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Photograph: (the sootr)
BHOPAL.सरकार प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार का दावा कर रही है। प्रदेश में एक के बाद एक नए मेडिकल कॉलेज खोले जा रहे हैं। नए सुपरस्पेशलिटी अस्पतालों के भवन तैयार हो रहे हैं। आपात स्थिति में मरीजों को उच्च स्तरीय उपचार मुहैया कराने एयर एंबुलेेंस भी चलाई जा रही है। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों के मरीज अब भी 108 एंबुलेंस जैसी सामान्य व्यवस्था से भी वंचित हैं। यही वजह है प्रदेश में मरीजों को कभी खटिया तो कभी झोली पर लादकर ले जाने में मामले सामने आते हैं।
ये मामले सरकार के बड़े-बड़े दावों और स्वास्थ्य सेवा की हकीकत को आईना दिखा रहे हैं। सरकार ने प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के लिए इस वित्त वर्ष के लिए 23 हजार 535 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया है। बजट में 12 नए मेडिकल कॉलेज, अस्पताल भवनों के निर्माण के साथ ही करीब 4 हजार डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मियों की नियुक्ति की घोषणा भी की गई है। सरकार के तमाम प्रावधान और स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ जरूरतमंदों को क्यों नहीं मिल पा रहा पूरी व्यवस्था पर ये सवाल खड़ा हो रहा है।
वीडियो से खुली स्वास्थ्य सेवा की कलई
स्वास्थ्य सेवाएं दिन दूनी, रात चौगुनी विस्तार पा रही हैं। ये हमारा दावा नहीं है, बल्कि बजट सत्र में मध्यप्रदेश सरकार ने ही ये घोषणा की है। विधानसभा में डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने अपने विभागों का जमकर बखान किया था।
बजट वृद्धि से लेकर नए कामों के जरिए डिप्टी सीएम ने सरकार की खूब पीठ थपथपाई थी, लेकिन दो महीने बाद प्रदेश के आदिवासी अंचल से जो वीडियो सामने आया है उसने सरकारी दावों की कलई खोल दी है।
झोली पर लादकर मरीज को अस्पताल ले जा रहे ग्रामीणों का ये वीडियो बताता है कि अब भी अंचल में स्वास्थ्य सेवाओं का संचालन कैसे हो रहा है। जब उन्हें मरीज को अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंस ही उपलब्ध नहीं हो पा रही है तो उच्च स्तरीय उपचार की कल्पना करना भी मुश्किल है।
आदिवासी अंचल में हालात बदतर
हम जिस घटनाक्रम की बात कर रहे हैं वो निमाड़ के बड़वानी जिले के पाटी विकासखंड के चेरवी के फलिया (बस्ती) का है। आदिवासी बाहुल्य यह बस्ती मुख्य सड़क से करीब चार किलोमीटर दूर वन क्षेत्र में है। यहां कच्चा रास्ता है जिससे ग्रामीण आते-जाते हैं, लेकिन सरकारी एम्बुलेंस डामर की सड़क छोड़कर बस्ती तक नहीं आती। इसी वजह से मरीज को खाट पर ले जाते हैं अस्पताल।
ये स्थिति केवल पाटी के चेरवी फलिया की नहीं है बल्कि जिले में ऐसे सैकड़ा भर मजरे-टोलों में यही हालत है। इस बस्ती में 350 से ज्यादा लोग रहते हैं लेकिन यहां अब भी स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं।
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मरीज को लेने नहीं आई एम्बुलेंस
दरअसल चेरवी फलिया में चार दिन पहले 16 साल के किशोर की तबीयत खराब हो गई थी। हालात बिगड़ने पर ग्रामीणों ने खबर की लेकिन पक्की सड़क न होने से एम्बुलेंस बस्ती तक नहीं आई। उनकी मजबूरी को देखते हुए बस्ती के ही कुछ लोग इकट्ठा हुए और लकड़ी पर झोली बांधकर किशोर को करीब चार किलो मीटर दूर सड़क तक लेकर आए।
यहां काफी देर तक इंतजार करते रहे और फिर एक दूसरे वाहन से किशोर को अस्पताल पहुंचा सके। आदिवासी अंचल में सरकार की एम्बुलेंस से ज्यादा भरोसा ग्रामीण झोली एम्बुलेंस पर करते हैं। हांलाकि इससे मरीज को इलाज मिलने में अकसर देरी होती है और मरीजों की जान मुश्किल में पड़ जाती है।
स्वास्थ्य सेवाओं से अब भी वंचित
- स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर दावे तो हजार हैं लेकिन जमीन पर ये दावे असरदार साबित नहीं हो रहे हैं। बड़वानी के चेरवी फलिया में झोली एम्बुलेंस के वीडियो ने सरकारी व्यवस्था को एक बार फिर आईना दिखाया है।
- बीते साल यानी मार्च 2024 में सतना जिले के चित्रकूट में भी ऐसा ही मामला सामने आया था। जहां नगर पंचायत चित्रकूट के ही एक वार्ड तक एम्बुलेंस नहीं पहुंच सकी थी और परिवार व पड़ोसियों को झोली पर लादकर गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाना पड़ा था। महिला प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी और एम्बुलेंस बस्ती तक नहीं आ रही थी। मजबूरी में ग्रामीणों को दो किलोमीटर तक महिला को लादकर ले जाना पड़ा। इसमें गर्भवती महिला और उसके गर्भस्थ शिशु की जान भी जोखिम में पड़ गई थी।
- साल 2024 में ही बुरहानपुर जिले में भी स्वास्थ्य सेवा की स्थिति की हकीकत सामने आई थी। तब मालवीर पंचायत के घावटी गांव में नवलसिंह की तबीयत खराब होने पर परिवार के लोगों ने एम्बुलेंस को कई बार खबर दी। काफी इंतजार के बाद भी गांव के कच्चे रास्ते पर एम्बुलेंस नहीं आई। जब तबीयत बिगड़ती गई तो गांव के लोगों की मदद से लाठियों पर झोली बांधकर नवल सिंह को पांच किलोमीटर दूर अस्पताल ले जाकर भर्ती कराना पड़ा था।
- साल 2024 में ही नवम्बर माह में बड़वानी जिले के पाटी विकासखंड में ही ऐसा मामला अधिकारियों के संज्ञान में पहुंचा था। वहीं साल 2023 में भी बड़वानी के सेंधवा के पलासपानी अंचल में भी मरीज को झोली की मदद से अस्पताल लाना पड़ा था।
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लोग स्वास्थ्य सेवा से वंचित
प्रदेश में सरकार का पूरा ध्यान नए मेडिकल कॉलेज, सुपर स्पेशलिटी और अस्पताल से लेकर स्वास्थ्य केंद्रों के भवनों के निर्माण पर है। इसके अलावा संसाधनों में इजाफे के नाम पर उपकरणों की खरीदी की जा रही है लेकिन अस्पताल अब भी डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं। पीएचसी_सीएचसी और जिला अस्पतालों में भी स्वास्थ्यकर्मियों का टोटा है।
मरीजों का भार लगातार बढ़ रहा है लेकिन उनकी संख्या के मुकाबले अस्पताल छोटे पड़ रहे हैं। सरकार हर एम्बुलेंस सेवा पर हर महीने करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। इसके बावजूद ये वाहन ग्रामीण अंचल में मरीज तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। कच्ची सड़क या मार्ग खराब होने का बहाना बनाकर अकसर एम्बुलेंस छोटी बस्तियों, मजरे-टोलों तक जाने से इंकार कर देती हैं और जोखिम मरीज को झेलना पड़ता है।
बजट बढ़ाया, व्यवस्था को भूले
वित्तीय वर्ष 2024-25 के मुकाबले इस बार हेल्थ सेक्टर के बजट में 8.78 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। यानी सरकार नए वित्त वर्ष में 23 हजार 535 करोड़ रुपए स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार पर खर्च करने जा रही है। अस्पतालों में 3900 चिकित्सक और विशेषज्ञों के अलावा 4300 पैरामेडिकल स्टाफ और 16 हज़ार से ज्यादा सहयोगी कर्मचारी आउटसोर्स से भर्ती किए जाएंगे।
सीएम केयर योजना में सुपर स्पेशलिटी सुविधा का प्रावधान किया गया है। सतना, रीवा, ग्वालियर और इंदौर मेडिकल कॉलेज के उन्नयन के लिए 1500 करोड़, 125 नए अस्पतालों के निर्माण और उन्नयन के लिए 1155.82 करोड़ खर्च होंगे।
प्रदेश में कुल 17 सरकारी मेडिकल कॉलेजों के अलावा अब सरकार 6 नए मेडिकल कॉलेज शुरू कर रही है। वहीं पीपीपी मोड पर 12 मेडिकल कॉलेज खोलने की भी तैयारी है। यानी सेवाओं के विस्तार पर सरकार खजाना तो लुटा रही है लेकिन क्या मेडिकल कॉलेज, अस्पतालों की बिल्डिंगों से इलाज जन-जन तक पहुंचेगा या संसाधनों के साथ व्यवस्था को जनसुलभ बनाना जरूरी है।