संजय गुप्ता @ INDORE
इंदौर विकास प्राधिकरण ( IDA ) के प्रशासनिक बोर्ड ने हाल ही में स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स ( Sports Complex ) में स्टेडियम का टेंडर निरस्त किया है। औपचारिक रूप से यह कहा गया कि सिंगल टेंडर होने के चलते इसे निरस्त किया गया है, लेकिन पर्दे के पीछे कहानी है 250 करोड़ के खेल की। जो सिर्फ एक लाइन के जरिए कर दिया गया, लेकिन बाद में प्रशासनिक बोर्ड ने इसे पकड़ लिया।
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एक लाइन की कीमत 250 करोड़
आईडीए ने इस स्पोर्टस कॉम्पलेक्स ( Sports Complex ) में करीब 20 एक़ड़ जमीन देने का टेंडर निकाला। पहले टेंडर में शर्त थी कि रजिस्ट्रीकृत संस्थाएं ( जैसे कि एमपीसीए, आईडीसीए या अन्य ) को रियायती दर में यह दिया जाएगा। रियायती दर का फार्मूला था कि पास में जो प्लॉट बिका है, उसके दाम का 40 फीसदी दाम तय किया जाएगा। आईडीए ने पास में एक प्लाट करीब 59000 रुपए प्रति वर्गमीटर के भाव में बेचा। यानि इसका 40 फीसदी दाम हुआ 23800 रुपए प्रति वर्गमीटर के करीब।
* पहले टेंडर में था कि एमपीसीए यहां ब़ड़ा स्टेडियम बनाएगी और यह जमीन ले लेगी। पूरा शहर यही चाहता था लेकिन एमपीसीए अधिकतम 80 करोड़ रुपए देने के लिए तैयार था और इसके लिए हर जगह बात हो रही थी। लेकिन आईडीए नहीं माना और टेंडर के हिसाब से जमीन देने की बात कही, इसकी कीमत रियायती दर 23800 रुपए प्रति वर्गमीटर से हो रही थी 197 करोड़ के करीब।
* इस पहले टेंडर में किसी ने भागीदारी नहीं की और यह मामला खत्म हो गया। एमपीसीए लगातार बिना टेंडर के देने की बात करता रहा लेकिन आईडीए ने कहा कि इतना घाटा नहीं सह सकते और इसकी भरपाई कैसे होगी? इसके बाद मामला खत्म हो गया।
* अब असली खेल हुआ। आईडीए फिर से टेंडर निकालता है, लेकिन इस बार वह एक लाइन शर्त की गायब कर देता है जिसमें रियायती दर पर रजिस्ट्रीकृत संस्थाओं को देने का नियम रहता है। लेकिन दाम रियायती दर वाले 23800 रुपए प्रति वर्गमीटर ही रखे जाते हैं, इसे 59000 रुपए प्रतिवर्गमीटर नहीं किया जाता है।
* यानी आईडीए को स्टेडियम की जो कीमत 59000 रुपए प्रति वर्गमीटर के हिसाब से 450 करोड़ के करीब रखना था, वह कीमत अभी भी शर्त हटने के बाद भी रहती है 23800 रुपए प्रति वर्गमीटर के हिसाब से केवल 197 करोड़ रुपए।
आईडीए प्रशासकीय बोर्ड ने यही चोरी पक़ड़ी थी
इस तरह टेंडर की एक लाइन की शर्त का खेल करते शासन और आईडीए दोनों को ही 250 करोड़ का चूना लगाने की तैयारी हो गई थी। आईडीए के चेयरमैन रहते हुए जयपाल सिंह चावड़ा और सीईओ आरपी अहिरवार के समय यह पूरा खेल हो गया। जनवरी में टेंडर खुल गया और कंपनी से 19 करोड़ रुपए जमा भी करा लिए। इस टेंडर को मंजूर करने के लिए ही यह प्रशासकीय बोर्ड की बैठक हो रही थी, जिसमें नए प्रशासकीय प्रमुख संभागायुक्त मालसिंह, प्रभारी सीईओ गौरव बैनल ने टेंडर की फाइल पढ़ने पर यह मामला पक़ड़ लिया, इसके बाद कलेक्टर आशीष सिंह व अन्य अधिकारियों ने बोर्ड बैठक से पहले आपस में चर्चा की और मामले को संदिग्ध मानते हुए तय किया कि टेंडर की शर्तों में बदलाव को देखते हुए और सिंगल टेंडर के चलते मामले को मंजूर करने की जगह बेहतर होगा इस टेंडर को रद्द कर दिया जाए। इसके बाद यह सिंगल टेंडर रद्द कर दिया गया।
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क्या चावड़ा के जाते-जाते हो रहा था खेल ?
यह पूरा टेंडर का काम जनवरी 2024 मे हो गया। तब आईडीए चेयरमैन के पद पर जयपाल सिंह चावड़ा थे और आईडीए सीईओ आरपी अहिरवार। किसी भी टेंडर की शर्त को मंजूरी सीईओ और चेयरमैन स्तर पर ही होती है और इन्हीं की मंजूरी के बाद ही यह जारी होते हैं। अब ऐसे में सवाल यही उठ रहा है कि क्या चावड़ा और अहिरवार ने इस फाइल को देखा नहीं या जानबूझकर अनदेखा किया, इसके चलते 250 करोड़ का चपत आईडीए और शासन को लगने वाली थी। चावड़ा तो 13 फरवरी को शासन द्वारा राजनीतिक नियुक्ति खत्म होने के चलते पद से हट गए और उधर अहिरवार भी मिड फरवरी में 29 मार्च तक के लिए मसूरी ट्रेनिंग में चले गए।
सिंगल टेंडर को क्यों स्वीकार किया गया ?
दूसरी बात टेंडर की शर्त के अलावा भी यह है कि जिस सिंगल टेंडर वाली बात को संभागायुक्त का प्रशासकीय बोर्ड और नए प्रभारी सीईओ गौरव बैनल मंजूर नहीं कर रहे हैं, फिर उसे आईडीए चेयरमैन रहते हुए चावड़ा और अहिरवार ने कैसे उचित मानकर प्रारंभिक मंजूरी कैसे दे दी और कंपनी से 19 करोड़ रुपए भी भरवा लिए। ऐसे में पूरे मामले में स्टेडियम की आड़ में खेला होने की आशंका और तेज हो जाती है। जिसे कहीं ना कहीं प्रशासकीय बोर्ड ने महसूस किया और टेंडर खारिज कर दिया।