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एम्स भोपाल में कैंसर की दवाओं की खरीद में गड़बड़ी के आरोप सामने आए हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की जांच के मुताबिक, यह दवा बाकी एम्स से 300-400 रुपए में खरीदी जाती है। दूसरी तरफ, एम्स भोपाल ने इसे 7 गुना अधिक कीमत में खरीदा है। यह आरोप अब पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है क्योंकि एम्स के नियमों के खिलाफ करोड़ों रुपए की खरीद की गई।
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किया गया GFR 2017 का उल्लंघन
यह मामला केंद्रीय जीएफआर 2017 (General Financial Rules 2017) के उल्लंघन का है। इसमें दवाओं की खरीदी के लिए टेंडर प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। एम्स भोपाल, जो कि देश का इकलौता एम्स है, जहां पिछले तीन से चार सालों से दवाओं के टेंडर नहीं हुए।
यह दवा सीधे अमृत फार्मेसी से दवाएं खरीदी जाती रही हैं। इस प्रक्रिया को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को लगातार शिकायतें मिल रही थीं। इनमें से आधी शिकायतें एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड से समाप्त हुए समझौते से जुड़ी थीं।
शिकायतों के बाद शुरू हुई जांच
इस गड़बड़ी को लेकर शिकायतों का सिलसिला जारी था। इन शिकायतों के बाद केंद्रीय मंत्रालय की टीम गुरुवार को एम्स भोपाल में पहुंची। उन्होंने एम्स के डायरेक्टर, डिप्टी डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन, और अन्य अधिकारियों से 4 घंटे तक पूछताछ की। टीम ने दस्तावेजों की जांच की और दवाओं की खरीद प्रक्रिया की पूरी समीक्षा की।
अमृत फार्मेसी से 7 गुना महंगी दवा खरीदी
यह आरोप है कि अमृत फार्मेसी से खरीदी गई जेमसिटेबिन जैसी कैंसर की दवाएं अन्य एम्स से 300-400 रुपए में खरीदी जाती हैं। वहीं भोपाल में इसे 2 हजार 100 रुपए में खरीदी गई। इसे 7 गुना महंगे मूल्य पर दवाएं खरीदी जा रही थीं। इससे रोगियों को अतिरिक्त लागत का सामना करना पड़ रहा था। कोरोना महामारी के दौरान यह खरीदी बढ़ा दी गई। इसने 15 लाख रुपए से बढ़कर 60 करोड़ रुपए तक पहुंच गई।
एम्स के नए व्यवस्थाएं और सरकारी जांच
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अब जांच प्रक्रिया को केंद्रीकृत करने का फैसला किया है। ताकि सभी एम्स में दवाओं की खरीद प्रक्रिया समान हो। महंगे दवाओं की खरीदी पर नियंत्रण किया जा सके। इसके बाद, मंत्रालय ने घोषणा की है कि सेंट्रल टेस्ट सिस्टम लागू किया जाएगा। ताकि मरीजों को महंगे जांच केंद्रों पर जाने की जरूरत न हो।
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भोपाल सांसद का किया था हस्तक्षेप
भोपाल सांसद आलोक शर्मा ने इस मुद्दे को स्टैंडिंग फाइनेंस कमेटी में उठाया था। 15 मई को दिल्ली में हुई बैठक में, उन्होंने कमेटी के अध्यक्ष और केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव से इस मामले की जांच का अनुरोध किया था। इसके बाद केंद्रीय मंत्रालय ने जांच प्रक्रिया शुरू की।
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