्रता दिवस करीब आते ही, पुलिस मुख्यालय से फिर आदेश जारी हुआ। आदेश में जिलों के एसपी को प्रशिक्षण के लिए नए बैंड वादक कर्मियों को आवंटित इकाइयों में अभ्यास में भेजने के आदेश दिए गए। ताकि हर जिले में 15 अगस्त की परेड में उच्च स्तरीय बैंड का प्रदर्शन हो सके।
कर्मचारियों की इच्छा होने की बात नहीं लिखी
आदेश में कर्मचारियों की इच्छा होने की बात नहीं लिखी थी। इसके बाद तमाम जिलों के एसपी ने कर्मियों को नॉमिनेट कर अभ्यास जॉइन करने के आदेश जारी किए। इसके बाद जिन आरक्षकों ने अभ्यास जॉइन नहीं किया उन्हें सस्पेंड कर दिया गया।
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