JABALPUR. प्रसिद्ध अभिनेता और पूर्व सांसद नीतीश भारद्वाज (जो महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण की भूमिका के लिए घर-घर में प्रसिद्ध हैं) को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। उन्होंने अपनी जुड़वां बेटियों के पासपोर्ट विवाद को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में उनकी आईएएस अधिकारी पत्नी स्मिता भारद्वाज की बेटियों के पासपोर्ट रिन्यूअल पर उनके पूर्व पति, अभिनेता नीतीश भारद्वाज की आपत्ति को खारिज कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को विदेश यात्रा का मौलिक अधिकार है, जिससे बच्चों को महरूम नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने कहा कि यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार में समाहित है। साथ ही हाईकोर्ट ने दोनों बेटियों के पासपोर्ट एक सप्ताह में बनाए जाने के निर्देश दिए हैं।
नीतीश और स्मिता के बीच हो चुका है तलाक
आईएएस स्मिता भारद्वाज और अभिनेता नीतीश भारद्वाज के बीच तलाक के बाद पारिवारिक विवाद लंबे समय से चल रहा है। दोनों की दो बेटियां हैं, जिनकी कस्टडी मां स्मिता भारद्वाज के पास है। तलाक के बाद से ही बच्चों की परवरिश, शिक्षा, और अधिकारों को लेकर विवाद कोर्ट तक पहुंच चुका है। नीतीश भारद्वाज ने अपनी आपत्ति में दावा किया था कि बेटियों के विदेश जाने से उनकी परवरिश और सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि पासपोर्ट रिन्यूअल से उनके अधिकारों का हनन होगा।
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हाईकोर्ट ने नीतीश की आपत्ति को किया अस्वीकार
मामले पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने नीतीश भारद्वाज की आपत्तियों को अस्वीकार कर दिया। कोर्ट ने यह माना कि बच्चों की मां, स्मिता भारद्वाज, एक जिम्मेदार अधिकारी हैं और उनके पास बेटियों की परवरिश का अधिकार है। जस्टिस विनय सराफ ने कहा कि विदेश यात्रा मौलिक अधिकार है, जिसे व्यक्तिगत मतभेदों के आधार पर रोका नहीं जा सकता। कोर्ट ने साफ किया कि पासपोर्ट रिन्यूअल पर किसी भी प्रकार की रोक संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा।
नीतीश भारद्वाज लगाई थी आपत्ति
नीतीश भारद्वाज ने अपनी आपत्ति में कहा था कि बेटियों को विदेश भेजने से उनकी सुरक्षा और पिता के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि विदेश यात्रा के कारण पिता और बेटियों के बीच संवाद और संपर्क में बाधा आ सकती है। हालांकि, कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि बच्चों की देखभाल और भलाई का फैसला उनकी मां के पास है, जो पहले से ही उनकी कानूनी अभिभावक हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि विदेश यात्रा बच्चों की शिक्षा और उनके विकास के लिए लाभकारी हो सकती है।
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हाईकोर्ट का संवैधानिक अधिकारों पर जोर
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए कहा कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार हर नागरिक को प्राप्त है। इसमें विदेश यात्रा का अधिकार भी शामिल है। अदालत ने कहा कि किसी भी नागरिक, विशेष रूप से बच्चों, को उनकी स्वतंत्रता और अवसरों से वंचित नहीं किया जा सकता, जब तक कि उसके लिए कोई ठोस और वैध कारण न हो।
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हाइकोर्ट ने बच्चों के अधिकार और भविष्य को दी प्रमुखता
हाईकोर्ट ने इस मामले में बच्चों के अधिकारों को सर्वोपरि रखते हुए फैसला सुनाया। न्यायपालिका ने कहा कि माता-पिता के आपसी विवाद बच्चों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकते। कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चों का भविष्य और उनकी शिक्षा सर्वोपरि है, और विदेश यात्रा उनके व्यक्तित्व विकास में मदद कर सकती है। यह फैसला न केवल पारिवारिक विवादों के मामले में एक नजीर स्थापित करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारतीय न्यायपालिका बच्चों के अधिकारों और उनकी भलाई को प्राथमिकता देती है। हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि व्यक्तिगत विवादों के बावजूद, बच्चों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस निर्णय के बाद स्मिता भारद्वाज अपनी बेटियों के पासपोर्ट रिन्यूअल प्रक्रिया को पूरा कर सकेंगी और उन्हें विदेश यात्रा का अधिकार प्राप्त होगा। दूसरी ओर, यह फैसला व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों के संरक्षण में एक अहम कदम के रूप में देखा जा रहा है।
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