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Photograph: (The Sootr)
BHOPAL. जबरा मारे और रोने भी न दे...! मध्यप्रदेश पुलिस महकमे में करीब ढाई सौ कार्यवाहक डीएसपी इसी हालत में काम कर रहे हैं। यूं तो उनके पास जिम्मेदारी डीएसपी की है, रुतबा डीएसपी का है, साइन डीएसपी के हैं, लेकिन अधिकार और सुविधाएं आधी-अधूरी मिल रही हैं। प्रमोशन के नाम पर सरकार ने अफसरों को कार्यवाहक बना तो दिया, लेकिन उसी सरकारी ठसक से उन्हें जी-जान से वंचित रखा जा रहा है।
दरअसल, मध्यप्रदेश पुलिस विभाग में कार्यवाहक डीएसपी का नया मजाक चल रहा है। प्रमोशन में सालों से लगी रोक से सरकार ने अपना पल्ला झाड़ने के लिए एक ही शॉर्टकट निकाला कि पात्र इंस्पेक्टरों को कार्यवाहक डीएसपी बना दिया। अब हकीकत ये है कि ये अफसर वही जिम्मेदारी निभा रहे हैं, जो नियमित डीएसपी करते हैं, लेकिन जब बारी आती है सुविधाओं की तो इन्हें दरकिनार किया जा रहा है।
दोयम दर्जे का मान रहे
भोपाल का ऑफिसर्स मेस इसका उदाहरण है। यहां नियमित डीएसपी आराम से रुकते हैं, खाते हैं, फैमिली फंक्शन तक करते हैं। लेकिन कार्यवाहक डीएसपी अगर वहीं रुकना चाहें तो नियम दिखा दिए जाते हैं कि आप कार्यवाहक हैं। सवाल ये है कि काम करवाना हो तो ये डीएसपी, पर कमरे और खाने की बारी आए तो कार्यवाहक?
पुलिस विभाग के अफसर कह रहे हैं कि ये खुला भेदभाव है। हालत ये है कि कई रिटायर्ड डीएसपी को भी मेस में पूरी सुविधा मिल रही हैं, लेकिन वो अफसर जो आज फील्ड में पूरी दमखम से मोर्चा संभाले हुए हैं, उन्हें दोयम दर्जे का माना जा रहा है।
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आखिर कैसे हुआ ये सब?
मध्यप्रदेश में करीब नौ साल तक प्रमोशन पर रोक लगी रही। नतीजा ये हुआ कि सैकड़ों अफसर रिटायर हो गए, लेकिन उनकी कुर्सियां खाली पड़ी रहीं। सरकार ने दबाव बढ़ा तो प्रमोशन की फाइलों पर धूल झाड़ी और पात्र अफसरों को कार्यवाहक का तमगा दे दिया। मई में ही 26 इंस्पेक्टरों को डीएसपी के पद पर पदोन्नत कर दिया गया, लेकिन कार्यवाहक यहां भी जोड़ दिया गया।
नियम ये भी है कि इन अफसरों के खिलाफ अगर कोई केस, शिकायत या विवाद निकला तो सारी जिम्मेदारी पुलिस मुख्यालय की होगी। यानि जिम्मेदारी पूरी, लेकिन सुविधा आधी।
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अधिकारियों में गुस्सा
पुलिस अफसरों में इस सौतेले व्यवहार को लेकर गुस्सा है। एक कार्यवाहक डीएसपी ने कहा, सरकार ने प्रमोशन के नाम पर हमारे साथ छलावा किया है। कार्यवाहक शब्द जोड़कर न सिर्फ सुविधाएं छीनी जा रही हैं, बल्कि मनोबल भी तोड़ा जा रहा है। एक अन्य सीनियर अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, हमारे पास वही पॉवर है, वही रिस्क है, वही काम है तो फिर मेस में खाना खाने या रुकने में क्या दिक्कत है? ये दोहरा मापदंड आखिर क्यों?
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