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MP News: जबलपुर हाईकोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने पॉक्सो एक्ट के दुरुपयोग को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। इसमें कथित पीड़िता, उसके परिवार, विवेचना करने वाले पुलिसकर्मी और न्याय दिलाने के जिम्मेदार जिला जज पर भी सवाल उठे हैं।
2020 में दर्ज हुआ मामला 5 साल कटे जेल में
साल 2020 के अप्रैल महीने एक युवती रात 10:00 बजे अपने घर से लापता हो गई। युवती के परिजनों ने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई और उसकी उम्र 16 वर्ष 10 महीने बताई गई। शहडोल के सीधी थाने में पहले गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखी गई। जब युवती को दस्तयाब किया गया तो तो उसके परिजनों ने आरोप लगाया कि उसे गांव के एक युवक ने बहला-फुसला कर ले गया और रेप किया है। इसके बाद सीधी थाने में आरोपी बनाते हुए 26 अप्रैल 2020 को युवक के खिलाफ FIR दर्ज की गई।
इस FIR में आरोपी पर पॉक्सो एक्ट की धारा 6 सहित 363, 366A, 343, IPC की धाराएं लगाई गई थी। इसके बाद युवक के द्वारा लगातार अदालत में जमानत के आवेदन दिए गए। लेकिन बीते 5 सालों में से एक भी बार जमानत नहीं मिली। 29 जनवरी 2024 को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ब्यौहारी से कथित आरोपी को 20 साल की सश्रम कारावास और जमाने की सजा सुना दी गई।
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कथित पीड़िता की आयु का नहीं था कोई प्रमाण
शहडोल की जिला अदालत से 20 साल की सजा सुनाए जाने के बाद इस मामले में फसाए गए युवक ने हाइकोर्ट की शरण ली। आरोपी बनाए गए युवक की ओर से इस मामले में अधिवक्ता प्रशांत सिंह बघेल ने पैरवी की। सुनवाई के दौरान यह सामने आया कि पीड़िता के नाबालिक होने के कोई पुख्ता प्रमाण ही कोर्ट में पेश नहीं किए गए।युवती के दाखिल खारिज की जगह कक्षा 6 का प्रमाण पत्र कोर्ट में लगाया गया था। डॉक्टर के द्वारा उम्र की जांच के बाद जो ossification रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई थी वह भी भरोसे के लायक नहीं थी।
युवती के स्कूल शिक्षक ने जिला कोर्ट में ही यह माना लिया था कि स्कूल में दाखिले के समय जन्म का कोई भी प्रमाण नहीं दिया गया था। वहीं युवती की मां की उम्र और बयानों के साथ युवती के पिता और दादा के बयानों से यह पहले ही साबित हो गया था कि युवती की उम्र 18 वर्ष से अधिक है। ossification रिपोर्ट देने वाले डॉक्टर ने भी यह माना था कि युवती की उम्र 16 से 18 वर्ष तक हो सकती है इसके बाद आरोपी को बेनिफिट ऑफ डाउट दिया जाना था जो निचली अदालत में नहीं दिया।
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हाईकोर्ट ने माना कंसेंट से हुआ सब कुछ
इस मामले की सुनवाई मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस ए के सिंह की बेंच में हुई। अधिवक्ता प्रशांत से बघेल के द्वारा दी गई दलीलों और सबूतों के आधार पर कोर्ट ने माना कि घटना के समय युवती कंसेंट देने की उम्र में थी। हालांकि इस मामले में डीएनए रिपोर्ट पॉजिटिव थी, लेकिन कोर्ट ने युवती के बयान को भी कोट किया। युवती ने कहा था कि घर से जाने के बाद उसे कई लोग मिले, लेकिन उसने किसी को घटना के बारे में नहीं बताया। उसने यह भी कहा कि रात के सफर के दौरान उसे डर नहीं लगा, जिससे यह प्रमाणित होता है कि युवती अपनी मर्जी से गई थी।
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5 साल की जेल काटने के बाद मिला इंसाफ
कोर्ट ने युवती के स्कूल टीचर, माता-पिता, दादा और डॉक्टर के बयान सुने। जांच से यह पाया गया कि युवती की उम्र तय करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं था। युवती के दादा ने कोर्ट में कहा कि उसकी उम्र 20 से 21 साल के बीच है। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष को पीड़िता की उम्र साबित करना था, जो वह नहीं कर सके।
हाईकोर्ट ने बिर्धमाल सिंह वर्सेस आनंद पुरोहित AIR 1988 SC 1796 का हवाला दिया। कोर्ट ने माना कि निचली अदालत ने आरोपी के लिए जो सजा तय की, वह गलत थी। आरोपी पर पॉक्सो एक्ट की धारा 6, 363, 366A, 343, IPC की धाराओं के तहत कार्यवाही नहीं की जा सकती। कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को खारिज किया। 5 साल बाद आरोपी को न्याय मिला, जो आरोपों के कारण खुद पीड़ित बन गया था।
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